यूपी में शिक्षक बनने का सपना: क्यों उलझा 69000 भर्ती का पेंच?

UP Teacher Recruitment

क्या आपने कभी सोचा है कि एक नौकरी पाने के लिए लोगों को इतना लंबा इंतजार करना पड़ सकता है? उत्तर प्रदेश में 69000 शिक्षक भर्ती (Teacher Recruitment) का मामला ऐसा ही है, जो पिछले चार साल से कोर्ट-कचहरी में चल रहा है। लेकिन अब इस मामले में एक नया मोड़ आया है। चलिए जानते हैं कि आखिर क्या है पूरा मामला और सुप्रीम कोर्ट ने क्या फैसला दिया है।

सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक बड़ा फैसला सुनाया है। उसने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले पर रोक लगा दी है, जिसमें 69000 शिक्षक भर्ती (Teacher Recruitment) की मेरिट लिस्ट को रद्द कर दिया गया था। हाईकोर्ट ने कहा था कि तीन महीने में नई मेरिट लिस्ट बनाई जाए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अभी यह फैसला लागू नहीं होगा। इस फैसले से हजारों अभ्यर्थियों को राहत मिली है। जो लोग पहले से नौकरी कर रहे थे, उन्हें डर था कि कहीं उनकी नौकरी न चली जाए। लेकिन अब वे थोड़ा आराम की सांस ले सकते हैं।

शिक्षक भर्ती का इतिहास: कहां से शुरू हुआ विवाद?

यह कहानी 2017 से शुरू होती है। उस समय अखिलेश यादव की सरकार थी। उन्होंने 1 लाख 37 हजार शिक्षामित्रों को सीधे सहायक शिक्षक बना दिया। लेकिन यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और कोर्ट ने इस फैसले को पलट दिया। फिर 2017 में योगी आदित्यनाथ की सरकार आई। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें कहा कि 1 लाख 37 हजार पदों पर भर्ती करो। सरकार ने कहा कि इतने सारे पद एक साथ नहीं भर सकते। तो कोर्ट ने कहा, “ठीक है, दो चरणों में भरो।” पहले चरण में 2018 में 68500 पदों की भर्ती निकाली गई। फिर 2019 में दूसरे चरण की 69000 शिक्षक भर्ती आई। यहीं से शुरू हुआ असली विवाद।

आरक्षण का पेंच: क्यों उलझा मामला?

69000 शिक्षक भर्ती (Teacher Recruitment) की परीक्षा 6 जनवरी 2019 को हुई। इसमें जनरल कैटेगरी के लिए 67.11% और OBC के लिए 66.73% कट-ऑफ रखा गया। करीब 68 हजार लोगों को नौकरी मिली। लेकिन तभी आरक्षण को लेकर सवाल उठने लगे। कुछ अभ्यर्थियों का कहना था कि आरक्षण के नियमों का ठीक से पालन नहीं हुआ। उनका तर्क था कि अगर कोई OBC उम्मीदवार जनरल कैटेगरी के बराबर या ज्यादा नंबर लाता है, तो उसे जनरल में गिना जाना चाहिए, न कि OBC कोटे में। इस विवाद के चलते कई अभ्यर्थी सड़कों पर उतर आए। उनका कहना था कि OBC को 27% आरक्षण मिलना चाहिए था, लेकिन सिर्फ 3.86% ही मिला। सरकार का कहना था कि 31 हजार OBC उम्मीदवारों को नौकरी दी गई। लेकिन प्रदर्शनकारियों का तर्क था कि इनमें से ज्यादातर को जनरल कैटेगरी में गिना जाना चाहिए था।

23 सितंबर को इस मामले की अगली सुनवाई होगी

इसी तरह SC वर्ग को भी कम आरक्षण मिलने का आरोप लगा। कुल मिलाकर, अभ्यर्थियों का दावा था कि करीब 19 हजार सीटों का गड़बड़झाला हुआ है। अब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में दखल दिया है। उसने यूपी सरकार और हाईकोर्ट के पक्षकारों से जवाब मांगा है। कोर्ट ने कहा है कि वह इस मामले को गहराई से समझना चाहता है। 23 सितंबर को इस मामले की अगली सुनवाई होगी। तब तक सभी पक्षों को अपनी बात रखने का मौका मिलेगा। यह देखना दिलचस्प होगा कि आखिर इस पूरे विवाद का अंत कैसे होता है।

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