क्या संघ को बीजेपी की हो रही फ़िक्र के चलते ही Ram Madhav की हुई भाजपा में पुनः वापसी?

Ram Madhav

जम्मू-कश्मीर में चुनावी बिगुल बज चुका है। चुनावी घोषणा के बाद से ही अन्य दलों के साथ ही भाजपा ने भी चुनावी रणनीति बनानी शुरू कर दी है। 90 सदस्यों वाली जम्मू-कश्मीर विधानसभा में तीन चरणों में चुनाव होने हैं। 18 सितंबर, 25 सितंबर और 1 अक्टूबर को वोट डाले जायेंगे और 4 अक्टूबर के दिन हरियाणा सहित जम्मू-कश्मीर के चुनावी परिणाम घोषित किये जायेंगे। इसके मद्देनजर भारतीय जनता पार्टी ने एक बार फिर राम माधव (Ram Madhav) पर विश्वास जताते हुए जम्मू-कश्मीर की जिम्मेदारी सौंपी है। दरअसल, साल 2014 में जम्मू-कश्मीर में बीजेपी और पीडीपी गठबंधन की सरकार बनवाने से लेकर धारा 370 हटाने की तैयारियों में राम माधव की विशेष भूमिका रही है। मतलब साफ है, बीजेपी एक बार फिर उनसे बड़ी उम्मीद कर रही है। इसलिए उन्हें इस राज्य की जिम्मेदारी सौंपी है। 

गलत रणनीति बनाने के चलते भले राम माधव (Ram Madhav) को भाजपा से दिया गया था हटा 

 गौरतलब है कि पांच साल बाद एक बार फिर राम माधव (Ram Madhav) की बीजेपी में वापसी हो रही है। साल 2014 में मोदी सरकार की स्थापना के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में राम माधव कद तेजी से बढ़ा था। यह तो ठीक, लेकिन जम्मू-कश्मीर में पीडीपी के साथ सरकार बनाने का फार्मूला विफल होने के चलते उन्हें भाजपा से हटा कर आरएसएस भेज दिया गया था। गलत रणनीति बनाने के चलते भले ही राम माधव को भाजपा से हटा दिया गया था लेकिन 5 साल बाद एक बार फिर उन्हें पार्टी में बड़ी जिम्मेदारी दी गई है। राजनीतिक पंडित इस बात के भी कयास लगा रहे हैं कि संघ को कहीं न कही बीजेपी के हार की चिंता होने लगी है। 

जेपी नड्ढा के बयान ने बढ़ाई थी संघ और बीजेपी के बीच कड़वाहटें

दरअसल, लोकसभा चुनाव में प्रचार के दौरान बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्ढा ने संघ के सहयोग के बिना चुनाव लड़ने की बात कही थी। जिसका खामियाजा बीजेपी अच्छी तरह से भुगत चुकी है। इस बड़बोलेपन का सबसे बड़ा नुकसान यह कि बीजेपी को केंद्र में पूर्ण बहुमत के लिए अन्य दलों की बैसाखियों पर निर्भर रहने तक की नौबत आन पड़ी। खैर, जैसे-तैसे जोड़तोड़ कर केंद्र में मोदी सरकार बन तो गई, लेकिन कहीं न कहीं भाजपा के मन में इस बात की टीस है ही कि नाहक ही संघ से बैर लिया। बीजेपी राम मंदिर को लोकसभा चुनाव में भुनाना चाहती थी। उसे लगा था कि राम मंदिर निर्माण उसके लिए तुरुप का पत्ता साबित होगा। लेकिन हुआ उल्टा, नतीजतन उसे अयोध्या की सीट से भी हाथ धोना पड़ा। 

आपसी तल्खियों से नुकसान छोड़ लाभ नहीं 

खैर, संघ यह अच्छी तरह जानता है कि आपसी मनमुटावों से नुकसान छोड़ लाभ नहीं है। इसकी बानगी 2024 के लोकसभा चुनाव में देखी ही जा चुकी है। ऐसे में संघ यह कतई नहीं चाहेगा कि भाजपा की हार हो। भाजपा की हार से संघ को भी नुकसान ही होना है। ऐसे में जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हटाने के बाद पहली बार विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। इस चुनाव में संघ कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता। बीजेपी को भी गलती का अहसास हो गया है। सो, अब वो ऐसा कोई भी कदम नहीं उठाना चाहती जिससे पार्टी को नुकसान हो। कहने की जरूरत नहीं, बीजेपी की तरह संघ भी कोई भी जोखिम लेने के मूड में नहीं है। कारण यही, जो एक बार फिर दोनों आपसी तल्खियों को भुलाकर एक साथ चुनावी रणनीति की तैयारियों में जुट गए हैं। और रही बात राम माधव (Ram Madhav) की, तो यह तो चुनावी नतीजे ही बताएंगे कि राम माधव बीजेपी के लिए क्या कुछ कर पाते हैं। 

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