महाराष्ट्र में विधानसभा चुनावों (Maharashtra Elections) का बिगुल बज चुका है। 20 नवंबर के दिन राज्य की 288 विधानसभा सीटों पर मतदान होंगे और 23 नवंबर को इसके नतीजे घोषित किये जाएंगे। यह तो ठीक, लेकिन महत्वपूर्ण बात यह कि होने वाले इस विधानसभा चुनाव में क्या महायुति की सरकार बरक़रार रहेगी या फिर महाविकास अघाड़ी पूर्ण बहुमत से अपनी अपनी सरकार बना पाएगी? यह तो आने वाला वक़्त ही बताएगा कि फैसला क्या होगा। लेकिन इसी वर्ष हुए लोकसभा चुनाव के नतीजों पर नजर डालें तो बहुत हद तक तस्वीर साफ हो जाती है कि राज्य की जनता का क्या रुख है। हालांकि वो बात और है कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव की तुलना नहीं की जा सकती। अक्सर इसके नतीजें एक-दूसरे के विपरीत ही होते हैं।
यह कतई जरूरी नहीं है कि यदि किसी राज्य के विधानसभा चुनाव (Maharashtra Elections) में किसी दल ने अच्छा प्रदर्शन किया है तो वो लोकसभा के चुनाव में अच्छा प्रदर्शन ही करे ही। कभी-कभी तो लोकसभा चुनाव में उम्दा प्रदर्शन करने वाली पार्टियां विधानसभा में फिसड्डी साबित हो जाती हैं। खैर, यहां हम महाराष्ट्र (Maharashtra) में पांच प्रमुख नेताओं की कुंडली का आकलन करेंगे और यह जानने की कोशिश करेंगे कि लोकसभा चुनाव में किये गए इनके प्रदर्शन का विधानसभा में क्या असर होगा?
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एकनाथ शिंदे
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की पार्टी शिवसेना शिंदे गट ने कुल 15 लोकसभा सीटों पर अपनी किस्मत आजमाई थी और उसमें से 7 सीटों पर जीत दर्ज की थी। इसके साथ ही पार्टी को कुल 12.95% वोट मिले थे। महत्वपूर्ण बात यह है कि उनके उम्मीदवारों ने उन सभी सात सीटों पर जीत हासिल की, जहां उनका सीधा मुकाबला उद्धव ठाकरे की शिवसेना (यूबीटी) के उम्मीदवारों से था। कल्याण लोकसभा सीट पर बेटे श्रीकांत शिंदे और ठाणे सीट पर नरेश म्हस्के की जीत ने यह साबित कर दिया कि शिवसेना से अलग होने के बाद भी एकनाथ शिंदे की पकड़ कायम है।
भाजपा की 240 लोकसभा सीटों में शिंदे की सात सीटें बड़ी महत्वपूर्ण हैं। हालांकि वो बड़े वक्ता नहीं हैं। सामान्य रिक्शा चालक से राजनीति में आये एकनाथ शिंदे ने अपनी कार्यशैली और कर्मठता से सिद्ध कर दिया कि उन्हें हल्के में नहीं लिया जा सकता। कहने की जरूरत नहीं कि लोकसभा नतीजों ने सरकार में शिंदे की स्थिति को और मजबूत कर दिया। इन नतीजों ने न सिर्फ एनडीए गठबंधन में उनके कद को बढ़ाया बल्कि यह भी साबित कर दिया को वो तुरुप का इक्का साबित हो सकते हैं। देखना दिलचस्प होगा कि माझी लडकी बहिन योजना का विधानसभा चुनाव (Maharashtra Elections) पर क्या असर होगा।
देवेंद्र फडणवीस
महाराष्ट्र (Maharashtra) के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस खुद उम्मीदवार न होने के बावजूद चुनाव में सबसे बड़े हारने वाले के रूप में उभरे। महाराष्ट्र में भाजपा की सीटें 2014 के लोकसभा चुनाव और 2019 के चुनाव दोनों में 23 सीटों से घटकर इस बार सिर्फ नौ रह गईं। दरअसल, चुनावों से पहले, फडणवीस ने अपने पार्टी नेतृत्व को कम से कम 30 सीटें देने का वादा किया था। लेकिन उम्मीदों पर खरा न उतरने के चलते उन्होंने अपने पद से इस्तीफा तक देने का ऐलान कर दिया था। 17 रैलियों सहित पीएम नरेंद्र मोदी के प्रयासों के बावजूद, भाजपा प्रमुख निर्वाचन क्षेत्रों में जीत हासिल करने में विफल रही। इसके अलावा मराठा समुदाय में अशांति ने उनके नेतृत्व को प्रभावित किया।
