इस साल प्रयागराज की पावन धरती पर महाकुंभ मेले (Mahakumbh Mela) का आयोजन होने जा रहा है। संगम नगरी में 13 जनवरी से शुरू होने वाला महाकुंभ 26 फरवरी को महाशिवरात्रि की दिन समाप्त होगा। करोड़ों श्रद्धालु इस दौरन गंगातट के किनारे स्नान करेंगे। ऐसी मान्यता है कि महाकुंभ में नहाने से पिछले सारे पाप धूल जाते हैं। यह तो रही बात महाकुंभ की, लेकिन क्या आप जानते हैं कि यहां एक ऐसा सिद्धपीठ भी है जिसके दर्शन मात्र से लोगों का जीवन धन्य हो जाता है। इस मंदिर की खासियत यह कि यहां देवी की नहीं बल्कि देवी के पालने की पूजा होती है। यदि आप महाकुंभ में नहाने का प्लान बना रहे हैं तो आप इस मंदिर के दर्शन करें।
मां सती के दाहिने हाथ का पंजा यहां गिरने के बाद गायब होने की वजह से नाम पड़ा अलोपशंकरी – Mahakumbh Mela
यह मंदिर प्रयागराज में स्थित है। अलोपशंकरी के नाम से जाना जाने वाला यह मंदिर दारागंज से रामबाग की ओर जाने वाले रास्ते पर ही है। स्थानीय लोग इसे अलोपीदेवी मंदिर के नाम से पुकारते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर का वर्णन पुराणों में भी मिलता है। कहा जाता है कि मां सती के दाहिने हाथ का पंजा यहां गिरने के बाद गायब हो गया था। कारण यही जो मंदिर का नाम अलोपशंकरी पड़ा। मंदिर की सबसे बड़ी खासियत है कि इस मंदिर के बीच में एक चबूतरा बना हुआ है जिसमें एक कुंड है। यहीं पर एक चौकोर आकार में लकड़ी का एक पालना झूलता रहता है। यह झूला लाल रंग की चुनरी से ढका रहता है। लोगों का मानना है कि “जहां पर कुंड बना है, वहीं मां सती का दाहिने कलाई का पंजा पर गिरा था। बता दें कि इस मंदिर में किसी देवी की प्रतिमा नहीं है बल्कि, यहां पर पालने की पूजा होती है।
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नवरात्रि के दौरान नहीं किया जाता है मां का श्रृंगार
ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर में पूजा करने और हाथ में कलावा बांधने से सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। लोग यहां पर कुंड से आचमन लेने के बाद परिक्रमा करके माता सती का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। नवरात्रि में इस मंदिर में दर्शन करने के लिए लाखों की भीड़ उमड़ती है। बता दें कि इस मंदिर में नवरात्रि के दौरान मां का श्रृंगार नहीं किया जाता है।
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