साल 2024 के लोकसभा चुनाव के समय से ही राहुल गांधी (Rahul Gandhi) बदले-बदले से नजर आ रहे हैं। एक तरह से कह लें कि अब वो देश की नब्ज को आसानी से समझने लगे हैं। उनके इस बदलते रूप और बिहेवियर को देखते हुए ही सैम पित्रोदा ने उन्हें राजीव गांधी से अधिक समझदार तक बता दिया। खैर, विगत कुछ दिनों से जिस तरह उन्होंने बेरोजगारी और जातिगत जनगणना से मुद्दों पर अपनी बेबाक राय रखी है उसे देख, उनकी कट्टर प्रतिद्वंदी स्मृति ईरानी ने भी यह माना है कि अब राहुल गांधी एक अलग तरह की राजनीति कर रहे हैं। वैसे भी पिछले कुछ वर्षों से एकाएक सब कुछ बदलने लगा है। डीएमके के स्टालिन, आरजेडी के तेजस्वी से लेकर एनसीपी के शरद पवार सभी उनकी तारीफ में कसीदे पढ़ रहे हैं।
बदले अंदाज में कुछ और करना चाह रहे हैं?
दरअसल, लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी ने राष्ट्रीय खेल दिवस के मौके पर को एक वीडियो शेयर किया था। जिसमें वे मार्शल आर्ट करते नजर आ रहे थे। इसे शेयर करते हुए उन्होंने कहा कि कि जब हम भारत जोड़ो न्याय यात्रा पर थे उस वक्त हर शाम जिउ जित्सु और एकिडो का अभ्यास करते थे। इस वीडियो के जरिए युवाओं को इन जेंटल आर्ट से परिचित कराना चाहते हैं। लेकिन यहां बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या राहुल गांधी (Rahul Gandhi) का उद्देश्य सिर्फ इतना ही है या फिर अपने बदले अंदाज में कुछ और करना चाह रहे हैं? कहीं ये 2029 के लोकसभा चुनाव की तैयारी तो नहीं है?
भारतीय राजनीति की उतनी नहीं थी समझ
खैर, राहुल गांधी (Rahul Gandhi) जब पहली बार 2004 में राजनीति में आए तो उन्हें भारतीय राजनीति की उतनी समझ नहीं थी। शुरू-शुरू में वो बहुत मुखर नहीं थे। धीरे धीरे उनके विरोधियों ने उनका पप्पू कहकर मज़ाक उड़ाना शुरू कर दिया और शुरू में राहुल गाँधी ने इस छवि से बाहर आने के लिए अपनी तरफ़ से कोई कोशिश भी नहीं की। नतीजतन उनके नेतृत्व में कांग्रेस, बीजेपी से एक के बाद एक कई राज्य हारती चली गई। जिसके चलते उनकी छवि का बड़ा मजाक उड़ाया जाता था। बीजेपी वाले तो यहां कहते थे कि ‘हमारे तो तीन प्रचारक हैं, मोदी, अमित शाह और राहुल गाँधी।’ यही नहीं, कांग्रेस में भी शुरू के दिनों में उनके पीठ पीछे उनका मज़ाक उड़ाया जाता था। इस बीच उन्होंने अपनी छवि में बड़ा बदलाव किया। पप्पू वाली छवि से निकलने की कोशिश की। मीडिया के सामने किसी भी तरह की बयानबाजी करने से बचते नजर आये। परिणामस्वरूप हर बार नपे तुले शब्दों में अपनी बात रखते देखे गए। उन्हें पता है, विरोधी पार्टी का आईटी सेल नहा धोकर उनके पीछे पड़ा है। जरा सी भी चूक उनकी छवि को धूमिल कर देगी। उन्होंने हर संभव अपनी छवि को निर्भीक बनाने की कोशिश की।
तीसरी बार सत्ता में कांग्रेस की हो सकती थी वापसी
हालांकि न वो कभी कोई मंत्री बने और न ही मुख्यमंत्री। वो चाहते तो कभी भी मंत्री बन सकते थे। चाहते तो प्रधानमंत्री भी बन सकते थे। 2009 में उनके पास अच्छा मौका था। कोई विरोध भी नहीं करता। लेकिन कहते हैं, सोनिया स्वयं नहीं चाहती थी कि उनके परिवार का कोई भी शख्स अथवा वो स्वयं प्रधानमंत्री बनें। वजह, जिस तरह उन्होंने अपनी सास और पति को खोया, उस तरह किसी और को खोना नहीं चाहती थीं। कहीं कुछ ऊंच नीच कुछ हो जाता, तो कभी अपने आप को माफ़ नहीं कर पाती। राजनीतिक हलकों में यह चर्चा भी होती है कि कांग्रेस ने यदि 2009 में प्रणव मुखर्जी को प्रधानमंत्री बना दिया होता, तो 2014 में लगातार तीसरी बार सत्ता में कांग्रेस की वापसी हो सकती थी।
कांग्रेस कार्यकर्ता अब तेजी से सक्रीय होते जा रहे हैं
