अक्सर हम अपने समाज में घरेलू हिंसा के बारे में सुनते या देखते आए हैं। नाम से ही स्पष्ट है कि घरों में परिवार के सदस्य या सदस्यों द्वारा शारीरिक, मानसिक या आर्थिक उत्पीड़न किये जाने को घरेलू हिंसा कहा जाता है। लेकिन घरेलू हिंसा जितनी आम है उससे कहीं ज्यादा “गृहस्थ हिंसा” हमारे समाज को दूषित किये हुए है। अब आप सोच रहे होंगें कि गृहस्थ और घरेलू तो एक ही बात है। लेकिन फ़र्क है। घरेलू हिंसा परिवार का कोई भी सदस्य करता है जैसे सास, ननद, या देवर लेकिन आज हम बात कर रहे हैं गृहस्थ हिंसा की जहाँ एक गृहस्थ जीवन में रहते हुए पति-पत्नी के बीच किसी प्रकार की हिंसा हो या जहाँ पिता द्वारा बच्चे (लड़का या लड़की) पर प्रताड़ना की जाए।
यह वाकई एक गंभीर समस्या है जो लाखों लोगों को आज भी प्रभावित करती है। शहर हो या गाँव, गृहस्थ हिंसा की घटनाएँ आज भी मौजूद है। जागरूक होकर कानूनी मदद से ऐसी हिंसाओं को होने से रोका जा सकता है।
भारत में कानून:
भारत में, गृहस्थ हिंसा से पीड़ित महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा के लिए कई कानून मौजूद हैं। इनमें से कुछ प्रमुख कानून निम्नलिखित हैं:
घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005: यह कानून महिलाओं को उनके पति, ससुराल वालों या अन्य परिवार के सदस्यों द्वारा की जाने वाली हिंसा से बचाता है। इस कानून के तहत, पीड़ित महिला को संरक्षण आदेश, निषेधाज्ञा, गुजारा भत्ता, आवास का अधिकार और मुआवजा प्राप्त करने का अधिकार है।
भारतीय दंड संहिता, 1860: यह कानून दहेज उत्पीड़न, 498A, हत्या, चोट और अपहरण जैसे अपराधों को दंडित करता है जो अक्सर गृहस्थ हिंसा से जुड़े होते हैं।
बाल न्याय (देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2005: यह कानून बच्चों को क्रूरता, उपेक्षा और शोषण से बचाता है।
गृहस्थ हिंसा के समाधान:
गृहस्थ हिंसा की समस्या को समाप्त करने के लिए कई प्रयास किए जा सकते हैं। इनमें शामिल हैं:
1. जागरूकता बढ़ाना: लोगों को गृहस्थ हिंसा के बारे में शिक्षित करना और उन्हें यह समझने में मदद करना महत्वपूर्ण है कि यह स्वीकार्य नहीं है।
2. कानूनों का कठोरता से पालन: गृहस्थ हिंसा से संबंधित कानूनों को कठोरता से लागू किया जाना चाहिए ताकि अपराधियों को दंडित किया जा सके और पीड़ितों को न्याय मिल सके।
3. पीड़ितों का समर्थन: गृहस्थ हिंसा से पीड़ितों को शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक सहायता प्रदान करने के लिए सहायता केंद्र और आश्रय स्थलों की स्थापना की जानी चाहिए।
4. सामाजिक रवैये में बदलाव: समाज में महिलाओं और बच्चों के प्रति नकारात्मक रवैये को बदलने के लिए प्रयास किए जाने चाहिए।
निष्कर्ष:
गृहस्थ हिंसा एक गंभीर सामाजिक समस्या है जिसे समाज के सभी सदस्यों के सामूहिक प्रयासों से ही समाप्त किया जा सकता है। कानून इस समस्या से निपटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं, लेकिन सामाजिक रवैये में बदलाव लाना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।