National Sports Day: भारतीय हॉकी का वो जादूगर, जर्मनी का तानाशाह हिटलर भी था जिसके खेल का मुरीद

Major Dhyan Chand

समूचा भारत आज के दिन (29 अगस्त) को राष्ट्रीय खेल दिवस (National Sports Day) के रूप में मना रहा है। नेशनल स्पोर्ट डे, जी हां। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आज ही के दिन 119 वर्ष पहले एक ऐसे दिग्गज का जन्म हुआ था, जिसने भारतीय हॉकी को बुलंदियों तक पहुंचाया था। जाहिर है, आप समझ गए होंगे, हम किस महान शख्स की बात कर रहे हैं? 

मेजर ध्यानचंद के जन्मदिन को भारत में ‘राष्ट्रीय खेल दिवस’ के तौर पर मनाया जाता है

सही समझे आप, हम बात कर रहे हैं भारतीय हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद (Major Dhyan Chand) की। कहने की जरूरत नहीं, हॉकी ओलंपिक में भारत का अपना एक गौरव हुआ करता था और उस गौरवगाथा के नायक थे, मेजर ध्यान चंद। वही मेजर ध्यानचंद जिनके जन्मदिन को भारत में ‘राष्ट्रीय खेल दिवस’ (National Sports Day) के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन देश भर में विभिन्न टूर्नामेंट आयोजित किए जाते हैं। 

कौन थे मेजर ध्यानचंद 

दुनिया जिन्हें मेजर ध्यानचंद (Major Dhyan Chand) के नाम से जानती है, का जन्म 29 अगस्त 1905 को उस दौर के इलाहबाद यानि आज के प्रयागराज में समेश्वर दत्त सिंह और शारदा सिंह के घर हुआ था। उनका असली नाम ध्यानचंद नहीं था। उनका नाम था ध्यान सिंह। दरअसल, पिता सेना में थे, सो पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए वो भी 16 साल की उम्र में सेना में भर्ती हो गए। जिस समय वो सेना में भर्ती हुए थे समय भारत ब्रिटिश राज के अधीन था। चांद की रौशनी में वो हॉकी की प्रैक्टिस किया करते थे, इस वजह से उनके दोस्त उन्हें चांद कहकर बुलाया करते थे। इस वजह से वो ध्यान सिंह से ध्यानचंद हो गए। 13 मई 1926 में उन्होंने भारत के लिए अपना पहला मैच न्यूजीलैंड में खेला। 

मेजर ध्यानचंद ने सेना के कई हॉकी टूर्नामेंट और रेजिमेंटल खेलों में लिया हिस्सा

इस बीच साल 1922 और 1926 के बीच मेजर ध्यानचंद (Major Dhyan Chand) ने कई सेना हॉकी टूर्नामेंट और रेजिमेंटल खेलों में हिस्सा लिया। अपने खेल से उन्होंने लोगों को खासा प्रभावित किया। कमाल यह कि उनके खेल से प्रभावित होकर नवगठित भारतीय हॉकी महासंघ (आईएचएफ) ने एम्स्टर्डम में 1928 ओलंपिक के लिए एक टीम भेजने का फैसला किया। और उन्हें भी इस टीम में शामिल किया गया। उन्हें शामिल तो कर लिया गया, लेकिन किसी को उम्मीद नहीं थी कि ये टीम बड़ा चमत्कार करेगी। लेकिन चमत्कार ऐसा हुआ कि चारो ओर सिर्फ ध्यानचंद और उनके खेल की चर्चा होने लगी। 

कहलाए हॉकी के जादूगर

Major Dhyan Chand

कमाल की बात तो यह कि मेजर ध्यानचंद (Major Dhyan Chand) को हॉकी में इस कदर महारत हासिल थी कि उनकी हॉकी स्टिक में मानो कोई जादू था। गेंद मानो उनकी स्टिक से चिपक जाती थी और विपक्षी टीम के खिलाड़ी बेचारे बेबस होकर बस गेंद को निहारते ही रह जाते थे। गेंद की मजाल कि ध्यानचंद की हॉकी स्टिक से छिटककर किसी और के पास जाए। वो गेंद को अपने नियंत्रण में रखने में इस कदर निपुण थे कि वो ‘हॉकी जादूगर’ और ‘द मैजिशियन’ जैसे नामों से विख्यात हो गए। यही नहीं उन्होंने साल 1928, 1932 और 1936 में भारत को ओलंपिक खेलों में लगातार तीन स्वर्ण पदक जिताने में महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाई। यह उनके खेल निपुणता का ही कमाल था, जो दूसरे विश्व युद्ध से पहले के वर्षों में हॉकी के खेल में भारतीय हॉकी टीम अपना दबदबा हुआ करता था। उन्होंने अपने 22 साल के करियर में 400 से अधिक गोल किए। हैरत की बात यह कि मैदान पर अपनी गति बढ़ाने के लिए एक बार उन्होंने मैच के दूसरे हाफ में नंगे पैर खेला था।

