भगवती अम्मन मंदिर, जो अपनी अद्भुत आस्था, धार्मिक महत्व और अनोखी पौराणिक कथा के लिए प्रसिद्ध है, भारत के दक्षिणी राज्य तमिलनाडु में स्थित है। यह मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि आस्था और श्रद्धा का केंद्र भी है। भगवती अम्मन को माता पार्वती का अवतार माना जाता है और इस मंदिर से जुड़ी अनेक कथाएं हैं जो हमें उनके दिव्य शक्ति और दानवों पर विजय के संदेश देती हैं। इस लेख में हम आपको भगवती अम्मन मंदिर की पौराणिक कथा से परिचित कराएंगे और इस पवित्र स्थल के महत्व को समझने का प्रयास करेंगे।
भगवती अम्मन मंदिर का इतिहास
भगवती अम्मन मंदिर का निर्माण चोल वंश के राजाओं द्वारा किया गया था। चोल वंश के काल में यह स्थान सांस्कृतिक और धार्मिक गतिविधियों का केंद्र था, जहां अनेक तीर्थयात्री आते थे। चोल राजा भगवती अम्मन के प्रति अत्यंत श्रद्धा रखते थे और उन्होंने इस भव्य मंदिर का निर्माण करवाया ताकि वे देवी की पूजा-अर्चना कर सकें और उनके आशीर्वाद से राज्य की रक्षा कर सकें।
भगवती अम्मन की पौराणिक कथा
भगवती अम्मन मंदिर की पौराणिक कथा महिषासुर नामक एक दैत्य के अत्याचार से जुड़ी है। पुराणों के अनुसार, महिषासुर एक शक्तिशाली दानव था जिसने कठोर तपस्या कर भगवान ब्रह्मा से वरदान प्राप्त किया था कि कोई भी पुरुष उसे मार नहीं सकता। इस वरदान से महिषासुर का अत्याचार बढ़ता चला गया और उसने स्वर्गलोक पर भी अपना अधिकार जमा लिया। देवता उससे त्रस्त हो गए और उसे हराने में असमर्थ थे। देवताओं की प्रार्थना पर माता पार्वती ने भगवती अम्मन के रूप में अवतार लिया। भगवती अम्मन का यह रूप अत्यंत शक्तिशाली और प्रचंड था। उन्होंने महिषासुर का सामना किया और अनेक दैत्यों का संहार किया। इस भीषण युद्ध में महिषासुर को पराजित कर भगवती अम्मन ने धर्म की पुनर्स्थापना की और देवताओं को उनके अधिकार वापस दिलाए। महिषासुर के वध के पश्चात् देवी ने इस स्थान पर अपने दिव्य रूप में विश्राम किया और यह स्थान भगवती अम्मन मंदिर के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
भगवती अम्मन का महत्व
भगवती अम्मन को शक्ति, साहस, और विजय की देवी के रूप में पूजा जाता है। इस मंदिर में देवी की प्रतिमा अत्यंत भव्य और आकर्षक है, जो उनकी अद्वितीय शक्ति और सौम्यता का प्रतीक है। भक्त मानते हैं कि देवी की पूजा करने से जीवन के समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं और वे अपने भक्तों को अनंत आशीर्वाद देती हैं। मंदिर में प्रतिवर्ष आयोजित होने वाले नवरात्रि महोत्सव में लाखों श्रद्धालु देश-विदेश से आते हैं और देवी की कृपा प्राप्त करते हैं। इस मंदिर में भगवती अम्मन के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है। खासकर नवरात्रि के दौरान, यहां माता के नौ रूपों की पूजा होती है। इस दौरान मंदिर को फूलों, दीपों और रंगीन रोशनी से सजाया जाता है और देवी की महिमा का गुणगान किया जाता है। नवरात्रि के अवसर पर यहां विशेष यज्ञ और हवन का आयोजन भी होता है, जिसमें भाग लेने से भक्तों को विशेष फल प्राप्त होते हैं।
मंदिर की विशेषताएं
भगवती अम्मन मंदिर की वास्तुकला भी अद्वितीय है। इसका गर्भगृह अत्यंत सुन्दर है और इसमें देवी की मूर्ति स्थापित है। मंदिर के प्रवेशद्वार पर अत्यंत सुन्दर और जटिल नक्काशी की गई है, जिसमें देवी-देवताओं की विभिन्न कथाएं चित्रित हैं। मंदिर का मुख्य स्तंभ, जिसे ‘ध्वज स्तंभ’ कहा जाता है, भी बहुत आकर्षक है और इस पर सोने का आवरण चढ़ा हुआ है। इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहां आने वाले भक्त अपनी समस्याओं के समाधान के लिए विशेष पूजा करते हैं, जिसे ‘अर्चना’ कहा जाता है। कहा जाता है कि सच्चे मन से की गई पूजा कभी व्यर्थ नहीं जाती और भगवती अम्मन हर किसी की मनोकामना पूरी करती हैं।
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तीर्थयात्रा और धार्मिक गतिविधियाँ
भगवती अम्मन मंदिर तीर्थयात्रियों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र है। यहां आने वाले भक्त मंदिर में विशेष ‘कन्या पूजन’ भी करते हैं, जिसमें कन्याओं को देवी का स्वरूप मानकर उन्हें भोजन कराया जाता है और उपहार भेंट किए जाते हैं। मंदिर के प्रांगण में विशेष धार्मिक सभाएं और सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं, जिसमें भक्त बड़ी संख्या में भाग लेते हैं। मंदिर के समीप ही एक पवित्र कुंड भी स्थित है, जिसे ‘अम्मन तीर्थ’ कहा जाता है। मान्यता है कि इस कुंड के पवित्र जल में स्नान करने से सारे पाप धुल जाते हैं और व्यक्ति को मानसिक शांति प्राप्त होती है। मंदिर के आसपास का वातावरण अत्यंत शांत और भक्तिमय है, जो यहां आने वाले हर व्यक्ति को आत्मिक शांति प्रदान करता है।
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