छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक दिवस: भारतीय इतिहास का स्वर्णिम अध्याय

हम सभी छत्रपति शिवाजी महाराज (Chhatrapati Shivaji Maharaj) के राज्याभिषेक दिवस की 350वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। यह दिन भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जब शिवाजी महाराज ने खुद को एक स्वतंत्र शासक घोषित किया और हिंदू स्वराज्य की नींव रखी। यह घटना 6 जून 1674 को ज्येष्ठ शुद्ध त्रयोदशी, शालिवाहन शक 1596 के दिन घटित हुई थी। इस अद्वितीय अवसर ने महाराष्ट्र और संपूर्ण भारतवर्ष में स्वाधीनता और स्वाभिमान की भावना को प्रज्वलित किया।

इतिहास और महत्व

छत्रपति शिवाजी महाराज (Chhatrapati Shivaji Maharaj) का राज्याभिषेक एक ऐतिहासिक और व्यापक समारोह था, जिसे महाराष्ट्र क्षेत्र में नवचैतन्य के रूप में मनाया गया था। लंबे समय तक गुलामी झेलने के बाद, इस दिन ने स्वतंत्रता और स्वाभिमान की भावना को जगाया। राज्याभिषेक के समय, शिवाजी महाराज ने “छत्रपति” की उपाधि धारण की, जिसका अर्थ है स्वतंत्र और सर्वशक्तिमान। इस अवसर पर एक अष्टप्रधान मंडल का गठन किया गया, जिसमें राज्य के विभिन्न प्रशासनिक पदों का वितरण किया गया।

राज्याभिषेक की तैयारियाँ महीनों पहले ही शुरू हो गई थीं। इस समारोह के लिए देश भर से ब्राह्मणों को आमंत्रित किया गया था। रायगढ़ पर लगभग एक लाख लोग एकत्र हुए थे, जिनके लिए चार महीनों तक भव्य आवास और भोजन की व्यवस्था की गई थी। इस समारोह में सरदारों, अन्य राज्यों के प्रतिनिधियों, विदेशी व्यापारियों और आम लोगों ने भाग लिया। हर दिन शिवाजी महाराज धार्मिक अनुष्ठानों और पूजा में लीन रहते थे।

शिवाजी महाराज (Shivaji Maharaj) ने अपनी माता जीजाबाई का आशीर्वाद लेकर विभिन्न मंदिरों में पूजा-अर्चना की। 12 मई 1674 को वे रायगढ़ लौटे और चार दिन बाद उन्होंने प्रतापगढ़ स्थित भवानी माता का दर्शन किया, जहां उन्होंने आधे मण का सोने का छत्र चढ़ाया। 21 मई को रायगढ़ पर फिर से धार्मिक अनुष्ठान शुरू हुए। 28 मई को महाराज ने तपस्या की और अगले दिन दो रानियों के साथ पुनर्विवाह किया।

राज्याभिषेक समारोह

राज्याभिषेक 6 जून 1674 को सम्पन्न हुआ। इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान, मंत्रोच्चार और धार्मिक अनुष्ठानों के साथ शुरुआत हुई। इस अवसर पर शिवाजी महाराज ने सफेद वस्त्र धारण किए थे और उनके गले में फूलों की माला थी। दो मुख्य अनुष्ठान थे: राजा का अभिषेक और सिर पर छत्र रखना। शिवाजी महाराज एक सोने से मढ़े मंच पर बैठे, जबकि सोयराबाई और बाल संभाजी राजे उनके पास थे। अष्टप्रधान मंडल के आठ प्रमुखों ने विभिन्न नदियों से लाए गए जल के कलशों से महाराज का अभिषेक किया।

इस समय मंत्रोच्चार और संगीत वाद्यों की ध्वनि आकाश में गूंज रही थी। 16 सुवासिनियों ने पंजरती दिखाई। इसके बाद शिवाजी महाराज ने लाल वस्त्र धारण किए, आभूषण पहने और गले में फूलों की माला डाली। उन्होंने अपने ढाल, तलवार और धनुष-बाण की पूजा की और शुभ मुहूर्त में सिंहासन कक्ष में प्रवेश किया। सिंहासन कक्ष को 32 शुभ प्रतीकों से सजाया गया था। शिवाजी महाराज ने 32 मन सोने से मढ़े सिंहासन पर बैठकर ‘शिवराज की जय’ के नारों के बीच राज्याभिषेक संपन्न किया।