आपको बता दें कि वो भाजपा के एकमात्र ऐसे नेता थे, जिन्हें मराठों के बीच उनके खिलाफ नाराजगी के चलते कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में प्रचार करने से मना कर दिया गया था। कभी होनहार नेता रहे 53 फडणवीस का राजनीतिक भविष्य अब निश्चित ही अनिश्चित लग रहा है। ऐसे में बड़ा सवाल यह कि यदि राज्य में महायुति की सरकार अपनी सरकार बचाने में कामयाब हो जाती है तो क्या देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री बनाया जायेगा या फिर एकनाथ शिंदे ही मुख्यमंत्री बने रहेंगे। वास्तविकता तो यही है कि यदि बीजेपी अकेले पूर्ण बहुमत प्राप्त करती है तो भले देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री बने अन्यथा महायुति में मुख्यमंत्री पद के दावेदार बहुत हैं।
अजीत पवार
अजीत पवार की एनसीपी (राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी) का स्ट्राइक रेट 25% खराब रहा, जिन्होंने चार में से सिर्फ एक सीट जीती। अजीत पवार के लिए महत्वपूर्ण झटका यह कि वो खुद अपनी पत्नी सुनेत्रा पवार को अपने ही क्षेत्र बारामती में अपनी भतीजी और शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले के खिलाफ जीत दिलाने में विफल रहे। पांच साल पहले, उन्होंने अपने बेटे को मावल से लोकसभा चुनाव हारते देखा था। हाल ही में हुए झटकों ने उनके नेतृत्व पर सवाल खड़े कर दिए हैं और पार्टी और सरकार के भीतर उनकी स्थिति कमजोर होती दिख रही है।
अटकलें तो इस बात की भी लगाईं जा रही हैं कि एनसीपी खेमे के 10 से 15 विधायक अपने बेहतर और सुरक्षित भविष्य के खातिर पुनः शरद पवार की पार्टी में में शामिल हो सकते हैं। कुल-मिलाकर देखा जाये तो कई बार मुख्यमंत्री बनने की इच्छा जता चुके अजीत पवार की नईया बीचों बीच हिचकोले खा रही है। लोकसभा चुनाव में उनके निराशानजक प्रदर्शन की वजह से बीजेपी खेमा उनसे खफा है। ऐसे में महायुति में रहना उनकी मजबूरी बन गई है। यह तो वक़्त ही बताएगा कि वो महायुति में रहते हैं या फिर पुराने ढर्रे पर लौटकर चाचा की पार्टी का दामन संभालते हैं?
शरद पवार
महाराष्ट्र की राजनीति के पितामाह कहे जाने वाले शरद पवार ने 84 साल की उम्र में एक बार फिर अपनी सूझबूझ का प्रदर्शन करते हुए एनसीपी (एसपी) को महाराष्ट्र में दस में से आठ सीटों पर जीत दिलाई। न सिर्फ उन्होंने अपनी बेटी सुप्रिया सुले को बारामती से जितवाया बल्कि पश्चिमी महाराष्ट्र (Maharashtra) के चीनी और सहकारी क्षेत्र में अपने दबदबे को बनाये रखा। कारण यही जो उनके दो उम्मीदवार ‘नीलेश लंके’ और ‘बजरंग सोनवाने’ क्रमशः अहमदनगर और बीड निर्वाचन क्षेत्रों में अपनी जीत दर्ज कराई। यही नहीं उनके दो अन्य उम्मीदवारों बाल्या मामा और भास्कर भगारे ने भिवंडी में भाजपा के मंत्री कपिल पाटिल और एसटी आरक्षित सीट डिंडोरी में भारती पवार को हराया। हालांकि शुरुआत में लड़ाई आसान नहीं थी। लेकिन पवार ने न सिर्फ सही उम्मीदवारों को चुना बल्कि दस में से आठ सीटों पर जीत भी सुनिश्चित की। उन्होंने मराठा आक्रोश और किसानों के बीच बढ़ते गुस्से का बखूबी लाभ उठाया।
