Kakori Conspiracy: काकोरी षड्यंत्र जिसने हिला दी थी ब्रितानिया साम्राज्य की जड़ें

Kakori Conspiracy

अंग्रेजी हुकूमत से लोहा लेने के लिए भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े भारत माता के 10 वीर सपूतों ने काकोरी षड्यंत्र (Kakori Conspiracy) को अंजाम दिया था। तकरीबन 99वे वर्ष पूर्व घटी यह घटना किसी पवित्र कार्य से कम नहीं थी। आप सोच रहे होंगे कि पवित्र घटना कैसे तो, आपको बता दें कि काकोरी की घटना हर भारतीय के लिए गर्व करने वाली बात है। वो बात और है कि अंग्रेजों के लिए तो महज यह एक लूट भर थी। शुरुआत में तो वो इसे ट्रेन में हुई एक मामूली लूट मान रहे थे। जिसमें उनके द्वारा ले जा रहे सरकारी खजानों को लूटा गया था। खैर, आजाद भारत में हम सभी भारतीयों के लिए तो यह बड़े फक्र की ही बात है।

काकोरी षड्यंत्र (Kakori Conspiracy) को किसने दिया था अंजाम

जाहिर तौर पर अब आपके मन में चल रहा होगा कि आखिर आज से तकरीबन सौ साल पहले हुए काकोरी षड्यंत्र (Kakori Conspiracy) की चर्चा साल दर साल क्यों होती है? निश्चित ही आपके मन में यह प्रश्न कौंध रहा होगा। तो आपको बता दें कि यह कोई सामान्य घटना नहीं थी। दरअसल, यह एक ऐसी घटना थी जिसमें हमारे देश के बहादुरों ने ब्रितानिया हुकूमत के खिलाफ लड़ने के लिए उन्हीं के खजाने को लूट कर उससे हथियार और गोलाबारूद खरीदने की योजना बनाई थी। जाहिर है इस घटना को चरखा से सूत काटकर तो अंजाम नहीं ही दिया जा सकता था। और कोई सूत काटने वाला इसके बारे में सोच भी नहीं सकता। ऐसे कारनामों के लिए बड़े जिगरे की आवश्यकता होती है। सो, उनसे तो होने रहा। खैर, आपको जानकर फक्र होगा कि इसे कोई और नहीं बल्कि हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) से जुड़े वीर सदस्यों ने अंजाम दिया था। जिनमें, पंड‍ित राम प्रसाद बिस्मिल जी , पंडित चंद्रशेखर आजाद जी, अशफाक उल्ला खान साहब, मुरारी शर्मा जी, बनवारी लाल जी, राजेंद्र लाहिडी जी, शचींद्रनाथ बख्शी जी, केशव चक्रवर्ती जी, मनमथनाथ गुप्ता जी जैसी महान क्रांतिकारी शामिल थें।

आखिर क्यों हुई लूट की यह घटना?

दरअसल हुआ यह था कि स्वतंत्रा आंदोलन को गति देने और हथियार खरीदने के लिए पैसों की जरूरत थी। इस बीच पंड‍ित राम प्रसाद बिस्मिल के घर 8 अगस्त के दिन एक बैठक हुई और इस बैठक उन्होंने सरकारी खजाने को लूटने की योजना बनाई गई। बैठक के बाद अगले दिन यानी नौ अगस्त के दिन लखनऊ स्थित काकोरी रेलवे स्टेशन जैसे ही सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर ट्रेन पहुंची, सबसे पहले चेन खींचकर ट्रेन रोकी ली गई। और ट्रेन के रुकते ही पंडित राम प्रसाद बिस्मिल ने पंडित चंद्रशेखर आजाद और 6 अन्य साथियों की मदद से ट्रेन में छापा मारकर सरकारी खजाने को लूट लिया। अंग्रेजों ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि मुठ्ठी भर लोग मिलकर इतनी बड़ी घटना जो अंजाम दे देंगे।

आखिर क्यों अंग्रेजों की आंख की किरकिरी बनी यह घटना

जाहिर है क्रांतिकारियों के इस शौर्य पराक्रम के बाद लूट की यह घटना को जंगल में आग की तरह फैलनी ही था। और फैली भी। कहने के लिए यह एक छोटी सी लूट थी, लेकिन इस घटना ने अंग्रेजी शासन की इज्जत पर बट्टा लगा दिया था। काकोरी की घटना के बाद ब्रितानिया हुकूमत ने मामले की जांच स्कॉटलैंड पुलिस के सबसे तेज तर्रार और अफसर आरए हार्टन को विशेषरूप से इस लूट की जाँच के लिए बुलाया गया था।

हजारों की लूट की घटना की जांच में अंग्रेजों ने फूंक डाले थे लाखों रूपये

आपको जानकार हैरानी होगी कि तकरीबन आठ हजार रुपये की हुई लूट की वारदात की जांच पड़ताल में अंग्रेजों ने 13 लाख रूपये फूंक दिए थे। सोचिए उस दौर में 13 लाख कितनी बड़ी रकम रही होगी। वैसे अंग्रेज करते भी क्या भारत के सपूतों ने कारनामा किया ही था ऐसा कि ब्रिटिश साम्राज्य की किरकिरी होनी थी। सिर्फ अपनी नाक ऊंची रखने के लिए अंग्रेजों ने लाखों रूपये फूंक दिए थे। हैरानी वाली बात यह कि लूट से तो ज्यादा तो उन्होंने इनामी राशि घोषित कर रखी थी। उनकी खीझ का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि उन्होंने क्रांतिकारियों के पर अंग्रेजी शासन के खिलाफ सशस्त्र युद्ध छेड़ने और सरकारी खजाना लूटने के साथ-साथ हत्या का मुकदमा लगाया था। जो कि 10 महीने तक चला था।

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