विनायक दामोदर सावरकर जिन्हें सब वीर सावरकर के नाम से जानते हैं, उनका जन्म 28 मई 1883 को महाराष्ट्र के नासिक के पास स्थित भगूर गाँव में हुआ था। वे एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक, वकील, और लेखक थे, जिन्होंने भारत की स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सावरकर हिंदू राष्ट्रवाद और हिंदुत्व की विचारधारा के कट्टर समर्थक थे, जिसे उन्होंने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “हिंदुत्व: हू इज ए हिंदू?” में विस्तार से बताया।
ब्रिटिश शासन के दौरान झेली कई यातनाएँ
सावरकर ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लिया, जिसके कारण उन्हें औपनिवेशिक अधिकारियों द्वारा गंभीर प्रताड़ना का सामना करना पड़ा। वे लंदन में इंडिया हाउस से जुड़े थे, जो भारतीय छात्रों और क्रांतिकारियों का केंद्र था। उनकी पुस्तक “द फर्स्ट वॉर ऑफ इंडियन इंडिपेंडेंस” को ब्रिटिश सरकार ने उसके भड़काऊ सामग्री के कारण प्रतिबंधित कर दिया।
1. गिरफ्तारी और मुकदमा: 1909 में, सावरकर को नासिक के कलेक्टर ए.एम.टी. जैक्सन की हत्या में संलिप्तता के आरोप में गिरफ्तार किया गया। उन्हें आजीवन कारावास की दो सजाएँ सुनाई गईं, कुल मिलाकर पचास साल की सजा, जो अंडमान सेलुलर जेल में काटनी थी, जिसे “काला पानी” के नाम से जाना जाता है।
2. कैद की कठिनाइयाँ: सावरकर ने अंडमान द्वीप में अपनी कैद के दौरान अमानवीय परिस्थितियों का सामना किया। उन्होंने एकांतवास, कठोर श्रम, अपर्याप्त भोजन, और बुनियादी सुविधाओं की कमी को सहा। इन कठिनाइयों के बावजूद, वे लिखते रहे और अपने साथी कैदियों को प्रेरित करते रहे।
3. रिहाई की याचिकाएँ: सावरकर ने ब्रिटिश अधिकारियों को कई याचिकाएँ दीं, जिसमें उन्होंने राजनीतिक गतिविधियों से दूर रहने का वादा किया, बदले में अपनी रिहाई की मांग की। उनके आलोचक अक्सर इन याचिकाओं को उनके कथित समझौते के रूप में देखते हैं, लेकिन समर्थकों का कहना है कि उन्होंने इन अवसरों का उपयोग बेहतर स्थिति प्राप्त करने और अपने संघर्ष को अधिक प्रभावी ढंग से जारी रखने के लिए किया।
कांग्रेस पार्टी का रवैया
वीर सावरकर का भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) के साथ संबंध तनावपूर्ण और अविश्वास से भरा हुआ था। कांग्रेस, महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में, स्वतंत्रता संग्राम के लिए अहिंसात्मक दृष्टिकोण अपनाती थी, जो सावरकर के सशस्त्र प्रतिरोध के समर्थन से बिल्कुल विपरीत था।
1. विचारधारा में भिन्नता: सावरकर की हिंदुत्व की विचारधारा और उनकी हिंदू पहचान पर जोर कांग्रेस की धर्मनिरपेक्ष और समावेशी भारत की दृष्टि के विपरीत था। यह मूलभूत वैचारिक भिन्नता सावरकर और कांग्रेस नेतृत्व के बीच दरार का कारण बनी।
2. मान्यता की कमी: गांधी और नेहरू के विपरीत, जो भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के चेहरे बने, सावरकर को समान स्तर की मान्यता और सम्मान नहीं मिला। उनके योगदान को अक्सर कांग्रेस पार्टी द्वारा प्रोत्साहित मुख्यधारा की कथा द्वारा ओझल कर दिया गया।
3. स्वतंत्रता के बाद का हाशिए पर होना: भारत की स्वतंत्रता के बाद, सावरकर को कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा हाशिए पर रखा गया। उन्हें 1948 में महात्मा गांधी की हत्या की साजिश में भी शामिल किया गया, हालांकि बाद में उन्हें बरी कर दिया गया। इस संबंध ने उनकी प्रतिष्ठा को और धूमिल किया और उनकी राजनीतिक अलगाव को बढ़ाया।
विरासत और मान्यता
विवादों के बावजूद, वीर सावरकर भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति बने रहे। स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान और सामाजिक सुधारों के लिए उनकी वकालत, जैसे अस्पृश्यता का उन्मूलन और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का प्रचार, को कई लोगों द्वारा सराहा जाता है। हाल के वर्षों में, उनके जीवन और कार्यों में एक नया रुचि उत्पन्न हुई है, उनके विरासत को अधिक संतुलित तरीके से पुनः मूल्यांकन करने के प्रयासों के साथ।
वीर सावरकर का जीवन व्यक्तिगत बलिदानों और उनके आदर्शों के प्रति अडिग प्रतिबद्धता से भरा था। यद्यपि उनके तरीके और विश्वास उनके समकालीनों से भिन्न थे, स्वतंत्रता की लड़ाई में उनकी भूमिका अचूक है। उनके जीवन के प्रति मान्यता और सम्मान की कमी उनके समय के जटिल गतिशीलता और स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान देने वाले विभिन्न विचारधाराओं को दर्शाती है।
आज के युवाओं के लिए प्रेरणा
वीर सावरकर का जीवन और संघर्ष आज के युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनके साहस, समर्पण और अडिग इच्छाशक्ति ने उन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नायक के रूप में स्थापित किया है। उनके बलिदान और संघर्ष की कहानी को समझना और सम्मानित करना महत्वपूर्ण है, ताकि हम उनकी विरासत को संजो सकें और उनके आदर्शों को आगे बढ़ा सकें। वीर सावरकर, कल के नायक ही नहीं, बल्कि आज के भी नायक हैं, जिनकी कहानी हर भारतीय युवा को प्रेरित करती है और भारत के उज्ज्वल भविष्य की नींव रखती है। विनायक श्री वीर सावरकर को आज उनकी जयंती पर शत-शत नमन और भावपूर्ण श्रद्धांजलि।