भगवान श्री कृष्ण (Lord Krishna) और उनकी माता यशोदा (Maa Yashoda) की कहानी भारतीय धार्मिक परंपराओं में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। यह कहानी न केवल ईश्वर और भक्त के बीच के प्रेम का उदाहरण है, बल्कि एक माता और पुत्र के बीच की ममता और स्नेह का भी अद्वितीय चित्रण करती है। श्रीमद्भागवत पुराण और अन्य धार्मिक ग्रंथों में इस कथा का वर्णन मिलता है, जो सदियों से भारतीय जनमानस में गहरी छाप छोड़ता आया है। यह कहानी भगवान के प्रति एक मां के असीमित स्नेह और ईश्वर की लीला का अद्भुत चित्रण करती है।
श्री कृष्ण (Lord Krishna) का बाल्यकाल
भगवान श्री कृष्ण (Lord Krishna) का जन्म मथुरा के कंस कारागार में हुआ था, लेकिन उन्हें बचपन से ही गोकुल में नंदबाबा और यशोदा माता के संरक्षण में पाला गया। पुराणों में कहा गया है कि श्री कृष्ण के असली माता-पिता देवकी और वसुदेव थे, लेकिन भगवान की लीला के अनुसार, उन्होंने अपना बाल्यकाल यशोदा और नंदबाबा के सानिध्य में बिताया। गोकुल में उनका बचपन बहुत ही अद्भुत और चमत्कारों से भरा हुआ था।
मनु-शतरूपा की तपस्या
यह कहानियाँ जनश्रुति पर आधारित हैं और इनका स्पष्ट पौराणिक उल्लेख नहीं मिलता है। हालांकि, विष्णु पुराण और भागवत पुराण में श्रीराम और श्रीकृष्ण के जन्म का वर्णन मिलता है। विष्णु पुराण के अनुसार, मनु और शतरूपा ने हजारों वर्षों तक तपस्या की थी। इस तपस्या के माध्यम से उन्होंने भगवान विष्णु से हर अवतार में अपने गर्भ से जन्म लेने का आशीर्वाद प्राप्त कर लिया था। मनु की इच्छा थी कि वे हर जन्म में भगवान के पिता बनें। इस प्रकार, त्रेता युग में मनु-शतरूपा ने दशरथ और कौशल्या के रूप में जन्म लिया।
कैकेयी का श्रीराम से प्रेम
राम अवतार में कैकेयी ने भी श्रीराम का लालन-पालन किया और उन्हें प्रेम करती थीं। लेकिन उनके मन में इस बात का दुख बना रहा कि उन्होंने एक माँ होकर श्रीराम को वनवास भेज दिया था। उन्होंने श्रीराम से यह इच्छा व्यक्त की कि वे एक बार फिर से उनकी माँ बनकर अपनी ममता पर लगे इस कलंक को मिटाना चाहती हैं।
श्रीराम ने उन्हें बताया कि उन्होंने पहले ही माता कौशल्या को उनके गर्भ से जन्म लेने का वरदान दे दिया है। लेकिन द्वापर युग में जब आपका जन्म होगा, तब मैं जन्म के तुरंत बाद ही आपके पास आ जाऊंगा और इस तरह आपका पुत्र कहलाऊंगा। श्रीकृष्ण ने अपने इस वचन को निभाया और यशोदा के पुत्र के रूप में प्रसिद्ध हुए।
मां यशोदा का स्नेह
मां यशोदा के लिए श्री कृष्ण (Lord Krishna) केवल उनका पुत्र नहीं थे, बल्कि उनके जीवन का केंद्र थे। यशोदा माता का स्नेह, उनके लिए जो चिंता और प्यार था, वह असीमित था। जब श्री कृष्ण ने अपनी लीला के रूप में माखन चोरी करना शुरू किया, तो यशोदा माता के लिए यह बाल्यकाल की एक साधारण शरारत थी, लेकिन उन्होंने इसे बड़े ही प्रेम से स्वीकार किया। माखन के प्रति श्री कृष्ण का प्रेम भी यशोदा माता की ममता और उनकी देखभाल का ही प्रतीक था।
