25 सितंबर, 1916 को जयपुर के निकट धनकिया रेलवे स्टेशन के आवासीय परिसर में जन्में दीनदयाल उपाध्याय स्वतंत्र भारत के ऐसे चिंतक, विचारक एवं युगदृष्टा हुए हैं जिनके चिंतन ने भारत ही नहीं संपूर्ण विश्व को अपनी ओर आकर्षित किया। दीनदयाल उपाध्याय मानते थे कि समष्टि जीवन का कोई भी अंगोपांग, समुदाय या व्यक्ति पीड़ित रहता है तो वह समग्र यानि विराट पुरुष को विकलांग करता है। इसलिए सांगोपांग समाज-जीवन की आवश्यक शर्त है ‘अंत्योदय’। नीचे दिए गए पीडीएफ में पढ़े दीनदयाल उपाध्याय के अनमोल विचारों को।
Related Posts
तंबाकू मुक्त भविष्य के लिए जागरूकता का महासंग्राम।
विश्व तंबाकू निषेध दिवस हर साल 31 मई को तंबाकू के उपयोग से जुड़े स्वास्थ्य जोखिमों के बारे में जागरूकता बढ़ाने और…
विवादों में घिरी IAS अधिकारी पूजा खेडकर, मेडिकल दावों के जांच।
पूजा खेडकर, 2023-बैच की महाराष्ट्र कैडर की एक प्रशिक्षु आईएएस अधिकारी, खुद को विवादों के केंद्र में पाती हैं। विवाद इस…
कैसी रही 1975 के आपातकाल के दौरान भारत की अर्थव्यवस्था- एक नज़र।
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा घोषित 1975-77 के आपातकाल को अक्सर नागरिक स्वतंत्रता के निलंबन और राजनीतिक विरोध के दमन के कारण भारत…