बिहार की नदियां जब उफान पर आती हैं, तो पूरे राज्य में तबाही मच जाती है। इस साल भी कोसी, गंडक, कमला और बागमती नदियों ने अपना रौद्र रूप दिखाया है। पिछले कुछ दिनों से लगातार हो रही बारिश के कारण इन नदियों का जलस्तर तेजी से बढ़ा है। इसका नतीजा यह हुआ है कि कई गांवों में पानी घुस गया है और लोगों को अपने घर छोड़कर सुरक्षित स्थानों पर जाना पड़ा है। बिहार में बाढ़ (Flood in Bihar) की इस स्थिति ने लोगों की जिंदगी को बुरी तरह प्रभावित किया है। कई जगहों पर लोग अपने घरों की छतों पर शरण लेने को मजबूर हैं। खाने-पीने की चीजें और साफ पानी की कमी से लोग परेशान हैं। सरकार और प्रशासन राहत कार्यों में जुटे हैं, लेकिन स्थिति अभी भी चिंताजनक बनी हुई है।
पानी की धार तटबंधों को कर देती हैं कमजोर
बाढ़ के पानी के साथ एक और बड़ी समस्या आती है – कटाव का खतरा। जब नदियों का बढ़ता जलस्तर (rising water level of rivers) कम होने लगता है, तो पानी की धार तटबंधों को कमजोर कर देती है। इससे कटाव का खतरा बढ़ जाता है। लोगों को डर है कि कहीं उनके गांव इस कटाव की चपेट में न आ जाएं। इस डर ने लोगों की नींद उड़ा दी है। कोसी नदी, जिसे ‘बिहार का शोक’ भी कहा जाता है, इस बार 56 साल बाद इतनी उफान पर आई है। वीरपुर बराज पर इसका जलस्तर 6.61 लाख क्यूसेक तक पहुंच गया, जो 1968 के बाद सबसे ज्यादा है। इसी तरह गंडक नदी भी 21 साल बाद इतनी उफान पर आई है। इन आंकड़ों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि बाढ़ की स्थिति कितनी गंभीर है।
बाढ़ का असर
बाढ़ का असर बिहार के कई जिलों में देखा जा रहा है। सीतामढ़ी में करीब 50 हजार लोग प्रभावित हुए हैं। यहां बैरगनिया में रिंग बांध से पानी का रिसाव हो रहा है, जिससे लोगों की चिंता बढ़ गई है। मधुबनी जिले में स्थिति और भी गंभीर है। यहां मधेपुर की करीब एक लाख की आबादी बाढ़ से घिर गई है। हजारों घरों में पानी घुस गया है। दरभंगा जिले में भी बाढ़ ने कहर बरपाया है। घनश्यामपुर के 10 गांवों में कमला बलान नदी का पानी घुस गया है।
कटिहार में महानंदा नदी में आए उफान के कारण कई गांवों में घुस गया है पानी
यही नहीं, पश्चिमी चंपारण में वाल्मीकि टाइगर रिजर्व में भी पानी घुस गया है, जिससे वन्यजीवों के साथ-साथ आसपास के रिहायशी इलाकों में भी खतरा बढ़ गया है। सुपौल और सहरसा जिलों में कोसी तटबंध के भीतर के गांव डूबने लगे हैं। कटिहार में महानंदा नदी में आए उफान के कारण कई गांवों में पानी घुस गया है। गोपालगंज और मांझा प्रखंड के 12 गांवों में भी बाढ़ का पानी फैल गया है।
बचाव और राहत कार्य
सरकार और प्रशासन बाढ़ प्रभावित इलाकों में बचाव और राहत कार्यों में जुटे हुए हैं। एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टीमें लगातार लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा रही हैं। राहत शिविरों में लोगों को खाना और पीने का पानी मुहैया कराया जा रहा है। लेकिन चुनौतियां बहुत बड़ी हैं।
बाढ़ के बाद की चुनौतियां
बाढ़ का पानी उतरने के बाद भी लोगों की परेशानियां कम नहीं होंगी। घरों में जमा कीचड़, फसलों का नुकसान, बीमारियों का खतरा – ये सब समस्याएं लोगों को परेशान करेंगी। सरकार को इन चुनौतियों से निपटने के लिए लंबी अवधि की योजना बनानी होगी।
बाढ़ से बचाव के उपाय
हालांकि बाढ़ एक प्राकृतिक आपदा है, लेकिन कुछ उपायों से इसके प्रभाव को कम किया जा सकता है। नदियों के किनारे मजबूत तटबंध बनाना, जंगलों की कटाई रोकना, नदियों के प्रवाह को नियंत्रित करना जैसे उपाय किए जा सकते हैं। साथ ही, लोगों को बाढ़ से बचाव के तरीकों के बारे में जागरूक करना भी जरूरी है। बिहार में बाढ़ की यह स्थिति चिंता का विषय है। लोगों की जान-माल की सुरक्षा सबसे बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए। साथ ही, लंबे समय में ऐसी योजनाएं बनानी होंगी जिससे बाढ़ के प्रभाव को कम किया जा सके। तभी बिहार के लोग बाढ़ के इस दंश से मुक्ति पा सकेंगे और एक सुरक्षित जीवन जी पाएंगे।
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