आईएलएंडएफएस घोटाला भारतीय वित्तीय जगत के इतिहास का एक बड़ा धब्बा है। लगभग एक लाख करोड़ रुपये के इस घोटाले ने न सिर्फ बैंकों और निवेशकों को अपितु पूरे देश की अर्थव्यवस्था को भी चरमरा दिया ।
घोटाले का सच
इस घोटाले में तत्कालीन अध्यक्ष रवि पार्थसारथी पर आरोप है कि उन्होंने आईएलएंडएफएस की 350 से अधिक कंपनियों को जालसाजी और फर्जी लेनदेन का केंद्र बना दिया। कंपनी ने जरूरत से आधिक कर्ज लिया और फिर उसे बिना किसी ठोस योजना के विभिन्न परियोजनाओं में लगा दिया।
कंपनी के लेखाकारों पर भी लापरवाही के आरोप लगे। उन्होंने कथित रूप से कंपनी की खराब वित्तीय स्थिति को छुपाया। रेटिंग एजेंसियों पर भी सवाल उठे कि उन्होंने आईएलएंडएफएस की वित्तीय सेहत का सही आकलन क्यों नहीं किया।
घोटाले का प्रभाव
जब आईएलएंडएफएस कर्ज चुकाने में असमर्थ हुई तो पूरे वित्तीय सिस्टम में अफरातफरी मच गई। बैंकों, म्यूचुअल फंडों और बीमा कंपनियों को भारी नुकसान हुआ। निवेशकों का भरोसा भी डगमगा गया। इस घटना से देश की अर्थव्यवस्था में भी तरलता की गिरावट आई।
सरकारी दखल और जांच
सरकार को इस मामले में दखल देना पड़ा। आईएलएफएस का राष्ट्रीयकरण कर लिया गया और कंपनी को संभालने के लिए नए प्रबंधन का गठन किया गया। साथ ही सीबीआई और ईडी जैसी जांच एजेंसियों ने इस घोटाले की जांच शुरू की। कई गिरफ्तारियां भी हुईं।
सबक और भविष्य
आईएलएंडएफएस घोटाले से हमें कई सबक मिले हैं। वित्तीय संस्थाओं को पारदर्शिता और जवाबदेही बनाए रखनी होगी। रेटिंग एजेंसियों को ज्यादा सख्त नियमों की जरूरत है। साथ ही, पूरे वित्तीय सिस्टम में मजबूत नियामक व्यवस्था होनी चाहिए।
यह घोटाला भले ही बीत चुका है, लेकिन इसके प्रभाव अभी भी महसूस किए जाते हैं। उम्मीद है कि इस काले अध्याय से सीख लेकर भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोका जा सकेगा।