शान और शौर्य का प्रतिक है तिरंगा, जानिए अपने तिरंगे की कहानी

Tiranga

अगस्त महीने की शुरुआत होते ही देश की आज़ादी मनाने का एक खास मौका मिल जाता है, जो है 15 अगस्त। इस दिन स्कूल, कॉलेज, दफ्तर से लेकर जगह-जगह तिरंगा लहरता नज़र आता है, जो हम सबके शान और शौर्य का प्रतिक है। लेकिन क्या आपने कभी तिरंगे (tricolour) के इतिहास को जाना है? शायद आप सिर्फ तिरंगे के रंगों के बारे में सोच रहें होंगे! लेकिन तिरंगे से जुड़ी कई ऐसी महत्वपूर्ण जानकारी है जिसे हम आपके साथ साझा करने जा रहे हैं।

शान और शौर्य का प्रतिक तिरंगा (Tricolour)

7 अगस्त 1906 को सर सुरेंद्रनाथ बनर्जी ने हरी, पीली, और लाल/नारंगी पट्टियों वाला एक चौकोर ध्वज फहराया। इस ध्वज की सबसे ऊपर की हरी पट्टी पर आठ कमल के फूल थे, जबकि बीच की पीली पट्टी में ‘वन्दे मातरम्’ लिखा हुआ था। वहीं मैडम भीकाजी कामा ने वर्ष 1907 में पेरिस में क्रांतिकारियों के साथ एक ऐसा ही झंडा फहराया।और अब पहली बार झंडे में केसरिया रंग भी शामिल किया गया। इसके बाद कुछ सालों तक देश के झंडे को लेकर किसी ने कोई नई पहल नहीं की। हालांकि लंबे अरसे बाद महात्मा गांधी द्वारा अप्रैल 1921 में ‘यंग इंडिया’ में ‘द नेशनल फ्लैग’ विषय पर एक लेख लिखा गया। इस लेख में उन्होंने राष्ट्रीय ध्वज के महत्व पर प्रकाश डाला और तिरंगे झंडे की रूपरेखा प्रस्तुत की। इसमें राष्ट्रीय झंडे के बीच में चरखे के निशान की कल्पना की गई। चरखे के निशान को जोड़ने का सुझाव लाला हंसराज ने दिया था। यही वर्ष था जब हमारे वर्तमान राष्ट्रीय ध्वज के निर्माण, संशोधन और विकास की कहानी शुरू हुई।

तिरंगे को मान्यता मिलने में लगा सालों का समय

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पिंगली वेंकैय्या ने पहली बार हरे और लाल रंग के झंडे का डिज़ाइन तैयार किया था। इसके लिए उन्होंने 1916 से 1921 तक 30 देशों के राष्ट्रीय ध्वजों का अध्ययन किया था। महात्मा गांधी की सलाह पर इसमें सफेद पट्टी जोड़ी गई और केसरिया, सफेद, हरे रंग के साथ चरखे को भी शामिल किया गया। इस झंडे को 13 अप्रैल 1923 को नागपुर में जलियांवाला बाग हत्याकांड के शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए फहराया गया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 1931 में कराची अधिवेशन में तिरंगे को भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के रूप में स्वीकार किया और स्पष्ट किया कि इसमें कोई सांप्रदायिक प्रतीक नहीं हैं।

आजादी से पहले तय हुआ राष्ट्रीय ध्वज

देश को आजादी मिलने से कुछ ही दिन पहले यानी 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने आधिकारिक ध्वज को अपनाने का फैसला लिया। उस वक्त भारत देश का कोई अपना झंडा नहीं था। यह वह दौर था जब ब्रिटिश का झंडा ही प्रयोग किया जाता था। संविधान सभा द्वारा अपनाया गया नया तिरंगा (Tricolour)1931 के तिरंगे से अलग था। इसमें लाल रंग की जगह केसरिया रंग को शामिल किया गया। नए झंडे में केसरिया ऊपर, सफेद बीच में और हरा नीचे रखा गया। केसरिया रंग देश की धार्मिकता, सफेद शांति और हरा प्रकृति को दर्शाता है।

पंडित नेहरू ने संविधान सभा में झंडे के प्रस्ताव को पेश किया

संविधान सभा में राष्ट्रीय ध्वज का प्रस्ताव पंडित जवाहरलाल नेहरू ने पेश किया। इसके अनुसार, भारत का राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा (Tricolour) होगा, जिसमें गहरे केसरिया, सफेद और गहरे हरे रंग की तीन समान पट्टियां होंगी। सफेद पट्टी के बीच में गहरे नीले रंग का चक्र होगा, जो सारनाथ के अशोक कालीन सिंह स्तूप के चक्र जैसा होगा। ध्वज की चौड़ाई और लंबाई का अनुपात 2:3 होगा। नेहरू ने इसे गर्व और उत्साह से भरा ध्वज बताया।

चरखा हटाने से गांधी जी हो गए थें नाराज़

तिरंगे (Tricolour) में शामिल किया गया अशोक चक्र सम्राट अशोक की विजय और धर्म चक्र का प्रतीक है। नीले रंग का यह चक्र भारत की विशाल सीमाओं को दर्शाता है, क्योंकि अशोक का साम्राज्य अफगानिस्तान से बांग्लादेश तक फैला हुआ था। हालांकि, गांधी जी को चरखे को हटाए जाने का दुख था, और कई लोग झंडे में चरखे को बनाए रखने के पक्ष में थे। संविधान सभा के कुछ सदस्यों का मानना था कि झंडे को केंद्रीय स्थान पर शौर्य का प्रतीक होना चाहिए। डॉ. बीआर आंबेडकर ने अशोक चक्र की नीली तीलियों को पिछड़ों और दलितों की अस्मिता का प्रतीक बताया।

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