अष्टप्रधान मंडल

राज्याभिषेक के समय शिवाजी महाराज (Shivaji Maharaj) ने मंत्रियों को संस्कृत नाम दिए और उनकी योग्यता के आधार पर पदों का वितरण किया। अष्टप्रधान मंडल के प्रमुख इस प्रकार थे:

1. प्रधानमंत्री (पेशवा) – मोरोपंत त्र्यंबक पिंगले

2. पंत अमात्य – रामचंद्र नीलकंठ

3. पंत सचिव – अनाजी पंत दत्तो

4. मंत्री वकनीस – दत्ताजी पंत त्र्यंबक

5. सेनापति (सर्नोबत) – हंबीर राव मोहिते

6. पंत सुमंत (दबीर) – रामचंद्र त्र्यंबक

7. न्यायाधीश – नीराजपंत रावजी

8. पंडितराव (दानाध्यक्ष) – मोरेश्वर पंडित

समारोह की विशेषताएँ और महत्व

शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक एक अभूतपूर्व और भव्य समारोह था। इस आयोजन में भारत के विभिन्न हिस्सों से ब्राह्मण, सरदार, विदेशी व्यापारी और आम जन ने भाग लिया। राज्याभिषेक के दौरान चार महीनों तक रायगढ़ पर लाखों लोगों के रहने और खाने की व्यवस्था की गई थी। हर दिन धार्मिक अनुष्ठान और पूजा-अर्चना की जाती थी।

शिवाजी महाराज ने राज्याभिषेक के समय अपने राज्य के प्रमुखों को संस्कृत नाम दिए और उनकी योग्यता के आधार पर पदों का वितरण किया। राज्य के प्रशासन को सुचारू रूप से चलाने के लिए अष्टप्रधान मंडल का गठन किया गया, जिसमें प्रत्येक मंत्री की जिम्मेदारी तय की गई। इस प्रकार, शिवाजी महाराज ने एक संगठित और सुव्यवस्थित प्रशासनिक ढांचा स्थापित किया।

राज्याभिषेक समारोह में शिवाजी महाराज का आभूषणों और शाही परिधान में सजना, उन्हें सोने के सिंहासन पर बिठाना और मंत्रोच्चार के बीच उनका अभिषेक करना, यह सभी घटनाएँ इस समारोह की भव्यता और महत्व को दर्शाती हैं। इस अवसर पर शिवाजी महाराज ने सोने और चांदी के फूलों की वर्षा की, जो उनकी उदारता और प्रजा के प्रति उनके प्रेम का प्रतीक था।

वर्तमान संदर्भ और शिवाजी महाराज के आदर्श

आज, छत्रपति शिवाजी महाराज (Chhatrapati Shivaji Maharaj) के राज्याभिषेक की 350वीं वर्षगांठ मना रहे हैं, हमें उनके आदर्शों और दृष्टिकोण को याद करने की आवश्यकता है। शिवाजी महाराज ने न केवल एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना की, बल्कि हिंदू संस्कृति और परंपराओं का संरक्षण और संवर्धन भी किया। उनके द्वारा स्थापित प्रशासनिक ढांचा और उनकी नीतियाँ आज भी प्रेरणा स्रोत हैं। भारतीय सभ्यता के संरक्षण और प्रगति के लिए हमें शिवाजी महाराज के मार्गदर्शन का पालन करना चाहिए। उनके आदर्शों को अपनाकर हम अपने देश को समृद्ध और शक्तिशाली बना सकते हैं।

छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक दिवस हमें यह संदेश देता है कि स्वराज्य, स्वाभिमान और संस्कृति का सम्मान करना और उसे बनाए रखना हमारा कर्तव्य है। आज, इस ऐतिहासिक दिन पर, हमें अपने राष्ट्र और संस्कृति की रक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को नवीनीकृत करना चाहिए। शिवाजी महाराज के आदर्शों पर चलते हुए, हम एक मजबूत और स्वतंत्र भारत की कल्पना को साकार कर सकते हैं।

