Pitru Paksha में क्यों कौवों को ही खिलाते हैं, जानिए क्या है इसके पीछे का वैज्ञानिक कारण? 

Pitru Paksha Crow

हिंदू पंचांग के अनुसार अभी पितृपक्ष (Pitru Paksha) चल रहा है। 15 दिन चलने वाले इस महापर्व दौरान लोग अपने पितरों को याद करते हुए दान पुण्य करते हैं। इस दौरान पितरों के प्रतीक कौवे को भोजन कराने का विधान भी है। क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर क्या वजह है, जो कौवों को ही पितृ का प्रतिक माना गया है। और भी तो कई पक्षी हैं, ऐसे में सिर्फ कौवे को ही क्यों? तो आपको बता दें कि इसके पीछे एक वैज्ञानिक कारण है। और वो यह कि कौवा पीपल और बरगद के वृक्ष का बीज तैयार करता है। आप निश्चित ही अपने दिमाग पर जोर डालकर कहेंगे कि कौवा, पीपल और बरगद के पेड़ तैयार करता है? भला ये कैसे संभव है?

वट और पीपल को कौवा पक्षी प्रदत्त माना जाता है

तो आपको बता दें कि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार श्राद्ध में पांच जीवों को भोजन देने की परंपरा है, इनमें एक है कौवा। देववृक्ष कहे जाने वाले वट और पीपल को कौवा पक्षी प्रदत्त माना जाता है। दरअसल, कौवे पीपल और बरगद दोनों वृक्षों के फलों को खाते हैं। और जब उनके पेट में ही बीज उगने लायक होते हैं तब वो बीट करते हैं। जहां-जहां वो बीट करते हैं वहां-वहां पीपल और बरगद के वृक्ष उगते हैं। यही नहीं, मादा कौवा भादो महीने (अगस्त-सितंबर) में अंडा देती है। ऐसे में कौवों के बच्चों को पौष्टिक और भरपूर भोजन मिलना भी जरूरी है।

 कौवों के नवजात बच्चों के लिए आंगन या छत में पौष्टिक आहार की  करते थे व्यवस्था

कारण यही जो इस दौरान हमारे ऋषि-मुनी कौवों के नवजात बच्चों के लिए आंगन या छत में पौष्टिक आहार की व्यवस्था करते थे ताकि नवजात बच्चों का पालन-पोषण ठीक से हो सके। तब से पीढ़ी दर पीढ़ी यह परंपरा पितृपक्ष (Pitru Paksha) के रूप में चली आ रही है। उनकी देखा-देखी हम भी उक्त परंपरा को साल दर साल निभाते चले आ रहे हैं। वजह चाहे जो कुछ भी क्यों न हो, लेकिन इसके पीछे एकमात्र मकसद पर्यावरण को बचाये रखना था। 

 पीपल सबसे अधिक देता है ऑक्सीजन 

दरअसल, हमारे पूर्वजों को यह पता था कि यदि पीपल और बरगद अन्य पेड़ों की तरह काटे गए तो प्रदूषण की समस्या खड़ी हो सकती है। आपको बता दें कि पीपल सबसे अधिक ऑक्सीजन देता है। शुद्ध ऑक्सीजन स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी है। अब इस बात को सामान्य व्यक्तियों को समझाना उस दौर में बड़ा कठिन था। सो, लोग इसके पीछे के महत्व को आसानी से समझ सकें, इसलिए श्राद्ध और पितृपक्ष (Pitru Paksha)जैसी परंपरा की शुरुआत की गई तथा पितृ अथवा पुरखों को भोजन पानी देने की कवायद होने लगी।

कौवे की मदद के बिना नहीं है संभव     

बात एक सीधी और साफ है, यदि पीपल और बरगद के पौधों को उगाना है तो, यह बिना कौवे की मदद से संभव नहीं है, इसलिए कौवे को बचाना जरूरी है। यह प्रक्रिया श्राद्ध के रूप में प्रकृति रक्षण के लिए भी आवश्यक है। इसलिए जब भी हम बरगद और पीपल के पेड़ों को देखते है, पूर्वज याद आते हैं।

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