सावन माह और कांवड़ यात्रा (Kanwar Yatra): जानिए इसके विभिन्न प्रकार और महत्व

Kanwar Yatra

सावन महीना शुरू होते ही कांवड़ यात्रा (Kanwar Yatra) का भी आरंभ हो जाता है, जहां भक्त गंगाजल से भरी कांवड़ लेकर शिवालयों (Shiv temple) की ओर बढ़ते हैं। भगवा वस्त्रों में सजे कांवड़िए, गंगातट से कलश में गंगाजल भरकर, उसे अपनी कांवड़ से बांधकर और कंधों पर लटकाकर महादेव के जय-जयकार कर शिवालयों की ओर बढ़ते हैं।  

कांवड़ यात्रा की शुरुआत सावन माह के साथ ही होता है और इसका समापन पूर्णिमा के दिन होता है। हर साल लाखों कांवड़िए हरिद्वार आकर गंगाजल भरते हैं और अपने-अपने क्षेत्र के शिवालयों में जाकर शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं। मान्यताओं के अनुसार कांवड़ यात्रा के भी कई प्रकार होते हैं। सावन मास में भक्त अलग-अलग प्रकार की कांवड़ लेकर निकलते हैं और भगवान शिव का अभिषेक करते हैं। आइए जानते हैं कांवड़ यात्रा के विभिन्न प्रकार और उनके महत्व के बारे में।

चार तरह की होती हैं कांवड़ यात्रा (Kanwar Yatra)

कांवड़ यात्रा केवल एक या दो प्रकार की नहीं, बल्कि चार प्रकार की होती है। इनमें सामान्य कांवड़ यात्रा, डाक बम कांवड़ यात्रा, खड़ी कांवड़ यात्रा और दांडी कांवड़ यात्रा शामिल हैं। आइए जानते हैं इन कांवड़ यात्राओं का तरीका और महत्व।

सामान्य कांवड़ यात्रा

सामान्य कांवड़ यात्रा में भक्त भगवा वस्त्र धारण कर कंधे पर कांवड़ उठाए हुए, “बोल बम” के जयकारों के साथ पवित्र नदियों की ओर प्रस्थान करते हैं। वहां से पवित्र जल लाकर वे शिवालयों में अभिषेक करते हैं। इस यात्रा में भक्त रुक-रुक कर विश्राम कर सकते हैं और रास्ते में लगे पंडालों में रात बिता सकते हैं। इस यात्रा का उद्देश्य भगवान शिव की कृपा प्राप्त करना और अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करना है। 

डाक कांवड़ यात्रा 

डाक कांवड़ यात्रा में भक्त पूरी यात्रा को बिना रुके और बिना विश्राम किए पूरा करते हैं। इस यात्रा में समय की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है, लोग 24 घंटे में अपनी यात्रा पूरी करते हैं, और एक दूसरे को बैटन की तरह कांवड़ सौंपते हैं। यह यात्रा अत्यंत चुनौतीपूर्ण और कठिन होती है, लेकिन भक्तों का उत्साह और भगवान शिव की भक्ति उन्हें शक्ति और संकल्प देती है।

खड़ी कांवड़ यात्रा

खड़ी कांवड़ यात्रा में भक्त कांवड़ को एक विशेष प्रकार से सजाते हैं। खड़ी कांवड़ यात्रा में भक्तों को लगातार चलते रहना होता है। इस यात्रा में एक कांवड़ को संभालने के लिए दो से तीन भक्त होते हैं। जब कोई एक भक्त थक जाता है, तो दूसरा कांवड़ को उठा लेता है। इस यात्रा की विशेषता यह है कि कांवड़ को कभी भी जमीन पर नहीं रखा जाता। इसी वजह से इसे खड़ी कांवड़ यात्रा कहते हैं।  खड़ी कांवड़ यात्रा को पूर्ण करने के बाद भक्त गंगाजल को शिवलिंग पर अर्पित करते हैं और अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करते हैं।

दांडी कांवड़ यात्रा

दांडी कांवड़ यात्रा एक विशेष प्रकार की कांवड़ यात्रा है, जिसमें भक्त दांडी (लकड़ी की छड़ी) का उपयोग करते हुए, गंगाजल को नदी से लेकर मंदिर तक दंड लगाते हुए लेकर पहुंचता है.। इस यात्रा को सभी कांवड़ से बेहद कठिन माना जाता है, इश्के बयजुद भक्तों का उत्साह और श्रद्धा देखने लायक होती है।

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