हरविंदर सिंह (Harvinder Singh) ने अपने धनुष और तीर से न सिर्फ निशाना साधा, बल्कि पूरे देश का दिल भी जीत लिया। उन्होंने पैरिस पैरालंपिक 2024 में तीरंदाजी में भारत को पहला गोल्ड मेडल दिलाकर इतिहास रच दिया। आइए जानते हैं इस शानदार खिलाड़ी की कहानी।
हरविंदर का सफर: मुश्किलों से मेडल तक
हरविंदर सिंह (Harvinder Singh) का जन्म हरियाणा के अजीत नगर में एक किसान परिवार में हुआ था। बचपन में ही उन्हें डेंगू हो गया, जिसके इलाज के दौरान दी गई दवाओं के साइड इफेक्ट से उनके दोनों पैर कमजोर हो गए। लेकिन इस मुश्किल ने उनके हौसले को कम नहीं किया। 2012 के लंदन पैरालंपिक से प्रेरणा लेकर हरविंदर ने तीरंदाजी में अपना करियर शुरू किया। 2017 में उन्होंने पैरा आर्चरी वर्ल्ड चैंपियनशिप में सातवां स्थान हासिल किया। 2018 जकार्ता एशियन पैरा गेम्स में गोल्ड मेडल जीतकर उन्होंने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। कोरोना लॉकडाउन के दौरान, हरविंदर के पिता ने अपने खेत को ही तीरंदाजी रेंज में बदल दिया ताकि बेटा प्रैक्टिस कर सके। इसी मेहनत का नतीजा था कि 2021 टोक्यो पैरालंपिक में हरविंदर ने भारत को तीरंदाजी में पहला पैरालंपिक मेडल (ब्रॉन्ज) दिलाया।
पैरिस में स्वर्णिम सफलता
पैरिस पैरालंपिक 2024 में हरविंदर सिंह (Harvinder Singh) ने अपने जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य भेदा। फाइनल मुकाबले में उन्होंने पोलैंड के 44 साल के अनुभवी खिलाड़ी लुकाज सिजेक को 6-0 से हराया। आखिरी चार तीरों में से तीन में परफेक्ट 10 स्कोर करके हरविंदर ने अपनी श्रेष्ठता साबित की। इस जीत के साथ ही हरविंदर ने भारत को तीरंदाजी में पहला पैरालंपिक गोल्ड मेडल दिलाया। यह न सिर्फ उनके लिए, बल्कि पूरे देश के लिए गर्व का क्षण था।
खेल के साथ पढ़ाई भी जारी
33 साल के हरविंदर सिर्फ खेल में ही नहीं, पढ़ाई में भी आगे हैं। वे इकोनॉमिक्स में PhD कर रहे हैं। उनका मानना है कि खेल और पढ़ाई दोनों जरूरी हैं। वे युवाओं को प्रेरित करते हैं कि मुश्किलें आएं तो डरो मत, उनका सामना करो।
हरविंदर की जीत से प्रेरणा
हरविंदर सिंह (Harvinder Singh) की कहानी हमें सिखाती है कि कोई भी चुनौती बड़ी नहीं होती। अगर आप अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करें और कड़ी मेहनत करें, तो सफलता जरूर मिलती है। उनकी जीत ने साबित कर दिया कि दिव्यांगता कोई कमजोरी नहीं, बल्कि एक अलग तरह की ताकत है। भारत के लिए यह मेडल बहुत खास है। यह सिर्फ एक खिलाड़ी की नहीं, बल्कि पूरे देश की जीत है। हरविंदर की सफलता से प्रेरित होकर और भी कई युवा खेलों में आगे आएंगे और देश का नाम रोशन करेंगे।
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