25 सितंबर, 1916 को जयपुर के निकट धनकिया रेलवे स्टेशन के आवासीय परिसर में जन्में दीनदयाल उपाध्याय स्वतंत्र भारत के ऐसे चिंतक, विचारक एवं युगदृष्टा हुए हैं जिनके चिंतन ने भारत ही नहीं संपूर्ण विश्व को अपनी ओर आकर्षित किया। दीनदयाल उपाध्याय मानते थे कि समष्टि जीवन का कोई भी अंगोपांग, समुदाय या व्यक्ति पीड़ित रहता है तो वह समग्र यानि विराट पुरुष को विकलांग करता है। इसलिए सांगोपांग समाज-जीवन की आवश्यक शर्त है ‘अंत्योदय’। नीचे दिए गए पीडीएफ में पढ़े दीनदयाल उपाध्याय के अनमोल विचारों को।
Related Posts
पढ़ें सामाजिक पुनर्जागरण और सौहार्द के अग्रदूत संत नारायण गुरु का संक्षिप्त जीवन परिचय
20 अगस्त, 1856 को ब्रिटिश भारत के तत्कालीन राज्य त्रावणकोर और वर्तमान भारत के केरल राज्य के तिरुवनंतपुरम के पास…
वायनाड त्रासदी: बचाव और राहत कार्यों में जुटी सेना। चुनौतियाँ बहुत, फिर भी हौसला बुलंद।
पहाड़ का प्रकोप केरल के वायनाड की शांत पहाड़ियां की सुबह एक भयानक दृश्य में बदल गईं, जब लगातार बारिश…
रामदेव और कोरोनिल: असत्यापित (unproved) दावों को लगा झटका
दिल्ली उच्च न्यायालय ने कोरोनिल को कोविड-19 की दवा बताने वाले कंटेंट को हटाने का आदेश दिया। एक महत्वपूर्ण फैसले…