मेडिकल कॉलेजों में MBBS कोर्स में प्रवेश लेने के लिए NRI (गैर-निवासी भारतीय) छात्रों के लिए आरक्षित कोटे में हाल ही में महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं। इन बदलावों से मेडिकल शिक्षा के इच्छुक छात्रों को जानना जरूरी है। आइए जानें कि क्या हुआ है और क्यों ये बदलाव किए गए हैं।
NRI कोटे में क्या बदलाव आया है?
पहले, यदि NRI कोटे की कोई सीट खाली रहती थी, तो उसे सरकारी कॉलेजों में जनरल कैटेगरी की सीट और निजी कॉलेजों में मैनेजमेंट कैटेगरी की सीट में बदल दिया जाता था। लेकिन अब, नए मानदंडों के बाद, बहुत कम NRI कोटे की सीटें खाली रह जाएंगी।
राज्य के 10 मेडिकल कॉलेजों में कुल 1,550 MBBS सीटों में से 183 सीटें NRI उम्मीदवारों के लिए आरक्षित हैं। पिछले वर्षों में बड़ी संख्या में NRI कोटे की सीटें खाली रह जाती थीं, जो अब जनरल कैटेगरी के छात्रों के लिए उपलब्ध नहीं होंगी।
नई योग्यता मानदंड क्या हैं?
मेडिकल एजुकेशन एवं रिसर्च डिपार्टमेंट (DMER) ने नए मानदंड जारी किए हैं
- पहली वरीयता: पंजाब से संबंधित NRI या NRI के बच्चे
- अगर सीटें खाली रहीं: भारत के किसी भी हिस्से से संबंधित NRI या NRI के बच्चे
- नया: NRI के अन्य नजदीकी रिश्तेदार (चाचा-चाची, दादा-दादी, मामा-मामी) द्वारा वार्ड बनाए जाने पर भी छात्र पात्र हैं
इन बदलावों का क्या उद्देश्य है?
DMER के सचिव प्रियंक भारती ने बताया कि ये बदलाव राज्य के मेडिकल संस्थानों में अधिक से अधिक NRI छात्रों को आकर्षित करने के लिए किए गए हैं। मेडिकल कॉलेजों, खासकर निजी संस्थानों, ने राज्य सरकार पर दबाव बनाया था ताकि इस कैटेगरी में अधिक सीटें उपलब्ध हों। क्योंकि NRI कोटे की सीट के लिए कोर्स शुल्क काफी अधिक है (लगभग 93 लाख रुपये), जबकि जनरल कैटेगरी में यह बहुत कम है (9.50 लाख – 58.02 लाख रुपये)।
इन बदलावों का मुख्य उद्देश्य अधिक से अधिक NRI छात्रों को आकर्षित करना और मेडिकल कॉलेजों को वित्तीय स्थिरता प्रदान करना है। यह एक महत्वपूर्ण कदम है जो मेडिकल शिक्षा के क्षेत्र में छात्रों और संस्थानों दोनों के लिए लाभकारी साबित हो सकता है।
अगर आप NEET परीक्षा पास करके मेडिकल कॉलेज में एडमिशन लेना चाहते हैं, तो इन नए मानदंडों को ध्यान में रखकर अपनी तैयारी करें।
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