उद्धव ठाकरे
लोकसभा चुनाव में उद्धव ठाकरे महाविकास अघाड़ी का एक चेहरा बनकर उभरे। उनकी पार्टी शिवसेना (यूबीटी) ने 21 सीटों पर चुनाव लड़ा और उनमें से नौ पर जीत हासिल की। गौरतलब है कि उद्धव सेना के उम्मीदवारों ने मुंबई में चार में से तीन सीटें पर अपनी जीत बरकारर रखी थी। यह तो ठीक लेकिन कल्याण, ठाणे और मावल में महत्वपूर्ण चुनावों में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। इसके अलावा मुंबई और अन्य स्थानों पर उनके उम्मीदवारों की जीत का अंतर संतोषजनक नहीं था और वे सिर्फ शहर में अल्पसंख्यक वोटों की बदौलत ही जीत पाए।
विशुद्ध रूप से मराठा बहुल क्षेत्रों में, उनकी पार्टी का प्रदर्शन खराब रहा। सांगली जैसी सीट पर कांग्रेस के बागी विशाल पाटिल ने निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ा और जीत हासिल की और उद्धव के उम्मीदवार तीसरे स्थान पर रहे। बेशक उद्धव ठाकरे ने बेहतर योजना बनाई होती, तो एमवीए 35 सीटें जीत सकती थी। बता दें कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 13 सीटों के साथ महाराष्ट्र की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी महाराष्ट्र के लोकसभा परिणामों में महा विकास अघाड़ी (एमवीए) ने 30 सीटों पर प्रभावशाली जीत दर्ज की थी।
कहने की जरूरत नहीं ठाकरे के प्रदर्शन का असर आगामी राज्य विधानसभा चुनावों (Maharashtra Elections) में सीट बंटवारे की बातचीत पर पड़ेगा। कांग्रेस (जिसने 18 सीटों पर चुनाव लड़ा था, उनमें से 13 पर जीत हासिल की) और शरद पवार की एनसीपी तब अधिक और समान प्रतिनिधित्व की मांग करेगी। हालांकि गठबंधन के सहयोगी एक-दूसरे के साथ नहीं हैं और वे सभी जानते हैं कि अच्छा प्रदर्शन जारी रखने के लिए उन्हें एक साथ रहने की जरूरत है। एमवीए के अच्छे प्रदर्शन के साथ, उद्धव शिंदे खेमे से अपने खोए हुए कुछ लोगों को वापस लाने में भी सफल हो सकते हैं। वह एमवीए के लिए बड़े महत्वपूर्ण हैं।
हालांकि, उन्हें उम्मीदवार चयन में पिछली गलतियों को सुधारने की जरूरत है। इसके अलावा उन्हें अपने प्रतिद्वंद्वी शिंदे सेना के खिलाफ अपनी पार्टी के प्रदर्शन को बेहतर बनाने के लिए कूटनीतिक रणनीति बनानी चाहिए न कि लोगों की सहानुभूति पर निर्भर रहना चाहिए। पुनः मुख्यमंत्री बनने का सपना देख रहे उद्धव ठाकरे के सपनों पर शरद पवार ने यह कहकर पानी फेर दिया था कि महाविकास अघाड़ी बिना मुख्यमंत्री के चेहरे के विधानसभा चुनाव लड़ेगी।
कौन होगा मुख्यमंत्री
एक बात तो तय है, विधानसभा चुनाव के नतीजें चाहें कुछ भी क्यों न हों, महाराष्ट्र (Maharashtra) के ये जितने भी दिग्गज हैं सभी मुख्यमंत्री बनने का ख्वाब देख रहे हैं। चाहे हसरत देवेंद्र फडणवीस की हो या एकनाथ शिंदे की। वो चाहे अजीत पवार हों या उद्धव ठाकरे। ये सभी येन-केन-प्रकारेण मुख्यमंत्री बनने के लिए किसी भी दल के साथ जाने और गठबंधन करने से नहीं चूकेंगे। ऐसे में जिस पार्टी को पूर्ण बहुमत मिलेगा मुख्यमंत्री उसीका बनेगा, अन्यथा मजबूरन सहयोगी दल के मुखिया को मुख्यमंत्री का पद देना पड़ सकता है।
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