छठ पूजा, जो भारत के विशेष रूप से पूर्वी राज्यों बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है, का आरंभ ‘नहाय-खाय’ से होता है। यह पर्व सूर्य उपासना का एक अनोखा उदाहरण है जिसमें श्रद्धालु सूर्य देव और छठी मइया की पूजा करते हैं। छठ पूजा (Chhath Puja) के दौरान चार दिनों तक चलने वाली विभिन्न परंपराएं और रीति-रिवाज होते हैं, जिनमें नहाय-खाय का विशेष महत्व होता है। यह पर्व शुद्धता, सात्विकता और कड़ी अनुशासन का प्रतीक है, जिसमें भक्त पूरी आस्था और भक्ति के साथ उपवास और व्रत रखते हैं।
नहाय-खाय का महत्व
छठ पूजा (Chhath Puja) का पहला दिन नहाय-खाय के रूप में जाना जाता है। इस दिन व्रती (व्रत रखने वाले) सुबह गंगा या किसी पवित्र नदी में स्नान करते हैं, जिससे वे स्वयं को पवित्र और शुद्ध महसूस करते हैं। इसके बाद घर आकर वे शुद्ध और सात्विक भोजन करते हैं। नहाय-खाय का मुख्य उद्देश्य शरीर और मन को शुद्ध करना है ताकि आने वाले दिनों में छठ पूजा की कठिन साधना के लिए मानसिक और शारीरिक शक्ति प्राप्त हो सके।
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नहाय-खाय का शुभ मुहूर्त
इस दिन सूर्योदय सुबह 6:45 पर और सूर्यास्त शाम 5:27 पर होगा। ऐसे में, 17 नवंबर शुक्रवार को सुबह 11:38 बजे तक नहाय-खाय की रस्म पूरी कर लेनी चाहिए।
भोजन की विशेषता:
नहाय-खाय के दिन व्रती सात्विक भोजन करते हैं, जिसमें कद्दू, चने की दाल और चावल का विशेष स्थान होता है। इस भोजन को गंगाजल से शुद्ध किया जाता है और बिना लहसुन-प्याज का उपयोग किए ही तैयार किया जाता है। माना जाता है कि इस दिन का भोजन सात्विकता का प्रतीक होता है और यह व्रती को अगले दिनों की तपस्या के लिए ऊर्जा प्रदान करता है।
छठ पूजा (Chhath Puja) का दूसरा दिन: खरना
नहाय-खाय के अगले दिन को ‘खरना’ कहा जाता है। इस दिन व्रती पूरे दिन उपवास रखते हैं और सूर्यास्त के समय विशेष प्रसाद बनाते हैं, जिसमें गुड़ और चावल की खीर, रोटी और फल शामिल होते हैं। इस प्रसाद को व्रती सूर्य देव को अर्पित करते हैं और फिर स्वयं ग्रहण करते हैं। खरना के दिन का उपवास और प्रसाद व्रती की आत्मशुद्धि और छठी मइया की कृपा प्राप्त करने की एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया मानी जाती है।
छठी मइया और सूर्य देव की पूजा
छठ पूजा के दौरान सूर्य देव और छठी मइया की पूजा का महत्व विशेष रूप से है। सूर्य देव को शक्ति, जीवन और ऊर्जा का स्रोत माना जाता है। छठी मइया को उनकी बहन के रूप में माना जाता है, जो भक्तों की इच्छाएं पूरी करती हैं और उन्हें संतान सुख का आशीर्वाद देती हैं। इस पूजा में व्रती शाम के समय डूबते सूर्य को और अगले दिन उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। सूर्य देव की उपासना से मान्यता है कि इससे शरीर के रोग दूर होते हैं और जीवन में सकारात्मकता आती है।
छठ पूजा में आस्था और नियम
छठ पूजा (Chhath Puja) के दौरान व्रती पूरी ईमानदारी और आस्था से नियमों का पालन करते हैं। चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व में व्रती का अपने परिवार और समाज से स्नेह, सहयोग और समर्थन मिलता है। इस पूजा में शामिल होने वाले लोग व्रती के लिए हर संभव प्रयास करते हैं कि वे पूरे मन से पूजा कर सकें। माना जाता है कि छठ पूजा की कठिन साधना और नियमों के पालन से व्यक्ति को अपने जीवन में शांति, सुख और संतोष प्राप्त होता है।
छठ पूजा का धार्मिक और सामाजिक महत्व
छठ पूजा का महत्व सिर्फ धार्मिक नहीं बल्कि सामाजिक भी है। इस पर्व के दौरान पूरे समाज में एक विशेष उमंग और उत्साह का माहौल होता है। हर किसी के घर में शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है और पूरे परिवार के सदस्य मिलकर पूजा की तैयारियां करते हैं। इस पर्व में सामुदायिक सहयोग और एकता का विशेष महत्व है, जो समाज को एकजुटता और सहयोग की भावना से भर देता है।
इस पूजा में गंगा और अन्य नदियों के तट पर पूजा की जाती है
छठ पूजा न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है बल्कि यह पर्यावरण और प्रकृति के प्रति श्रद्धा का भी प्रतीक है। इस पूजा में गंगा और अन्य नदियों के तट पर पूजा की जाती है, जो प्रकृति और जल संसाधनों के महत्व को दर्शाती है। भक्तों के लिए छठ पूजा (Chhath Puja) एक ऐसा पर्व है जो उन्हें अपनी जड़ों और संस्कृति से जोड़ता है और उन्हें प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का भाव विकसित करने के लिए प्रेरित करता है।
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