Part 01: जानिए अखंड भारत संकल्प दिवस (Akhand Bharat Sankalp Diwas) का इतिहास 

Akhand Bharat Sankalp Diwas

15 अगस्त 1947 को हमें ब्रिटिशों के 150 वर्षों की गुलामी से आजादी मिली। लेकिन यह आजादी प्यारी मातृभूमि के विभाजन के बाद मिली। हिंदुस्तान राष्ट्र के धर्म के आधार पर दो टुकड़े किए गए। भारत और पाकिस्तान नहीं, बल्कि “इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ पाकिस्तान।” धर्म के नाम पर मातृभूमि का विभाजन हमारे इतिहास में अकल्पनीय और समझ से परे थी। इतिहास में हमारे देश पर हूण, कुषाण, शक और यवन (अलेक्जेंडर) के चार बड़े आक्रमण हुए। रणभूमि में कभी हमारी पीछे हटने की स्थिति आई तो कभी आगे भी बढ़ें। अंत में अंतिम विजय हिंदुस्तान की ही हुई। कुछ आक्रमणकारी वापस चले गए, कुछ यहीं रह गए। जो यहां रह गए, उन्हें भारतीय संस्कृति में समाहित कर लिया। वर्ष 1980 के दशक में कनाडा से निकलने वाली एयर इंडिया की “कनिष्क” विमान के कार्गो में बम रखकर खालिस्तान आतंकवादियों ने नॉर्थ अटलांटिक महासागर में जमीन से 31000 फीट ऊंचाई पर 329 यात्रियों सहित उड़ा दिया था। 

कौन था राजा कनिष्क?

राजा कनिष्क कुषाण आक्रमणकारियों में से एक राजा था। आक्रमणकारी होने के बावजूद वह इस भूमि और संस्कृति से जुड़ा हुआ था। कनिष्क को राजा के रूप में स्वीकार किया गया, लेकिन मातृभूमि का विभाजन नहीं होने दिया। युगों-युगों से यही परिपाटी बनी हुई है, खून दिया है, मगर नहीं दी कभी देश की माटी है।”इस प्रतिज्ञा को 14 अगस्त1947 को पहली बार तोड़ा गया। राष्ट्र का विभाजन हमारे चिरकालीन राष्ट्र की आत्मा पर एक खूनी घाव है… बिल्कुल माथे पर मणि काटे हुए अश्वत्थामा की खून बहती घाव की तरह। 

विभाजन से हमने क्या खोया? 

सिंधू बिना हिंदू का मतलब है शब्द बिना अर्थ, प्राण बिना काया… स्वतंत्रता वीर सावरकर की इस परिभाषा में हमारी पहचान… सिंधू नदी हमें अनाथ कर गई- 

  • भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव को 23 मार्च 1931 को जिस कोट लखपत जेल में फांसी दी गई थी। लाहौर हमारे हाथ से निकल गया। 23 मार्च को पाकिस्तान में राष्ट्रीय अवकाश होता है। लेकिन यह क्रांतिकारियों को फांसी देने की याद में नहीं बल्कि उसी रावी नदी के किनारे लाहौर शहर में 23 मार्च 1940 को पाकिस्तान का नाम लिए बिना मुस्लिम समुदाय के लिए अलग भूमि की मांग के प्रस्ताव को पारित करने की याद में होता है।
  • दूसरे विश्व युद्ध में ब्रिटिशों के पक्ष में लड़कर घायल हुए भारतीय सैनिकों को पंजाब प्रांत की रावी और चिनाब नदी के पठार पर बसे ल्यालपुर में ब्रिटिश सरकार ने घर बनाने और खेती के लिए जमीन दी थी। उन बहादुर और मेहनती सैनिकों ने “जय जवान जय किसान” का नारा सही करते हुए पूरे ल्यालपुर को हरे-भरे मोतियों से भर दिया था। ल्यालपुर हमारे हाथ से निकल गया। 1977 में पाकिस्तान के प्रधान मंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने फ्री पेट्रोल की उम्मीद में सऊदी अरब के राजा किंग फैसल की याद में ल्यालपुर का नाम बदलकर फैसलाबाद कर दिया।
  • उस समय “जुड़वा मुंबई” के रूप में जानी जाने वाली कराची के साथ हमारी दूरी बढ़ गई।
  • 5000 साल पहले की हमारी सभ्य, संपन्न, वैभवशाली नगररचना के प्रमाण हड़प्पा और मोहनजोदड़ो सीमा पार रह गए। 
  • 51 शक्तिपीठों में से एक हिंगलाज माता शक्तिपीठ हमसे दूर हो गई। 
  • सिख संप्रदाय के संस्थापक गुरदेव नानक का जन्मस्थान ननकाना साहेब हमसे छूट गया। 
  • जहां सिख संप्रदाय की शुरुआत हुई थी, “करतारपुर दरबार साहिब गुरुद्वारा” सीमा रेखा से सिर्फ 4 किलोमीटर दूर होने के बावजूद हमसे छूट गया।
  • 8 मई 1758 को हुई पेशावर की लड़ाई में जिसमें मराठा साम्राज्य ने सिखों के साथ मिलकर दुर्रानी साम्राज्य को हराकर जीता था, वह पेशावर हमारी नजर से बाहर हो गया।
  • मराठों के भीमथड़ी घोड़ों ने अटक पार जाकर सिंधू नदी का पानी पिया इसलिए पुणे में दिवाली मनाई गई थी, वह हमारे पड़ोसी शत्रु देश के कब्जे में रह गई।
  • समस्त हिंदू समाज के शक्तिपीठ ढाकेश्वरी मंदिर का शिखर हमारी नजर से दूर हो गया।
  • पंजाब में 5 नदियों (रावी, चिनाब, झेलम, सतलुज, ब्यास) से समृद्ध भूमि हमने खो दी।
  • हमारे कम से कम 6 लाख हिंदू भाइयों और बहनों की निर्दय हत्या की कीमत हमने चुकाई। 
  • अनगिनत माताओं और बहनों पर अत्याचार यह प्राण से भी बड़ी कीमत चुकाई गई। उनमें से कितनी हिंदू बहनों को जबरदस्ती निकाह करवा कर पाकिस्तान में ही रख लिया गया, जिसकी गणना भी नहीं की जा सकती। 
  • कम से कम 1.20 करोड़ हिंदू भाई-बहन अपनी पैतृक जमीन-जायदाद और स्थावर संपत्ति छोड़कर असहाय होकर भारत आए। मुल्तान से आए हिंदी फिल्म अभिनेता राज कपूर का खानदान हो, सुनील दत्त का परिवार हो अथवा राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक विजेता मिल्खा सिंह हो या सिंध प्रांत के हैदराबाद के आध्यात्मिक क्षेत्र के साधू वासवानी मिशन हो। यह सूचि अंतहीन है।
  • हिंदुस्तान के कुल क्षेत्रफल का लगभग 1/4 भूभाग हमने खो दिया। 
  • पाकिस्तान चाहिए इसलिए मुस्लिम लीग को वोट देने वाला मुस्लिम मतदाता विभाजन के बाद कुछ मात्रा में पाकिस्तान में स्थानांतरित हो गया, लेकिन ज्यादा तादाद में यहीं रहा। मतलब स्वतंत्र भारत में पाकिस्तान चाहने वाले जिहादी मानसिकता के देशद्रोही मुसलमान मुस्लिम लीग ऑफ इंडिया के नए नाम से यहीं रहे।
  • धर्म के आधार पर खड़ा हुआ, हमारे हिंदू काफिर कहकर हमेशा नफरत करने वाला शत्रु राष्ट्र हमारे पड़ोसी षड्यंत्र रचकर बसा गया। “अच्छा पड़ोसी आपके घर की कीमत दोगुनी कर देता है” – जर्मन कहावत यानी बुरा पड़ोसी आपके घर की कीमत आधी कर देता है। पाकिस्तान पड़ोसी होने से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हमारी वही स्थिति हो गई।

विभाजन किसने किया? 

लौकिकार्थ से विभाजन ब्रिटिशों ने कायदे आजम मोहम्मद अली जिन्ना के कंधे पर बंदूक रखकर किया।

  • 16 अगस्त 1946 को मुस्लिम लीग ने अलग पाकिस्तान के लिए पुकारे गए डायरेक्ट एक्शन डे के अनियंत्रित हिंसा, विशेष रूप से नौखाली, कलकत्ता और संपूर्ण बंगाल में हिंदुओं की नृशंस हत्या से डरी हुई कांग्रेस ने विभाजन को मंजूरी दी।
  • विभाजन के कारणों की गहराई में जाने पर मुख्यतः असंगठित और उदासीन हिंदू समाज को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है।

अखंड भारत संकल्प दिवस के इतिहास के दूसरे पार्ट में इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ पाकिस्तान कैसे एक असफल प्रयोग है यह जानेंगे।

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