शिवाजी महाराज का जीवन और उनके आदर्श हमें यह सिखाते हैं कि अपने धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए दृढ़ संकल्प और साहस की आवश्यकता है। उन्होंने अपने जीवन के हर क्षण में यह सिद्ध किया कि यदि हमारे मन में दृढ़ संकल्प और आत्मविश्वास हो, तो कोई भी बाधा हमें हमारे लक्ष्य से भटका नहीं सकती। आज, जब हम इस महान योद्धा के राज्याभिषेक दिवस को मना रहे हैं, हमें उनके जीवन से प्रेरणा लेकर अपने जीवन में भी साहस, दृढ़ता और स्वाभिमान के आदर्शों को अपनाना चाहिए।

छत्रपति शिवाजी महाराज (Chhatrapati Shivaji Maharaj) के राज्याभिषेक की यह वर्षगांठ हमें एक अवसर देती है कि हम उनकी विरासत को याद करें और आने वाली पीढ़ियों को उनके अद्वितीय योगदान के बारे में बताएं। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि कठिनाइयों और चुनौतियों का सामना करते हुए भी हमें अपने आदर्शों और मूल्यों पर अडिग रहना चाहिए। शिवाजी महाराज के आदर्शों को अपनाकर ही हम एक सशक्त और स्वाभिमानी भारत का निर्माण कर सकते हैं। उनके जीवन से प्रेरणा लेते हुए हमें अपने देश और संस्कृति की रक्षा और संवर्धन के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए।

इस प्रकार, छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक दिवस भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण और प्रेरणादायक घटना है। यह हमें हमारे सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर की याद दिलाता है और हमें अपने राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों की याद दिलाता है। आइए, इस महान दिन पर, हम सब मिलकर छत्रपति शिवाजी महाराज के आदर्शों को अपनाने का संकल्प लें और अपने देश को एक मजबूत, स्वाभिमानी और स्वाधीन राष्ट्र बनाने की दिशा में आगे बढ़ें।

आज के संदर्भ में शिवाजी महाराज का महत्व

वर्तमान समय में जब हम अपनी सांस्कृतिक पहचान को सुदृढ़ करने और भारतीय सभ्यता को प्रगति के पथ पर ले जाने का प्रयास कर रहे हैं, छत्रपति शिवाजी महाराज की शिक्षाएँ और उनके आदर्श हमें मार्गदर्शन देते हैं। उन्होंने हमें सिखाया कि सच्चा नेता वही है जो अपने लोगों की सेवा करता है और उनके हितों की रक्षा करता है। उनकी प्रशासनिक नीतियाँ और संगठनात्मक कौशल आज भी प्रशासन और शासन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण माने जाते हैं।

शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक हमें यह भी सिखाता है कि कठिनाइयों का सामना करते हुए भी हमें अपने उद्देश्यों और सिद्धांतों पर कायम रहना चाहिए। उनकी प्रेरणा से हम अपने समाज को न्याय, समानता और स्वतंत्रता के आदर्शों पर आधारित बना सकते हैं। उनके दिखाए मार्ग पर चलते हुए हम एक ऐसे भारत का निर्माण कर सकते हैं जो अपनी संस्कृति और परंपराओं को संजोए रखते हुए आधुनिकता की ओर अग्रसर हो।

अंत में, छत्रपति शिवाजी महाराज (Chhatrapati Shivaji Maharaj) का राज्याभिषेक दिवस हमें हमारी धरोहर की याद दिलाता है और हमारे भविष्य के लिए एक नई दिशा प्रदान करता है। उनके जीवन और कार्यों से प्रेरणा लेकर हम अपने राष्ट्र को एक नई ऊंचाई पर ले जाने का संकल्प लें। छत्रपति शिवाजी महाराज के आदर्शों को अपनाकर हम एक सशक्त, स्वतंत्र और स्वाभिमानी भारत का निर्माण कर सकते हैं। उनके दिखाए मार्ग पर चलकर हम अपनी संस्कृति और सभ्यता की रक्षा कर सकते हैं और उसे भविष्य की पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रख सकते हैं।

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