हिंदुओं की तरह इस्लाम में भले ही वर्ण व्यवस्था न हो, लेकिन भारतीय मुसलमान के समाज पर नजर डालें तो उनमें भी जाति व्यवस्था है। मुसलमान भले ही छाती ठोककर यह कहता हो कि हमारे में सब बराबर हैं। यह कहना जितना आसान है, वास्तविकता उतनी ही इसके विपरीत है। यहां तक कि गांव में जातियों के आधार पर क़ब्रिस्तान तक बनाए गए हैं। हिंदुओं में जैसे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वर्ण होते हैं, वैसे ही भारतीय मुसलमानों भी कई जातियों में बटे हुए हैं। जिस तरह हिंदुओं में वर्ण व्यवस्था है उसी तरह मुसलमान भी तीन जाति समूहों में बंटा हुआ है। इनमें एक अशराफ़, दूसरा अजलाफ़ और तीसरा अरज़ाल।
मुसलमानों में भी होती हैं जातियां
दरअसल ये जातियों के समूह हैं, जिसके अंदर अलग-अलग जातियां शामिल हैं। मसलन, अशराफ़ में सैयद, शेख़, पठान, मिर्ज़ा, मुग़ल जैसी उच्च जातियां शामिल हैं। इसी तरह मुसलमानों में दूसरा वर्ग है,अजलाफ़ का, जिनमें अंसारी, मंसूरी, राइन, क़ुरैशी शामिल होते हैं। क़ुरैशी मीट का व्यापार करते हैं तो अंसारी कपड़ा बुनाई के पेशे से जुड़े होते हैं। और तीसरा वर्ग है अरज़ाल, जसिमें हलालख़ोर, हवारी, रज़्ज़ाक जैसी जातियां शामिल हैं। मैला ढोने का काम करने वाले लोग मुस्लिम समाज में हलालख़ोर और कपड़ा धोने का काम करने वाले धोबी कहलाते हैं।
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शादी तो छोड़िए, रोटी-बेटी का रिश्ता भी नहीं है
मुसलमान किस कदर जातियों में बटा हुआ है इसका अंदाजा आप इसीसे लगा सकते हैं कि हलालख़ोर, हवारी, रज्जाक जैसी जातियों को सैयद, शेख़, पठानों के क़ब्रिस्तान में दफ़नाने तक की जगह नहीं दी जाती। कई बार तो मार पीट तक की नौबत आ जाती है। जीने से लेकर मरने तक मुसलमान जातियों में बंटा हुआ है। एकाध अपवादों को छोड़ दें तो शादी तो छोड़िए, रोटी-बेटी का रिश्ता भी नहीं है। लेकिन मुसलमानों के किसी भी फिरके से पूछों तो वो कहते हैं कि “मस्जिद में जाति व्यवस्था लागू नहीं होती, क्योंकि इस्लाम इसकी इजाज़त नहीं देता।” इस्लाम भले ही इसकी इजाजत न देता हो लेकिन सच्चाई कुछ और ही है।
मुसलमान भी जात-बिरादरी देखकर ही शादी करना पसंद करते हैं
आपको बता दें कि मुसलमानों में भी जाति प्रथा हिंदुओं की तरह ही होती है। वो भी अपनी जात-बिरादरी देखकर ही शादी करना पसंद करते हैं। यहां तक कि मुसलमानों में अलग-अलग जातियों के रीति रिवाज भी अलग-अलग हैं। चाहे वो शादी हो या पेशा, सबके अपने-अपने रवायतें हैं। यही नहीं, मुस्लिम इलाक़ों में भी जाति के आधार पर कॉलोनियां बनी हुई हैं। मुसलमान जातियों में इस कदर बटा हुआ है कि वो एक दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहाते। आपको बता दें कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के संभल में तुर्क, लोधी मुसलमान रहते हैं। न सिर्फ उनके अपने-अपने इलाक़े हैं बल्कि उनके बीच काफ़ी तनाव भी रहता है। लेकिन देश के नेताओं को बांटना सिर्फ हिंदुओं को ही होता है।
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