जब हम विश्व के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देश का प्रतिनिधित्व करते हैं तो समझ लीजिए कि यह एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। जिम्मेदारी बड़ी है लेकिन इसे पूरा करने की विधि छोटी ही है- बस एक वोट। हम अपना एक कीमती वोट देकर अपने देश को कितना आगे ले जा सकते हैं इसका हुमएन अनुमान भी नहीं है। लेकिन इससे पहले कि हम देश के विकास की कीमत समझें, हमें एक मतदाता के रूप में अपनी कीमत समझनी होगी। देश के लिए क्या और कौन बेहतर है यह एक मतदाता जरूर जानता है और उसे चुनना हमारा प्रथम कर्तव्य है तभी हम अपने चुने हुए नेता से अपने अधिकारों की मांग कर सकते हैं।
यह सच है कि पिछले कुछ चुनावी चक्रों में, भारतीय मतदाताओं की भागीदारी कम हुई है। 2019 के लोकसभा चुनाव में, मतदान दर 67.36% थी, जो 1962 के बाद सबसे कम थी।
इस रुझान के पीछे कई कारण हो सकते हैं:
1. राजनीतिक दलों और नेताओं में निराशा-
कुछ मतदाता राजनीतिक दलों और नेताओं से निराश होते हैं क्योंकि बीते समय में उन्होंने अपने किये हुए वायदों को पूरा नहीं किया। यह नाराज़गी जनता उन्हें वोट न देके जताती है। उन्हें लगता है कि उनकी आवाज़ से चुनाव में कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है, इसलिए वे वोट देने की परेशानी नहीं उठाते।
2. चुनावी प्रक्रिया में विश्वास की कमी-
कुछ लोगों को चुनावी प्रक्रिया में धांधली या हेरा-फेरी का डर लगा रहता है। वे सोचते हैं कि चुनाव परिणाम पहले से ही तय हैं, इसलिए वोट देने का कोई मतलब नहीं है। या तो वे इस बात से भी निश्चिंत रहते हैं या दुखी कि “कुछ भी कर लो, चुनाव वह फलां पार्टी ही जीतेगी”। और बस यही सोच कर वे वोट डालने नहीं जाते।
3. व्यस्त जीवनशैली और जागरूकता की कमी-
व्यस्त जीवनशैली वाले लोगों के लिए मतदान के लिए समय निकालना मुश्किल हो सकता है। कुछ मतदाता अपने वोटिंग क्षेत्र में नहीं रहते और किसी और शहर में काम करते हैं और चुनाव के दिन उपस्थित नहीं हो पाते।
कुछ युवा मतदाताओं को चुनाव और राजनीतिक प्रक्रिया के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं हो सकती है। वे अपने वोटिंग की कीमत इस उम्र में शायद नहीं समझते।
4. वैकल्पिक विकल्पों का अभाव-
कुछ मतदाताओं को ऐसा लग सकता है कि उनके पास चुनने के लिए कोई अच्छा उम्मीदवार या राजनीतिक दल नहीं है। वे मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था से नाखुश हो सकते हैं, लेकिन उन्हें नहीं पता कि इसे कैसे बदला जाए।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि सभी भारतीय मतदाता चुनावों में अपनी रुचि खो रहे हैं। कई लोग अभी भी चुनावी प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं और मानते हैं कि उनकी आवाज मायने रखती है।
चुनाव में मतदाताओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए कई प्रयास किए जा सकते हैं। जैसे:
- राजनीतिक दलों और नेताओं को अधिक जवाबदेह बनाना: चुनावी सुधारों को लागू करना जो चुनावी प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी और निष्पक्ष बनाते हैं।
- मतदाता शिक्षा और जागरूकता बढ़ाना: युवा मतदाताओं को चुनाव और राजनीतिक प्रक्रिया के बारे में शिक्षित करना।
- मतदान को आसान और अधिक सुलभ बनाना: मतदान के घंटों का विस्तार करना और मतदान केंद्रों की संख्या में वृद्धि करना।
यह महत्वपूर्ण है कि हम सभी चुनावों में भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए मिलकर काम करें। एक मजबूत लोकतंत्र के लिए यह आवश्यक है कि हर नागरिक चुनावी प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग ले और अपनी आवाज सरकार तक पहुंचाए।
यह ध्यान रखना भी महत्वपूर्ण है कि यह एक जटिल मुद्दा है जिसके कई पहलू हैं। उपरोक्त केवल कुछ संभावित कारण हैं कि भारतीय मतदाताओं की चुनाव में रुचि कम क्यों हो रही है। इसमें अधिक शोध और चर्चा की आवश्यकता है ताकि इस प्रवृत्ति को पूरी तरह से समझा जा सके और इसे संबोधित करने के लिए प्रभावी समाधान विकसित किए जा सकें। लेकिन इन सबके परे, वोट देना या मतदान देने को हम अपनी नैतिक जिम्मेदारी समझें तो राष्ट्र-कल्याण संभव है।