खैर, 2014 में देश की जनता ने 30 साल बाद किसी पार्टी को पूर्ण बहुमत दिया। परिणामस्वरूप नरेंद्र मोदी पहली बार देश के प्रधानमंत्री बने। 2019 में दोगुनी ताकत से वे पुनः देश के पीएम बने। उनकी बनाई योजनाएं और विकास कार्य लोगों पर इस कदर हावी रहा कि कई राज्यों से कांग्रेस का सूफड़ा तक साफ़ हो गया। नतीजतन साल 2014 से 2019 तक कांग्रेस हाशिये पर पहुंच गई थी। ऐसा नहीं है कि यह बदलाव अचानक से हुआ है। इसकी प्लानिंग 2019 के बाद से शुरू हो गई थी। भारत जोड़ो और न्याय यात्रा के दौरान भी उन्हें अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग अंदाज में देखा गया था। कांग्रेस में जान फूंकने और जमीन पर अपनी पकड़ बनाने के लिए वो कभी राजमिस्त्रियों से मिलते, तो कभी ऑटो चालकों से। इसका असर यह कि सुस्त पड़े कांग्रेस कार्यकर्ता भी अब तेजी से सक्रीय होते जा रहे हैं।
2024 आते-आते नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में देखी गई कमी
नतीजतन 2019 लोकसभा चुनाव से पहले तीन राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जीत मिली। राजस्थान, एमपी और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस अपने दम पर सरकार बनाने में सफलता हासिल कर पाई। खैर, इस बीच साल 2024 आते-आते नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में कमी देखी गई। राम मंदिर उद्घाटन समारोह से उन्हें बहुत उम्मीदें थीं, लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। परिणामस्वरूप 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 240 से ही संतोष करना पड़ा। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा दिए गए कांग्रेस मुक्त भारत का बीजेपी को कोई लाभ नहीं हुआ।
खुद को देश के युवाओं से बेहतर तरीके से किया कनेक्ट
ध्यान देने योग्य बात यह कि पिछले कुछ वर्षों में राहुल गांधी ने खुद को देश के युवाओं से बेहतर तरीके से कनेक्ट किया है। उन्होंने युवाओं से कनेक्ट करने के लिए सोशल मीडिया का भी बेहतर इस्तेमाल किया। युवाओं से जुड़े हर मुद्दों को उठाया। चाहे अग्निवीर का मसला हो या सरकारी नौकरी का मामला। इसका लाभ चुनाव में भी दिखा। युवा वोटर्स ने हाल के वर्षों में पहली बार बीजेपी से अधिक वोट कांग्रेस को दिया। राहुल की मोहब्बत की दुकान की भी लोगों ने सराहना की। इस दरम्यान राहुल गांधी ने अपने सलाहकार बदले और इसका परिणाम यह हुआ कि उन्होंने कन्याकुमारी ने श्रीनगर तक भारत जोड़ो यात्रा निकाली।
कांग्रेस तेलंगाना और कर्नाटक में अपने दम पर सरकार बनाने में रही सफल
खैर, वो बात और है कि यात्रा के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस को कोई विशेष लाभ नहीं हुआ। लेकिन अच्छी बात यह हुई कि कांग्रेस तेलंगाना और कर्नाटक में अपने दम पर सरकार बनाने में सफल रही। इस सफलता से गदगद कांग्रेस ने मणिपुर से मुंबई तक भारत जोड़ो न्याय यात्रा निकाली। और यह यात्रा लोकसभा चुनाव से कुछ दिन पहले ही खत्म हुई। फिर क्या था, यात्रा के बाद हुए लोकसभा चुनाव में दोनों दलों के नेताओं ने पानी पी पीकर एक दूसरे को कोसा। कांग्रेस ने बीजेपी के 400 पार के नारे के जवाब में संविधान बचाओ का नारा दिया।
कांग्रेस को 44 से 99 तक दिया पहुंचा
इस बीच मजे की बात यह कि दलितों और एससी/एसटी समुदाय को लगा कि बीजेपी आरक्षण खत्म कर देगी। ऐसे में यूपी, महाराष्ट्र और हरियाणा में दलितों के वोट कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों को मिले। नतीजतन जहां-जहां बीजेपी को नुकसान हुआ वहां-वहां पर कांग्रेस को बड़ा फायदा हुआ। कमाल यह कि राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की इन दो यात्राओं ने कांग्रेस को 44 से 99 तक पहुंचा दिया। एक तरह से देखा जाए तो वेंटिलेटर पर पार्टी को संजीवनी मिल चुकी है। अब सबकी नजर इस साल होने वाले झारखंड, हरियाणा, महाराष्ट्र और जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव पर है। देखना दिलचस्प होगा कि राहुल गांधी की बदली-बदली छवि अब क्या रंग दिखाती है?
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