शिवराम राजगुरु भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रांतिकारी थे, लेकिन उनके जीवन की कई कहानियां अब भी अनसुनी हैं। यहां उनके जीवन की 15 अनसुनी कहानियां हम आपके साथ साझा कर रहे हैं।
- राजगुरुजी का जन्म 24 जुलाई 1908 को महाराष्ट्र के खेड़ गांव में हुआ, जिसे अब राजगुरुनगर के नाम से जाना जाता है। उनका बचपन गरीबी में बीता, लेकिन उन्होंने अपनी शिक्षा पूरी की और बचपन में ही देश स्वतंत्रता के लिए समर्पित हो गए।
- वर्ष 1920 में महज 12 साल की उम्र में राजगुरुजी ने पुणे में वसुंधरा वर्धन मंदिर की स्थापना की, जहां वे स्थानीय युवाओं को संगठित करते थे और उन्हें स्वतंत्रता संग्राम के लिए प्रेरित करते थे।
- 1923 में जब वे महज़ 15 साल के थें तभी उन्होंने गुप्त तकनीकों का प्रशिक्षण लेना शुरू किया।
- 17 दिसंबर 1928 को राजगुरुजी ने भगत सिंह और सुखदेव के साथ मिलकर लाहौर में ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की हत्या की। यह घटना ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ एक बड़ा प्रतिशोध था।
- 1929 में राजगुरुजी ने भगवती चरण वोहरा से गुप्त मुलाकात की, जिसमें उन्होंने हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) की रणनीतियों पर चर्चा की और ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ और अधिक आक्रामक कदम उठाने की योजना बनाई।
- मार्च 1929 में राजगुरुजी ने वित्तीय सहायता जुटाने के लिए ब्रिटिश अधिकारियों के खिलाफ एक डकैती की योजना बनाई। इस योजना के तहत उन्होंने सरकारी खजाने को निशाना बनाने की कोशिश की।
- 1929 के मध्य में राजगुरुजी ने पारकर से मुलाकात की, जो एक प्रमुख क्रांतिकारी थे। इस मुलाकात का उद्देश्य हथियारों की पूर्ति करना और क्रांतिकारी गतिविधियों को और अधिक प्रभावशाली बनाना था।
- अप्रैल 1929 में राजगुरुजी और भगत सिंह को गिरफ्तार किया गया और लाहौर जेल में रखा गया। यहां उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ एकजुट होकर लड़ने की योजना बनाई।
- 1929 में राजगुरुजी ने नौजवान भारत सभा के विचारों को प्रोत्साहित किया और इस संगठन के माध्यम से युवाओं को संगठित करने का कार्य किया। यह संगठन स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने लगा।
- वर्ष 1930 की शुरुआत में राजगुरुजी ने जेल में भगत सिंह के साथ गुप्त बातचीत की। इस बातचीत का उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्य को चुनौती देने के लिए नई रणनीतियां बनाना था।
- 7 अक्टूबर 1930 को राजगुरुजी, भगत सिंह और सुखदेव को लाहौर षड्यंत्र केस के लिए फांसी की सजा सुनाई गई। इस फैसले ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ ला दिया।
- मार्च 1931 में फांसी से पहले राजगुरुजी ने अपने परिवार को आखिरी पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने अपने विचार और अपने जीवन के उद्देश्य को स्पष्ट किया।
- 23 मार्च 1931 को राजगुरुजी, भगत सिंह और सुखदेव को लाहौर जेल में फांसी दे दी गई। यह दिन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है।
- 1950 में राजगुरुजी की शहादत के सम्मान में राजगुरुनगर, जिसे पहले खेड़ के नाम से जाना जाता था वहां एक स्मारक का निर्माण किया गया। यह स्मारक उनकी वीरता और बलिदान को हमेशा याद दिलाता है।
- 1991 में भारत सरकार ने राजगुरुजी के सम्मान में कई राष्ट्रीय स्मारक और आयोजन किए। उनकी स्मृति को जीवित रखने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए गए।
राजगुरुजी का जीवन बलिदान, साहस और संघर्ष का प्रतीक है। उनकी इन अनसुनी कहानियों से हमें उनके अद्वितीय योगदान का पता चलता है, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक अमिट छाप छोड़ते हैं। जय राष्ट्र की पूरी टीम की ओर से श्रद्धांजलि और नमन।
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