Dadra Nagar Haveli Liberation: दादरा नगर हवेली की आज़ादी की कहानी
भारत 15 अगस्त 1947 को ब्रिटिश औपनिवेशिक नियंत्रण से मुक्त हुआ। हालांकि गोवा, हैदराबाद और दादरा नगर हवेली जैसे क्षेत्र अभी भी औपनिवेशिक शासन के अधीन थे। अंग्रेजों से पहले भारत में आने के कारण पुर्तगालियों का दबदबा था। पुर्तगाली राजा सालाजार के शासन के बाद परेशान युवा भारतीयों ने उन्हें क्रांति के लिए प्रेरित किया।
क्रांति का आयोजन
बाबासाहेब पुरंदरे, सुधीर फड़के, राजाभाऊ वाकणकर, विश्वनाथ नरवाने और श्रीकृष्ण भिड़े जैसे प्रख्यात नेताओं सहित बीस से पच्चीस युवाओं ने महाराष्ट्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख विनायकराव आप्टे से मुलाकात की। उन्होंने दादरा नगर हवेली को मुक्त करने की अपनी योजना के बारे में बताया। राजाभाऊ वाकणकर, बाबासाहेब पुरंदरे, सुधीर फड़के, नरवाने और काजरेकर-जिन्होंने क्षेत्र में महत्वपूर्ण जानकारी एकत्र करने में लगभग छह महीने बिताए-इस संघर्ष में प्रमुख योद्धा थे।
मुक्ति आंदोलन
वर्ष 1954 में मुक्ति आंदोलन की शुरुआत हुई, जिसका नेतृत्व सेनापति के.एम. माधव राव ने किया। वहीं इस आंदोलन में आरएसएस की भी खास भूमिका नज़र आई जिसमें नाना काजरेकर, भाऊ महाजन और राजा वाकणकर प्रमुख थे। वहीं 2 अगस्त 1954 को भारतीय सेना ने दादरा पर कब्जा किया, जिसका नेतृत्व ब्रिगेडियर के.एस. पठानिया ने किया।
मुक्ति दिवस
2 अगस्त, 1954 को दादरा नगर हवेली ने सभी पुर्तगाली झंडे उतार दिए और भारतीय तिरंगा फहराया। सभी ने “भारत माता की जय” के नारे लगाए, एक-दूसरे को गले लगाया और साथ मिलकर राष्ट्रगान गाया। 15 अगस्त, 1954 को उन्होंने स्वतंत्रता दिवस मनाया, इस प्रकार स्वतंत्रता के लिए उनकी लड़ाई में एक बड़ी जीत की पुष्टि हुई। स्वतंत्रता के संघर्ष में इस जीत का सम्मान करने के बाद, प्रतिभागी अपने घरों को वापस चले गए। औपनिवेशिक नियंत्रण का विरोध करने वाले युवा भारतीय देशभक्तों की बहादुरी और इच्छाशक्ति का एक स्मारक, दादरा नगर हवेली मुक्ति उनके कार्यों ने न केवल क्षेत्र को मुक्त किया, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को स्वतंत्रता और स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए प्रेरित किया।