Candidate Election Budget: जानिए प्रत्याशी को चुनाव में कितने रूपये खर्च करने की होती है अनुमति

खर्च

भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। एक लोकतांत्रिक देश होने के नाते निष्पक्ष चुनाव कराना चुनाव आयोग का परम कर्तव्य हो जाता है। देश में पार्षदी से लेकर विधायकी और सांसदी के चुनाव होते हैं। इस दौरान लाखों की तादाद में प्रत्याशी अपनी किस्मत आजमाते हैं। कुछ प्रत्याशी अमीर होते हैं तो कुछ गरीब। ऐसे में चुनाव के दौरान निष्पक्षता बनाए रखने हेतु चुनाव आयोग ने प्रत्येक उम्मीदवार के लिए चुनाव के दौरान खर्च (Candidate Election Budget) की अधिकतम सीमा तय कर रखी है। चुनाव आयोग के नियम के अनुसार प्रत्येक प्रत्याशी को नामांकन कराने के बाद से न सिर्फ रोज के खर्च का हिसाब रखना पड़ता है बल्कि चुनाव की प्रक्रिया पूरी होने के बाद विस्तृत ब्योरा आयोग को देना भी पड़ता है। 

कितनी होती है खर्च करने की सीमा

तो आपको बता दें कि लोकसभा अथवा विधानसभा चुनाव की घोषणा होने के साथ ही चुनाव आयोग खर्च करने की सीमा तय कर देता है। चुनाव दर चुनाव यह बढ़ती रहती है। बात करें साल 2024 के लोकसभा चुनावों की तो इसमें चुनाव आयोग ने 75 लाख से 95 लाख रूपये खर्च (Candidate Election Budget) करने की अनुमति दी थी। कुल-मिलाकर चुनावी खर्च राशि एक करोड़ के भीतर ही थी। और वहीं विधानसभा चुनाव के लिए यह राशि  35 से 40 लाख रुपए तक के बीच होती है। यानि कि लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी को 95 लाख तो वहीं विधानसभा चुनाव में 40 रूपये से अधिक खर्च करने की अनुमति नहीं होती है। इसमें चाय-पानी के खर्च से लेकर बैठकों, रैलियों, विज्ञापनों, पोस्टर-बैनर और वाहनों का खर्च भी शामिल होता है। 

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ऐसे तय की जाती है चुनाव खर्च की अधिकतम सीमा

प्रत्याशी को चुनाव में कितने रूपये खर्च

चुनाव खर्च (Candidate Election Budget) की सीमा तय करने के लिए मुद्रास्फीति सूचकांक का सहारा लिया जाता है। इससे इस बात का आकलन किया जाता है कि बीते वर्षों में सेवाओं और वस्तुओं के मूल्य में कितनी वृद्धि हुई है। फिर निर्वाचन आयोग राज्यों की कुल आबादी और मतदाताओं की संख्या के हिसाब से चुनाव खर्च की अधिकतम सीमा तय करता है। इसीलिए छोटे राज्यों के उम्मीदवारों के लिए चुनाव खर्च और बड़े राज्यों के उम्मीदवारों की खर्च में फर्क होता है।

प्रत्याशी नहीं दर्शा सकते मनमानी दरें

चुनाव लड़ रहा कोई भी प्रत्याशी अपने मनमाने ढंग से किसी भी सेवा या वस्तु की कीमत को नहीं दर्शा सकता है। निर्वाचन आयोग ने इसके लिए भी  न्यूनतम दरें तय रखी हैं। यहां तक कि एक कप चाय का दाम कम से कम आठ रुपए और एक समोसे की कीमत कम से कम 10 रुपए जोड़ी तय किया गया है। इसी तरह बिस्किट, ब्रेड पकौड़ा से लेकर जलेबी तक की कीमत तय है। यदि कोई प्रत्याशी किसी मशहूर शख्सियत को प्रचार हेतु बुलाता है तो उसकी फीस दो लाख रुपए तक तय है। हालांकि, अधिक भुगतान होने पर असली बिल जोड़ा जा सकता है। 

30 दिन के भीतर देना होता है चुनाव खर्च (Candidate Election Budget) का ब्योरा

चुनाव आयोग प्रत्याशियों के खर्च पर नजर रखता है। चुनाव आयोग प्रत्याशी की खर्च की सीमा तय करता है। हर निर्वाचन क्षेत्र में व्यय की अधिकतम सीमा निर्धारित है। ‘लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 78’ के तहत हर उम्मीदवार को चुनावी परिणामों की घोषणा से 30 दिन के भीतर अपने चुनाव खर्च का ब्योरा जिला निर्वाचन अधिकारी के पास सौंपना अनिवार्य होता है। इसमें प्रत्याशी और उसके एजेंट द्वारा किया गया खर्च शामिल होता है। इसमें नामांकन के दिन से रिजल्ट तक का खर्च का पूरा ब्योरा शामिल होता है।

उल्लंघन करने पर क्या हो सकती है कार्रवाई?

निर्धारित सीमा से अधिक खर्च करने पर चुनाव आयोग प्रत्याशी पर एक्शन भी ले सकता है। आपको बता दें कि निर्वाचनों का संचालन नियम, 1961 का नियम 90, प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित राज्य में चुनाव व्यय की सीमा निर्धारित करता है। लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 77 (3) के अधीन निर्धारित सीमा से अधिक व्यय किया जाना एक भ्रष्ट आचरण है। ऐसे में मान लो किसी प्रत्याशी ने अपने चुनाव खर्च का ब्योरा नहीं दिया, तो उस पर लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के अनुभाग 10A में दिए प्रावधान के आधार पर कार्रवाई की जा सकती है। कानून के मुताबिक चुनाव आयोग उक्त प्रत्याशी पर तीन साल तक चुनाव लड़ने पर रोक लगा सकता है। और तो और यदि कोई प्रत्याशी अपना चुनाव खर्च कम दिखाता है, या फिर कोई हेर-फेर करता है तो उसके खिलाफ चुनाव याचिका दायर हो सकती है। ऐसे में वादी कम खर्च को साबित करना होता है।

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