9 जून (बीती रात) को जम्मू और कश्मीर के रियासी जिले में एक भीषण आतंकवादी हमला हुआ। हमला पाकिस्तानी प्रायोजित आतंकी समूह ने करवाया जिसने 10 हिंदू तीर्थयात्रियों की जान ले ली और 33 गंभीर रूप से घायल हो गए। ये तीर्थयात्री शिवखोड़ी से लौट रहे थे जब उनकी बस पर ये आतंकी हमला हुआ।
इस हमले में एक मासूम बच्चे की भी जान चली गई। जो बच गए उन्होंने अपना अनुभव साझा किया कि आतंकियों ने पहले गोलियों से हमला कर ड्राइवर की जान ली जिससे बस खाई में गिर गई। आतंकवादियों ने बस के खाई में गिरने के बाद भी गोलीबारी जारी रखी, ताकि कोई भी जीवित न बच सके। यात्री उस समय चुपचाप पड़े रहे, जैसे कि वे मर चुके हों।
एक प्रत्यक्षदर्शी ने बताया, “जब हम शिवखोड़ी मंदिर से दर्शन कर लौट रहे थे, अचानक बस पर गोलीबारी शुरू हो गई। खिड़कियाँ टूट गईं और हर कोई नीचे उतरने की कोशिश करने लगा। कुछ ही पलों में, हमारी बस खाई में गिर गई। इसके बाद भी, आतंकवादियों ने कुछ समय तक गोलीबारी जारी रखी।”
अभी तक 10 श्रद्धालुओं की मौत और 33 के घायल होने की खबर मिली है। कुछ लोगों की अभी भी तलाश जारी है या वे अपने परिवार से अब तक मिल नहीं पाए हैं।
लेकिन हम यहाँ सिर्फ इस हमले की चर्चा करने नहीं आए हैं। हम यहाँ आए हैं कुछ बड़े-बड़े, बुद्धिजीवी लोगों से सवाल पूछने, जो सिस्टम को कंट्रोल करने का दंभ भरते हैं। ऐसे बॉलीवुडिया गैंग के मेम्बरानों से भी सवाल करने जिन सबकी आँखें अभी कुछ दिनों पहले राफ़ाह पर टिकी हुई थीं। यह पूछने– क्या आज तुम्हारी आँखों में मोतियाबिंद हो गया जो खामोश बैठे हो? क्या आज तुमने अपने आकाओं के प्रति वफादारी की पट्टी बांध ली, जो अब कुछ दिख नहीं रहा है?
आज तुम्हारी आँखें क्यों नहीं हैं जम्मू के उन हिन्दू श्रद्धालुओं पर जिनपर हमला सिर्फ इसलिए किया गया क्योंकि वे हिन्दू हैं? उस दिन तुम्हारी आँखों को क्या हो गया था जिस दिन कन्हैयालाल की गर्दन धड़ से अलग कर दी गई थी? उमेश कोले, बदायूं के मासूम बच्चे, नेहा हिरेमथ और न जाने कितने सैकड़ों, अनगिनत हिन्दू सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी धार्मिक हमलों के शिकार हो रहे हैं। पाकिस्तान और बांग्लादेश तो ज्यादा दूर भी नहीं हैं फिर भी तुम्हारी आँखें आज तक वहाँ कभी नहीं पहुंचीं लेकिन 4000 किलोमीटर पार ज़रूर चली गईं! अपने घर में क्या हो रहा है उससे बेखबर, दूर-दराज़ के देशों में होनेवाली धार्मिक हिंसा और युद्ध देखकर तुम्हारी छाती में दूध उतर आता है!
तुम उफ्फ़ तक नहीं करोगे, क्योंकि मरने वाले हिन्दू हैं।
हिंदुओं के नरसंहार पर, तुम सब अपनी आँखें क्यों मूँद लेते हो? जब तक आकाओं का “आँखें खोलने का फरमान” नहीं आता, तब तक आँखें मूँदे बैठे रहते हो! क्योंकि तुमने अपना ईमान, अपनी नैतिकता किसी धर्म विशेष के आगे गिरवी रख दी है और अपनी selective humanity की आड़ में propaganda का चूरन बेच रहे हो!
जिन्होंने इस हमले को अंजाम दिया उन्हें जवाब तो मिलेगा ही। लेकिन उनसे बड़े आतंकी मानसिकता वाले अपराधी तुम हो- जो चुप रहकर, खामोश रहकर आतंकियों को एक अप्रत्यक्ष (indirect) support करते हो और उनका मनोबल यूं ही बढ़ता रहता है। अपनी असली आँखें खोलो वरना अंधेरे के दलदल में ऐसा फँसोगे कि कोई बाहर नहीं निकाल पाएगा।