भारत एक लोकतांत्रिक देश है। यहां कुछ शर्तों के साथ सभी को चुनाव लड़ने और अपनी राजनीतिक पार्टी बनाने की आज़ादी है। चुनाव चाहे लोकसभा के हों, विधानसभा के अथवा पार्षदी के। सभी चुनावों में चुनाव चिन्ह का बड़ा महत्वपूर्ण रोल होता है। करण यह कि बिना चुनाव चिन्ह के चुनाव कराया ही नहीं जा सकता है। चुनाव चिह्न के आगे बटन दबाकर ही हम किसी भी प्रत्याशी को वोट देते हैं। राष्ट्रीय पार्टियां हों या छोटी पार्टियां या फिर निर्दलीय उम्मीदवार, सभी को एक चुनाव चिह्न (Political Party Election Symbols) दिया ही जाता है। ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि राजनीतिक दलों के अलावा निर्दलीय उम्मीदवारों को चुनाव चिन्ह देता कौन है? कैसे कोई पार्टी अथवा शख्स चुनाव चिन्ह प्राप्त करता है।
चुनाव आयोग ही राजनीतिक पार्टियों को चुनाव चिह्न (Political Party Election Symbols) करता है आवंटित
तो आपको बता दें कि भारत का चुनाव आयोग ही राजनीतिक पार्टियों को चुनाव चिह्न भी आवंटित करता है। भारतीय संविधान के आर्टिकल 324 (रेप्रजेंटेशन ऑफ द पीपुल ऐक्ट, 1951 व कंडक्ट ऑफ इलेक्शंस रूल्स, 1961) के माध्यम से चुनाव आयोग को यह शक्ति प्रदान की गई है। अपने इसी अधिकार के तहत चुनाव आयोग उम्मीदवारों को चुनाव चिन्ह देता है।
चुनाव आयोग के पास होते हैं 100 निशान
चुनाव आयोग के पास बीते वर्षों में आवंटित हो चुके निशानों के साथ-साथ ऐसे निशानों की भी सूची होती है, जो किसी को भी आवंटित नहीं किए गए हैं। यही नहीं, चुनाव आयोग के पास कम से कम ऐसे 100 फ्रेश निशान होते हैं। चुनाव चिन्हों का चयन करते समय इस बात पर विशेष ध्यान दिया जाता है कि वो बेहद आम हों, ताकि आम मतदाता को याद रहे और वो उसे आसानी से पहचान सकें।
कौन तय करता है चुनाव राजनीतिक दल का नाम
राजनीतिक दल का नाम आपको खुद ही तय करना होता है। हालांकि, आपके बताए हुए नाम को मंजूरी देना या नहीं देना यह पूरी तरह से चुनाव आयोग पर निर्भर होता है। आपके दिए गए नाम पर मुहर लगाने से पहले चुनाव आयोग यह देखता है कि बताया हुआ नाम किसी दूसरी पार्टी के पास तो नहीं है। यदि नाम पहले से ही मौजूद होता है, तो चुनाव आयोग स्वयं आपको अपनी तरफ से दूसरे नाम का सुझाव दे सकता है। अगर चुनाव आयोग चाहे तो आपसे भी पार्टी के लिए किसी दूसरे नाम की सिफारिश कर सकता है। अब यहां सवाल ये उठता है कि चुनाव आयोग किसी भी सियासी दल को चुनाव चिह्न (Political Party Election Symbols) का आवंटन कैसे करता है?
कैसे राजनीतिक दलों को मिलता है चुनाव चिह्न
चुनाव आयोग द इलेक्शन सिंबल (रिजर्वेशन एंड अलॉटमेंट) ऑर्डर, 1986 के तहत सियासी दलों को चुनाव चिह्न आवंटित करता है। हालांकि, चुनाव चिह्न पाने के लिए भी सियासी दलों को कुछ नियमों व शर्तों को पूरा करना होता है। जब भी चुनाव चिह्न जारी करने का समय आता है, तो चुनाव आयोग उसके पर रिजर्व रखे 100 चुनाव चिन्हों में से एक को पार्टी के लिए जारी करता है। ऐसा नहीं है अगर पार्टी किसी खास चिह्न की मांग करती है, तो आयोग उस पर भी विचार करता है।
राष्ट्रीय पार्टियों के रिजर्व चुनाव चिह्न नहीं होते दूसरों को आवंटित
राष्ट्रीय दलों को मिलने वाले चुनाव चिन्ह रिजर्व कैटेगरी में आते हैं। इन चिह्नों को किसी और को नहीं दिया जाता है। क्षेत्रीय दलों को भी अपने राज्य या इलाके के लिए फिक्स चुनाव चिह्न (Political Party Election Symbols) मिलता है, परंतु जब वह किसी और राज्य में चुनाव लड़ते हैं तो वह बदल भी सकता है। यह पहले से उसकी उपलब्धता पर निर्भर करता है। अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग दलों के चुनाव चिह्न एक जैसे भी हो सकते हैं।
पशु और पक्षी से जुड़े चुनाव चिह्न नहीं किए जाते जारी
पहले चुनाव आयोग राजनीतिक दलों और निर्दलीय उम्मीदवारों को पशु-पक्षी से जुड़े चिन्ह आवंटित करता था। यह तो ठीक, लेकिन इस तरह का चिन्ह मिलने के बाद प्रत्याशी उक्त पक्षियों अथवा पशुओं की परेड निकालने लग जाते थे। एनिमल राइट्स एक्टिविस्ट्स ने इसे क्रूरता मानते हुए विरोध करना शुरू कर दिया। उनके भारी विरोध की वजह से अब पशु-पक्षी से जुड़े चुनाव-चिन्ह उम्मीदवारों अथवा राजनीतिक दलों को नहीं दिए जाते हैं।
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