Kalash Sthapana: कलश स्थापना के महत्वपूर्ण नियम और विधि

कलश स्थापना

नवरात्रि में देवी दुर्गा की आराधना की शुरुआत कलश स्थापना से होती है। इस प्रक्रिया में शुद्धता और सही विधि का पालन करना आवश्यक है ताकि देवी की कृपा प्राप्त हो और घर में सुख-समृद्धि का वास हो। दुर्गा पूजा में कलश स्थापना का विशेष महत्व है। नवरात्रि के पावन पर्व पर कलश स्थापना को शुभ और मंगलमय माना जाता है। यह देवी दुर्गा की आराधना की शुरुआत मानी जाती है, जो शक्ति, सौभाग्य, और संपन्नता का प्रतीक है। कलश स्थापना के दौरान कई नियमों का पालन करना आवश्यक होता है, ताकि पूजा सफल और शुभ फलदायी हो सके। आइए जानते हैं दुर्गा पूजा में कलश स्थापना से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण नियम और उनके पीछे का वैज्ञानिक एवं धार्मिक महत्व।

 कलश स्थापना का महत्व

कलश को हिन्दू धर्म में विशेष स्थान प्राप्त है। यह जीवन, उर्वरता और समृद्धि का प्रतीक है। नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना से देवी दुर्गा को आमंत्रण दिया जाता है और यह नौ दिनों तक उनकी उपस्थिति का प्रतीक बनता है। कलश में जल, आम के पत्ते, सुपारी, नारियल, और रोली का प्रयोग होता है, जो विभिन्न प्राकृतिक तत्वों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त

कलश स्थापना का समय अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है। नवरात्रि के पहले दिन सुबह शुभ मुहूर्त में कलश स्थापना की जाती है। पंचांग के अनुसार घट स्थापना का मुहूर्त निश्चित होता है और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उस समय घर के सभी सदस्य उपस्थित रहें।

कलश स्थापना की तिथि – 3 अक्टूबर को 00:18 बजे शुरू होगी। यह तिथि 4 अक्टूबर सुबह 02 बजकर 58 मिनट तक रहेगी।

शुभ मुहूर्त – शारदीय नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना के लिए दो शुभ मुहूर्त बन रहे हैं। पहला शुभ मुहूर्त सुबह 6:15 से 7:22 तक है, जिसमें घट स्थापना के लिए 1 घंटा 6 मिनट का समय मिलेगा। इसके अलावा दोपहर में कलश स्थापना का मुहूर्त 11:46 से 12:33 के बीच किसी भी समय कलश स्थापना की जा सकती है। इस समयावधि में आपको 47 मिनट का शुभ समय मिलेगा।

 कलश स्थापना के लिए आवश्यक सामग्री 

कलश स्थापना के लिए निम्नलिखित सामग्रियों की आवश्यकता होती है:

1. मिट्टी का बर्तन या तांबे का कलश

2. पवित्र जल (गंगा जल या स्वच्छ जल)

3. आम के पत्ते

4. सुपारी

5. नारियल

6. लाल कपड़ा

7. रोली और मौली (कलावा)

8. चावल और सिंदूर

9. सप्तधान्य (सात प्रकार के अनाज)

10. दूर्वा घास

 कलश स्थापना की विधि

1. स्थान का चयन: सबसे पहले कलश स्थापना के लिए साफ-सुथरी जगह का चयन करें। पूजा स्थल का स्थान पवित्र होना चाहिए और वहां किसी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा नहीं होनी चाहिए। पूजा स्थल के पास कोई अव्यवस्था नहीं होनी चाहिए।

2. मिट्टी बिछाना: कलश स्थापना से पहले पूजा स्थल पर गंगा जल का छिड़काव करें। फिर मिट्टी बिछाकर उसमें सप्तधान्य (जैसे गेहूं, जौ, धान, चना, मूंग आदि) डालें। इसे पवित्रता और उर्वरता का प्रतीक माना जाता है।

3. कलश की स्थापना: मिट्टी के ऊपर एक तांबे या मिट्टी के कलश को रखें। कलश को पवित्र जल से भरें। आम के पत्तों को कलश के चारों ओर इस प्रकार लगाएं कि वे बाहर की ओर झुके रहें। कलश के ऊपर एक सुपारी और नारियल रखें। नारियल पर लाल कपड़ा लपेटकर मौली बांधें।

4. स्वास्तिक चिन्ह: कलश पर रोली या सिंदूर से स्वास्तिक का चिन्ह बनाएं। स्वास्तिक का चिन्ह शुभता और सफलता का प्रतीक होता है।

5. मंत्रोच्चार: कलश की स्थापना के बाद देवी दुर्गा के मंत्रों का उच्चारण करें। मंत्रों के साथ देवी को आमंत्रित करें और उनसे घर में निवास करने का निवेदन करें।

 कलश स्थापना के नियम

1. शुद्धता का पालन: कलश स्थापना से पहले स्वयं शुद्ध होकर स्नान करना आवश्यक है। पूजा स्थल और पूजा करने वाले व्यक्ति की शुद्धता अत्यंत महत्वपूर्ण होती है।

2. कलश की दिशा: कलश स्थापना के लिए पूर्व या उत्तर दिशा का चयन करना उत्तम होता है। यह दिशा शुभ मानी जाती है और इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है।

3. पूजा का समय: कलश स्थापना सुबह के समय शुभ मुहूर्त में करना चाहिए। पंचांग के अनुसार शुभ समय का चयन करें और उसी में पूजा आरंभ करें। शाम के समय या रात्रि में कलश स्थापना नहीं करनी चाहिए।

4. ध्यान और मन की शुद्धता: कलश स्थापना के दौरान मन को शुद्ध और शांत रखें। नकारात्मक विचारों से बचें और देवी दुर्गा की कृपा प्राप्त करने के लिए ध्यान करें।

5. व्रत का पालन: नवरात्रि के दौरान व्रत रखने वाले भक्तों को कलश स्थापना के समय से ही व्रत का पालन करना चाहिए। व्रत के दौरान सात्विक भोजन ग्रहण करें और तामसिक वस्तुओं से दूर रहें।

धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व

कलश स्थापना का धार्मिक महत्व यह है कि यह देवी दुर्गा का आह्वान करता है और घर में शुभता और समृद्धि लाता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, कलश में रखा गया जल और उसके साथ आम के पत्तों का प्रयोग वातावरण को शुद्ध करता है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। यह शरीर और मन को शांति और संतुलन प्रदान करने में सहायक होता है।

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