भारत में महिलाओं के खिलाफ उत्पीड़न को रोकने और उनका सशक्तिकरण करने के लिए कई कानून मौजूद हैं। इनमें से कुछ प्रमुख कानून निम्नलिखित हैं:
भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), 1860:
धारा 354: महिला की लज्जा भंग करने के लिए हमला
धारा 354A: यौन उत्पीड़न
धारा 354B: बलपूर्वक स्त्री को मैथुन के लिए मजबूर करना
धारा 376: बलात्कार
धारा 377: अप्राकृतिक यौन संबंध
धारा 406: विश्वास का आपराधिक उल्लंघन या आपराधिक विश्वासघात
धारा 421: धोखाधड़ी से संपत्ति हथियाना
घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005: यह अधिनियम घरेलू हिंसा को परिभाषित करता है और पीड़ित महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करता है। इसमें शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और आर्थिक हिंसा शामिल है।
कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013: यह अधिनियम कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न को रोकने और उनका निवारण करने का प्रावधान करता है। इसमें शिकायत दर्ज करने, जांच करने और दोषियों को दंडित करने की प्रक्रिया शामिल है।
लैंगिक उत्पीड़न से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (POCSO), 2012: यह अधिनियम 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों के खिलाफ यौन उत्पीड़न को रोकने और उनका निवारण करने का प्रावधान करता है। इसमें कठोर दंड का प्रावधान है।
दहेज निषेध अधिनियम, 1961: यह अधिनियम दहेज प्रथा को अपराध घोषित करता है और पीड़ित महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करता है।
इन कानूनों के अलावा, महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए कई अन्य कानून भी हैं, जैसे कि समान वेतन अधिनियम, 1976, महिला ग्राम पंचायत सदस्यों का चुनाव अधिनियम, 1995, और मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि कानून केवल तभी प्रभावी होते हैं जब उनका ठीक से कार्यान्वयन किया जाए। महिलाओं को अपने अधिकारों के बारे में जागरूक होना चाहिए और कानूनी सहायता लेने में संकोच नहीं करना चाहिए।
यहाँ कुछ संसाधन दिए गए हैं जो महिलाओं को कानूनी सहायता प्राप्त करने में मदद कर सकते हैं:
राष्ट्रीय महिला आयोग: http://ncw.nic.in/
दहेज हेल्पलाइन: 181
चाइल्ड हेल्पलाइन: 1098
महिला हेल्पलाइन: 1091
यह भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि सामाजिक जागरूकता और लैंगिक समानता को बढ़ावा देना महिला उत्पीड़न को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। तभी महिला उत्पीड़न के दर में कमी आएगी।