संपूर्ण क्रांति: जयप्रकाश की अगुवाई में इंदिरा गांधी शासन का विरोध

भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में 1975 का आपातकाल एक महत्वपूर्ण और विवादास्पद घटना है। इस दौरान प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में सत्तावादी नीतियों और प्रशासनिक दुरुपयोग ने जनता को गहरे संकट में डाल दिया। इसी पृष्ठभूमि में जयप्रकाश नारायण (जेपी) द्वारा चलाया गया संपूर्ण क्रांति आंदोलन ने एक नई दिशा दी और इंदिरा गांधी शासन की नींव हिला दी।

संपूर्ण क्रांति का आरंभ

5 जून 1974 को पटना के गांधी मैदान में लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने संपूर्ण क्रांति का नारा दिया। यह नारा महज एक आंदोलन का प्रतीक नहीं था, बल्कि यह एक व्यापक सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक बदलाव की मांग थी। जेपी ने कहा, “यह क्रांति है। हम यहां केवल बिहार विधानसभा भंग करने की मांग के साथ नहीं आए हैं। यह हमारे सफर की पहली कामयाबी होगी। हमें अभी बहुत आगे जाना है।”

आंदोलन की पृष्ठभूमि

1974 में गुजरात के छात्रों ने खाद्य कीमतों में वृद्धि और बढ़ती फीस के विरोध में आंदोलन शुरू किया, जो बाद में नवनिर्माण आंदोलन के रूप में बदल गया। इस आंदोलन ने महंगाई, असमानता, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी जैसे मुद्दों को उठाया। गुजरात के एलडी कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से शुरू हुआ यह आंदोलन व्यापक जन समर्थन पाकर एक राष्ट्रीय आंदोलन बन गया। उसी वर्ष बिहार में भी छात्र आंदोलन शुरू हुआ, जिसने जेपी को अपने नेतृत्व में संपूर्ण क्रांति का नारा देने के लिए प्रेरित किया।

जेपी का नेतृत्व

जेपी ने गांधी के मूल्यों को आधार मानकर संपूर्ण क्रांति की बात की। उनके अनुसार, संपूर्ण क्रांति का मतलब राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में बदलाव से था। उन्होंने सत्ता के लोभ से दूर रहकर आंदोलन का नेतृत्व किया और छात्रों के आग्रह पर आंदोलन की बागडोर संभाली। जेपी का मानना था कि जब तक व्यक्ति की जिंदगी में पूरी तरह बदलाव नहीं होगा, तब तक उसे क्रांति नहीं कहा जा सकता।

आपातकाल की घोषणा

25 जून 1975 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा की, जिससे नागरिक स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक अधिकार निलंबित हो गए। इस दौरान मीडिया पर सेंसरशिप लगाई गई, विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया गया और लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन हुआ। इस सत्तावादी कदम ने देश में आक्रोश और असंतोष की लहर पैदा कर दी।

शाह आयोग की रिपोर्ट

1977 में शाह आयोग की नियुक्ति की गई, जिसने आपातकाल के दौरान हुई ज्यादतियों की जांच की। न्यायमूर्ति जेसी शाह के नेतृत्व में, आयोग ने खुलासा किया कि इंदिरा गांधी और उनके सहयोगियों ने सत्ता का दुरुपयोग कर राजनीतिक विरोधियों को दबाने का प्रयास किया। रिपोर्ट में कहा गया कि आपातकाल का कोई वैध आधार नहीं था और यह केवल सत्ता में बने रहने का एक तरीका था।

आंदोलन की सफलता और प्रभाव

संपूर्ण क्रांति आंदोलन ने देशभर में एक नई चेतना जगाई। बिहार में साहित्यकारों, कवियों और लेखकों ने भी इस आंदोलन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कवि गोपी वल्लभ सहाय, नागार्जुन, सत्य नारायण, रवींद्र राजहंस और कई अन्य कवियों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से जनता को जागरूक किया और तानाशाही सरकार के खिलाफ आवाज उठाई।

आंदोलन का परिणाम

संपूर्ण क्रांति आंदोलन के परिणामस्वरूप 1977 के आम चुनावों में कांग्रेस पार्टी को भारी हार का सामना करना पड़ा और जनता पार्टी सत्ता में आई। यह भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जिसने लोकतांत्रिक मूल्यों की पुनः स्थापना की। हालांकि, जेपी का सपना पूरी तरह साकार नहीं हो सका, और वे इस निराशा के साथ 1979 में इस दुनिया से विदा हो गए।

साहित्य और कवियों की भूमिका

इस आंदोलन के दौरान बिहार के साहित्यकारों और कवियों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से आंदोलन को समर्थन दिया और जनता को जागरूक किया। गोपी वल्लभ सहाय की कविताएं, जैसे “जहां-जहां जुल्मों का गोल, बोल जवानों, हल्ला बोल” और “नेताओं को करो प्रणाम; भज लो राम, भज लो राम” ने आंदोलन में एक नई ऊर्जा भरी। नागार्जुन की कविताओं ने भी जनता को प्रेरित किया और कांग्रेस के खिलाफ जनमत बनाने में मदद की। उनकी सबसे प्रमुख और बहुचर्चित कविता थी- इंदु जी क्या हुआ आपको।

पूरी कविता को यहाँ पढ़ें-

संपूर्ण क्रांति का प्रभाव

संपूर्ण क्रांति आंदोलन ने भारतीय राजनीति में एक नई दिशा दी। यह आंदोलन सिर्फ एक राजनीतिक विरोध नहीं था, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव की भी मांग कर रहा था। जेपी का मानना था कि जब तक समाज में न्याय, समानता और स्वतंत्रता स्थापित नहीं होती, तब तक सच्ची क्रांति नहीं हो सकती।

जेपी की विरासत

जेपी ने अपनी पूरी जिंदगी समाज सुधार और लोकतंत्र की मजबूती के लिए समर्पित कर दी। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन से लेकर 1974 की संपूर्ण क्रांति तक, जेपी ने हमेशा सामाजिक न्याय और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया। उन्होंने सर्वोदय और भूदान आंदोलन के माध्यम से समाज में बदलाव लाने की कोशिश की, लेकिन संपूर्ण क्रांति आंदोलन उनकी सबसे महत्वपूर्ण विरासत साबित हुई।

संपूर्ण क्रांति आंदोलन ने भारतीय लोकतंत्र को एक नया मोड़ दिया और जनता को सत्ता के दुरुपयोग के खिलाफ लड़ने की प्रेरणा दी। जेपी की नेतृत्व में यह आंदोलन भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन का प्रतीक बना। उनकी विचारधारा और संघर्ष की विरासत आज भी प्रासंगिक है और हमें यह याद दिलाती है कि लोकतंत्र की रक्षा के लिए सतर्क और जागरूक रहना आवश्यक है।

एक नई सुबह: संपूर्ण क्रांति का संदेश

जेपी का संपूर्ण क्रांति आंदोलन हमें यह सिखाता है कि सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक बदलाव की आवश्यकता हमेशा बनी रहती है। हमें अपने लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए और सत्ता के दुरुपयोग के खिलाफ संघर्ष करना चाहिए। संपूर्ण क्रांति का संदेश आज भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना 1974 में था। 

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