हिटलर भी था उनके खेल का मुरीद 

मेजर ध्यानचंद (Major Dhyan Chand) की कलाइयों में जादू था। साल 1936 के बर्लिन ओलंपिक में उन्होंने जर्मनी के तानाशाह हिटलर के सामने ही जर्मन हॉकी टीम जो हश्र किया कि हिटलर तमतमा उठा था। दरअसल, 14 अगस्त 1936 को भारत और जर्मनी के बीच बर्लिन ओलंपिक में हॉकी का फाइनल मुकाबला खेला जाना था, लेकिन बारिश की वजह से मैच 15 अगस्त को खेला गया। इस मैच में ध्यानचंद ने जर्मन खिलाड़ियों को चारों खाने चित्त कर दिया। जिसकी बदौलत भारत ने जमर्नी को 8-1 से मात देकर गोल्ड मेडल अपने नाम कर लिया। जर्मनी की इस शर्मनाक हार को देखकर हिटलर इस कदर क्रोधित हुआ कि आधे मुकाबले के बीच ही उठकर स्टेडियम से बहार चला गया। इससे भी बड़ी बात यह कि ध्यानचंद के खेल से वो इतना प्रभावित हुआ कि उसने उन्हें बड़े रैंक के साथ जर्मन आर्मी में भर्ती होने का ऑफर दे दिया। लेकिन ध्यानचंद ने हिटलर के ऑफर को ठुकरा दिया।

1956 में भारतीय सेना से लेफ्टिनेंट के रूप में हुए रिटायर्ड

अपनी 34 साल की सर्विस के बाद आखिरकार अगस्त 1956 में मेजर ध्यानचंद (Major Dhyan Chand) भारतीय सेना से लेफ्टिनेंट के रूप में रिटायर्ड हुए। उसी साल भारत सरकार ने उन्हें भारत के तीसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यही नहीं, सेवानिवृत्त होने के बाद भी उन्होंने खेल में अपना योगदान देना जारी रखा। उन्होंने न सिर्फ पटियाला के राष्ट्रीय खेल संस्थान में मुख्य कोच के रूप में अपनी सेवा दी बल्कि राजस्थान में कई कोचिंग शिविरों में भी पढ़ाया। आखिरकार लीवर कैंसर की वजह से 3 दिसंबर 1979 को इस हॉकी के जादूगर का निधन हो गया। महत्वपूर्ण बात यह कि साल 1928, 1932 और 1936 ओलंपिक में उन्होंने जो योगदान दिया उसकी तुलना भारत के किसी भी खेल में किसी अन्य खिलाड़ी के योगदान से नहीं की जा सकती।

‘राजीव गांधी खेल रत्न’ से बदलकर हुआ ‘मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार’ 

हॉकी के खेल में मेजर ध्यानचंद (Major Dhyan Chand) के अद्भुत योगदान को देखते हुए भारत सरकार ने साल 2012 से उनकी जन्मतिथि पर राष्ट्रीय खेल दिवस मनाने की घोषणा की। उनके जन्म दिवस 29 अगस्त को भारत में राष्ट्रीय खेल दिवस (National Sports Day) के रूप में भी मनाया जाता है। यही नहीं, साल 2021 में भारत सरकार ने भारत के सर्वोच्च खेल सम्मान का नाम ‘राजीव गांधी खेल रत्न’ से बदलकर ‘मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार’ कर दिया। खैर, आजाद भारत का सबसे बड़ा दुर्भाग्य ये था कि उसे मेजर ध्यानचंद के साथ ओलंपिक खेलने का सौभाग्य नहीं मिला। हालांकि उन्हें भारत रत्न देने की मांग एक लंबे अरसे से की जा रही है, लेकिन भारत सरकार अभी तक इसपर कोई निर्णय नहीं कर सकी है। उम्मीद है आगामी वर्षों में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया जाए।  

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