यूँ तो हिन्दुत्व एक विचारधारा है जिसका पालन सभी हिन्दू जाने- अनजाने सदियों से करते आ रहे हैं। यह हमारे जीवनशैली और पहचान का अभिन्न अंग है जिसपर सभी हिंदुओं को गर्व भी होगा। लेकिन पिछले एक दशक से हिन्दुत्व एक सांस्कृतिक पहचान कम, बल्कि राजनीतिक मुद्दा ज्यादा बन गया है।
खासकर चुनावों में हिंदुत्व की चर्चा और कुचर्चा होती ही रहती है। यह धर्मसंगत कम, राजनीति-संगत ज्यादा हो गया है। इसके कई कारण हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं:
1. सामाजिक-राजनीतिक माहौल:
भारत में, धार्मिक पहचान हमेशा से ही सामाजिक और राजनीतिक गतिशीलता का एक महत्वपूर्ण कारक रही है। पिछले कुछ दशकों में, हिंदुत्ववादी विचारधारा का उदय हुआ है, जो हिंदू धर्म और संस्कृति की रक्षा और प्रचार पर जोर देती है। इस विचारधारा ने कई राजनीतिक दलों को प्रभावित किया है, जिन्होंने इसका इस्तेमाल चुनावी लाभ के लिए करना शुरू कर दिया है।
2. धार्मिक ध्रुवीकरण:
हिंदुत्ववादी नेता अक्सर मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों को हिंदू धर्म और संस्कृति के लिए खतरा बताते हैं। इससे सांप्रदायिक तनाव और धार्मिक ध्रुवीकरण बढ़ गया है, जिसका फायदा राजनीतिक दल उठाते हैं।
3. राष्ट्रीय सुरक्षा:
आतंकवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों का इस्तेमाल भी हिंदुत्व के एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए किया जाता है। राजनीतिक दल यह दावा करते हैं कि वे ही हिंदुओं और भारत की रक्षा कर सकते हैं, जिससे हिंदुत्ववादी भावनाओं को और भड़काया जाता है।
4. सांस्कृतिक मुद्दे:
गोहत्या, लव जिहाद, और धर्मांतरण जैसे मुद्दों का इस्तेमाल भी हिंदुत्ववादी एजेंडे को बढ़ावा देने के लिए किया जाता है। इन मुद्दों को अक्सर सांस्कृतिक युद्ध के रूप में पेश किया जाता है, जिससे हिंदू मतदाताओं को एकजुट करने में मदद मिलती है।
5. जातिवाद और सामाजिक विभाजन:
कुछ मामलों में, हिंदुत्व का इस्तेमाल जातिवाद और सामाजिक विभाजन को मजबूत करने के लिए भी किया जाता है।यह कुछ राजनीतिक दलों के लिए एक रणनीति है जो हाशिए पर पड़े समूहों को एकजुट करके वोट हासिल करना चाहते हैं।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि हिंदुत्व एक जटिल अवधारणा है और इसकी कई अलग-अलग व्याख्याएं हैं।
यह भी सच है कि सभी हिंदू, हिंदुत्व की विचारधारा का समर्थन नहीं करते हैं। फिर भी, चुनावों में हिंदुत्व एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया है और यह भारतीय राजनीति को आकार एवं महत्व देना जारी रखेगा।