टाटा समूह में एक नया सूरज उगा है। नोएल टाटा का उदय (Noel Tata’s rise) एक ऐसी घटना है जो भारतीय उद्योग जगत में चर्चा का विषय बन गई है। रतन टाटा के निधन के बाद, उनके सौतेले भाई नोएल टाटा को टाटा ट्रस्ट का नया चेयरमैन चुना गया है। यह फैसला न सिर्फ टाटा परिवार के लिए, बल्कि पूरे देश के व्यापार जगत के लिए महत्वपूर्ण है। टाटा समूह की कहानी बहुत पुरानी है। इसकी शुरुआत 1868 में जमशेदजी नसीरवानजी टाटा ने की थी। आज यह समूह दुनिया भर में फैला हुआ है। 100 से ज्यादा देशों में इसकी 100 से अधिक कंपनियां काम कर रही हैं। इस विशाल साम्राज्य का बाजार मूल्य करीब 34 लाख करोड़ रुपये है। इतने बड़े साम्राज्य का नेतृत्व करना आसान काम नहीं है।\
नोएल टाटा अब टाटा ट्रस्ट के नए चेयरमैन हैं
नोएल टाटा का उदय (Noel Tata’s rise) इस बात का सबूत है कि वे इस जिम्मेदारी के लिए तैयार हैं। 67 साल के नोएल टाटा अब टाटा ट्रस्ट के नए चेयरमैन हैं। यह ट्रस्ट टाटा संस में 66 फीसदी हिस्सेदारी रखता है। इसका मतलब है कि नोएल टाटा अब टाटा समूह के सबसे शक्तिशाली व्यक्ति बन गए हैं। टाटा समूह को समझना थोड़ा मुश्किल हो सकता है। इसमें टाटा संस, टाटा ग्रुप और टाटा ट्रस्ट शामिल हैं। आइए इन्हें समझने की कोशिश करते हैं।
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टाटा संस की भूमिका
टाटा संस टाटा समूह की मूल कंपनी है। इसके नीचे 100 से ज्यादा कंपनियां काम करती हैं। टाटा संस के पास समूह की ज्यादातर संपत्तियां हैं। इसमें जमीन, चाय के बागान और स्टील के कारखाने शामिल हैं। टाटा संस को अपनी कमाई मुख्य रूप से डिविडेंड और ब्रांड के इस्तेमाल के पैसे से होती है।
टाटा ग्रुप का विस्तार
टाटा ग्रुप एक बहुत बड़ा व्यापारिक समूह है। इसमें कई तरह के कारोबार शामिल हैं। जैसे कि कारें बनाना, स्टील बनाना, सॉफ्टवेयर सेवाएं देना, चाय बेचना और होटल चलाना। टाटा ग्रुप की कंपनियां भारत के साथ-साथ दूसरे देशों में भी काम करती हैं।
टाटा ट्रस्ट की महत्वपूर्ण भूमिका
टाटा ट्रस्ट एक ऐसी संस्था है जो समाज की भलाई के लिए काम करती है। इसके अंतर्गत 14 अलग-अलग ट्रस्ट आते हैं। ये ट्रस्ट कला, संस्कृति, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसे क्षेत्रों में काम करते हैं। टाटा ट्रस्ट की टाटा संस में 66 फीसदी हिस्सेदारी है। इसका मतलब है कि टाटा ट्रस्ट, टाटा संस पर नियंत्रण रखता है। टाटा ट्रस्ट में दो मुख्य ट्रस्ट हैं – सर रतन टाटा ट्रस्ट और सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट। इन दोनों की मिलाकर टाटा संस में 52 फीसदी हिस्सेदारी है। बाकी के ट्रस्ट मिलकर 14 फीसदी हिस्सेदारी रखते हैं। इस तरह कुल मिलाकर टाटा ट्रस्ट की हिस्सेदारी 66 फीसदी हो जाती है।
नोएल टाटा खुद टाटा संस के 66 फीसदी शेयरों के नहीं हैं मालिक
टाटा समूह में नया नेतृत्व (New leadership in Tata Group) अब नोएल टाटा के हाथों में है। टाटा ट्रस्ट के चेयरमैन के रूप में, वे टाटा संस पर बहुत ज्यादा नियंत्रण रखेंगे। हालांकि, यह याद रखना जरूरी है कि नोएल टाटा खुद टाटा संस के 66 फीसदी शेयरों के मालिक नहीं हैं। ये शेयर ट्रस्ट के नाम पर हैं। नोएल टाटा की अपनी निजी हिस्सेदारी अलग से है।
निदेशकों को नियुक्त करने या हटाने का भी रखते हैं अधिकार
टाटा समूह के नियमों के मुताबिक, दो मुख्य ट्रस्ट टाटा संस के बोर्ड में एक तिहाई निदेशकों को नियुक्त कर सकते हैं। इसके अलावा, वे सभी निदेशकों को नियुक्त करने या हटाने का अधिकार भी रखते हैं। यह नियंत्रण 2012 में तब दिया गया था जब रतन टाटा ने अध्यक्ष पद से रिटायर होते समय नियमों में बदलाव किए थे। नोएल टाटा के नेतृत्व में टाटा समूह का भविष्य कैसा होगा, यह देखना दिलचस्प होगा। उनके पास एक विशाल व्यापारिक साम्राज्य की कमान है। इस साम्राज्य का असर न सिर्फ भारत, बल्कि पूरी दुनिया पर पड़ता है। नोएल टाटा के फैसले भारतीय अर्थव्यवस्था और लाखों लोगों की जिंदगी पर असर डालेंगे।
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