यशोदा का श्री कृष्ण (Lord Krishna) को बांधने का प्रसंग
श्रीमद्भागवत पुराण में वर्णित एक प्रसिद्ध प्रसंग है जब यशोदा माता ने श्री कृष्ण को उखल से बांधने की कोशिश की। यह घटना उस समय की है जब यशोदा ने श्री कृष्ण को माखन चोरी करते हुए पकड़ा था और उन्हें उखल से बांधने का निर्णय लिया। वह घर के कामों में व्यस्त हो गईं। इस दौरान, कृष्ण ने बल का प्रयोग कर ओखली को गिरा दिया और उसे घसीटते हुए द्वार पर लगे दो पेड़ों के बीच में फंसा दिया। उन्होंने इतनी ताकत लगाई कि दोनों पेड़ टूट गए, जिससे लंबे समय से शापित यक्षों को मुक्ति मिली।
भगवान श्रीकृष्ण (Lord Krishna) के चमत्कार अद्वितीय थे
कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण (Lord Krishna) के चमत्कार अद्वितीय थे। जैसे ही यमलार्जुन के पेड़ों को भगवान का स्पर्श हुआ, उनमें से दो यक्ष, मणिग्रीव और नलकुवर, मुक्त हो गए। उन्होंने भगवान कृष्ण का आभार व्यक्त किया और कहा कि वे वर्षों से उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे। भगवान की कृपा से उन्हें मुक्ति मिली। जब यक्ष आकाश में विलीन हो गए, तो लोग वहां दौड़ आए और डर के मारे माता यशोदा ने कृष्ण को अपनी गोद में उठा लिया। नंदजी, बालक कृष्ण की शरारतों से परेशान होकर अपने गायों के साथ वृंदावन चले गए। वहां भी भगवान ने अनगिनत लीलाएं कीं। उन्होंने यमुना में रहने वाले विषधर कालिया नाग को हराकर सबको भयमुक्त किया। वृंदावन में रहते हुए, श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ रास लीलाएं कीं, जिससे यह सिखने को मिलता है कि सच्चे प्रेम से कामनाओं का नाश हो जाता
ब्रह्मांड दर्शन
एक अन्य अद्भुत घटना तब घटी जब कान्हा बचपन में माखन-मिश्री के साथ-साथ माटी भी खाते थे। एक दिन, किसी ने यशोदा मैय्या से शिकायत की कि उनका लल्ला माटी खा रहा है। यह सुनकर यशोदा मैय्या तुरंत कान्हा के पास पहुंचीं और उन्हें डांटते हुए पूछा, “लल्ला, क्या तुमने माटी खाई है?”
मुख में माटी होने के कारण कान्हा ने सिर हिलाकर ‘ना’ में उत्तर दिया। यशोदा मैय्या को यह शक हुआ कि कान्हा झूठ बोल रहे हैं, इसलिए उन्होंने ज़बरदस्ती कान्हा से मुंह खोलने को कहा। जैसे ही कान्हा ने अपना मुख खोला, मैय्या यशोदा को पूरे ब्रह्मांड के दर्शन हो यह दृश्य यशोदा माता के लिए अत्यंत चौंकाने वाला था। उन्हें उस क्षण एहसास हुआ कि उनका बालक कोई साधारण बच्चा नहीं, बल्कि स्वयं भगवान विष्णु का अवतार है।
यशोदा माता (Maa Yashoda) के सामने सम्पूर्ण ब्रह्मांड का दर्शन करवाने का श्री कृष्ण का उद्देश्य यह था कि वह यशोदा के मन में यह विश्वास जगा सकें कि वह उनके पुत्र ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण सृष्टि के रचयिता भी हैं।
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