भारत के इतिहास में छत्रपति शिवाजी महाराज (Chhatrapati Shivaji Maharaj) एक ऐसे महान योद्धा और रणनीतिकार के रूप में प्रसिद्ध हैं, जिन्होंने मराठा साम्राज्य की नींव रखी और मुगलों समेत कई शक्तिशाली शासकों को चुनौती दी। शिवाजी महाराज की वीरता और रणनीतिक कौशल के अनेक किस्से इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं, जिनमें से एक अत्यंत महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध घटना है – अफजल खान के साथ उनकी लड़ाई। यह लड़ाई न केवल मराठा साम्राज्य की रक्षा के लिए एक निर्णायक मोड़ साबित हुई, बल्कि शिवाजी महाराज के शौर्य और चातुर्य का भी एक उदाहरण बनी।
कौन था अफजल खान (Afzal Khan)?
अफजल खान (Afzal Khan) आदिलशाही सल्तनत के एक सेनापति थे, जिन्हें बीजापुर के सुल्तान द्वारा शिवाजी महाराज को पराजित करने और मराठा साम्राज्य को खत्म करने के उद्देश्य से भेजा गया था। अफजल खान एक शक्तिशाली और निर्दयी योद्धा था, जिसकी क्रूरता और छल-कपट के लिए वह जाना जाता था। उसने बीजापुर की सेना का नेतृत्व करते हुए कई युद्धों में विजय हासिल की थी और शिवाजी महाराज को हराने के लिए भी उसे पूरी तरह से विश्वास था।
लड़ाई की पृष्ठभूमि
जब अफजल खान को शिवाजी महाराज (Chhatrapati Shivaji Maharaj) को हराने का आदेश मिला, तो उसने सबसे पहले शिवाजी महाराज की धार्मिक आस्थाओं को चोट पहुंचाने के उद्देश्य से तुंगभद्रा नदी के तट पर स्थित तीर्थस्थलों और मंदिरों को नष्ट करना शुरू कर दिया। इससे मराठा क्षेत्र में आक्रोश फैल गया, लेकिन शिवाजी महाराज ने बहुत संयम और धैर्य के साथ प्रतिक्रिया दी। अफजल (Afzal Khan) खान ने यह भी सोचा था कि शिवाजी महाराज डरकर आत्मसमर्पण कर देंगे, लेकिन वह उनकी चतुराई को पूरी तरह से समझने में असफल रहा।
प्रतापगढ़ की रणनीति
शिवाजी महाराज (Chhatrapati Shivaji Maharaj) ने अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए अफजल खान के खिलाफ एक कूटनीतिक चाल चली। उन्होंने अफजल खान को यह संदेश भिजवाया कि वे शांति की बात करने के इच्छुक हैं और प्रतापगढ़ किले में मुलाकात करने के लिए तैयार हैं। अफजल खान इस बात से प्रसन्न हो गया और उसने शिवाजी महाराज से व्यक्तिगत मुलाकात का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। प्रतापगढ़ किला एक रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण स्थान था, जो मराठा सेना के लिए अनुकूल था। शिवाजी महाराज ने इस जगह को विशेष रूप से चुना ताकि अफजल खान की सेना को किले तक पहुंचने में कठिनाई हो और मराठा सेना को इसका फायदा मिल सके।
मुलाकात और धोखाधड़ी
मुलाकात के दौरान दोनों नेताओं को बिना हथियारों के मिलना था। हालांकि, शिवाजी महाराज ने अपनी सुरक्षा के लिए धोबी हाथ (लोहे के पंजे) को अपने हाथ पर छुपा लिया और बघनख (तलवार जैसे नुकीले पंजे) को अपनी अंगुलियों में छिपा लिया। दूसरी ओर, अफजल खान भी छल करने के इरादे से आया था। उसने शिवाजी महाराज को गले लगाते ही अपने खंजर से उनकी हत्या करने की कोशिश की। लेकिन शिवाजी महाराज सतर्क थे। जैसे ही अफजल खान (Afzal Khan) ने हमला किया, उन्होंने अपने बघनख से अफजल खान पर प्रहार किया और उसे गंभीर रूप से घायल कर दिया। इसके बाद, शिवाजी महाराज ने अपने खंजर से उसे मार गिराया। अफजल खान के मृत्यु के साथ ही उसकी सेना भयभीत हो गई और मराठा सेना ने उन पर हमला कर उन्हें पराजित कर दिया।
परिणाम और महत्व
अफजल खान (Afzal Khan) की मृत्यु और प्रतापगढ़ की लड़ाई में शिवाजी महाराज की जीत ने मराठा साम्राज्य के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित किया। यह जीत मराठों के आत्मविश्वास और शक्ति को बढ़ाने वाली थी। शिवाजी महाराज की इस विजय ने यह साबित कर दिया कि युद्ध केवल ताकत से नहीं, बल्कि सूझबूझ, रणनीति और चतुराई से भी जीते जा सकते हैं। यह लड़ाई न केवल शिवाजी महाराज की व्यक्तिगत विजय थी, बल्कि यह मराठा साम्राज्य के विस्तार और सुरक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। इस जीत के बाद शिवाजी महाराज ने अपनी सैन्य ताकत को और अधिक मजबूत किया और मुगल साम्राज्य के खिलाफ भी अपनी मुहिम जारी रखी।
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