हरियाणा में भाजपा ने वो कर दिखाया, जो आज तक कोई भी राजनीतिक पार्टी नहीं कर पाई। सत्ता विरोधी लहर के बीच भाजपा ने बहुमत के साथ चुनाव जीत हैट्रिक लगाई है। हरियाणा के 58 साल के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ, जब कोई पार्टी लगातार तीसरी बार जीती है। भाजपा के इस प्रचंड जीत से जहां राजनीतिक विशेषज्ञ हैरान हैं, वहीं कांग्रेस भी शून्य में नजर आ रही है। हार के तमाम दावों के बीच भाजपा ने हाथ से निकली हुई बाजी किस तरह से पलट दी, यह हर कोई जानना चाहता है। आइये हम बताते हैं कि ऐसे कौन से फैक्टर्स थे ? जिन्होंने भाजपा को तीसरी बार हरियाणा में पॉलिटिकल जलेबी का स्वाद चखने में कामयाबी दिलाई।
आरएसएस का साथ, जमीनी स्तर पर कार्य
चुनाव से पहले और चुनाव के समय हर तरफ सिर्फ यही चर्चा थी कि भाजपा सरकार जा रही है और कांग्रेस की सत्ता में वापसी हो रही। इन चर्चाओं और दावों के बीच भाजपा एक सधी हुई स्ट्रैटेजी के साथ चुनावी मैदान में उतरी और गांवों पर फोकस किया। चुनाव प्रचार के दौरान पार्टी ने अपना वोट बेस मजबूत करने के साथ वोकल फॉर लोकल और स्थानीय मुद्दों को उठाया। इस प्रचार में आरएसएस ने भाजपा का भरपूर साथ देते हुए जीत के दहलीज तक पहुंचने में मदद की। आरएसएस कार्यकर्ताओं ने जमीनी स्तर पर सक्रिय भूमिका निभाते हुए भ्रष्टाचार मुक्त सरकार, रोजगार के अवसर, किसानों के लाभप्रद योजनाओं और देशहित से जुड़े मुद्दे को जन-जन तक पहुंचाया। इससे लोकसभा चुनाव में भाजपा का साथ छोड़कर गए साइलेंट मतदाताओं ने भी भाजपा में वापसी कर ली।
कांग्रेस का अतिआत्मविश्वास भाजपा के लिए संजीवनी
चुनाव लड़ते समय कांग्रेस अतिआत्मविश्वास में नजर आ रही थी। भूपेंद्र सिंह हुड्डा और कुमारी सैलजा जैसे वरिष्ठ नेता चुनाव प्रचार करने की जगह मुख्यमंत्री पद के लिए दावेदारी करने में जुटे रहे। यही हाल राहुल गांधी और प्रियंका गांधी का भी रहा, दोनों ने हरियाणा में बहुत कम जनसभाएं की। साथ ही कांग्रेस ने हरियाणा में आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन करने से भी इंकार कर दिया। उस समय पार्टी नेताओं का दावा था कि, जब हम अकेले ही चुनाव जीत रहे हैं, तो गठबंधन क्यों करें। कांग्रेस का यही अतिआत्मविश्वास उसे ले डूबा। आप पार्टी ने कई सीटों पर कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगाई और यह भाजपा के लिए संजीवनी की तरह काम किया।
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जाट और गैर जाट में बंटा हरियाणा
कांग्रेस हरियाणा का चुनाव रोजगार, महंगाई और जवान-किसान-पहलवान के मुद्दे पर लड़ रही थी, लेकिन भाजपा इस चुनाव को जाट और गैर जाट के मुद्दे पर लाने में सफल रही। भाजपा मतदाताओं को यह समझाने में कामयाब रही कि, अगर कांग्रेस जीतती है तो भूपेंद्र हुड्डा मुख्यमंत्री बनेंगे और गैर जाटों की सुनवाई नहीं होगी। इससे गैर जाट मतदाता भाजपा के पाले में आ गए और यह कांग्रेस के हार का एक बड़ा कारण बना।
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