युवाओं पर स्वामी विवेकानंद जी का प्रभाव

स्वामी विवेकानंद जी, जिन्हें युवाओं का प्रेरणा स्त्रोत माना जाता है, ने 19वीं और 20वीं शताब्दी के युवाओं पर गहरा प्रभाव डाला। उनके विचार और दर्शन आज भी युवाओं को प्रेरित करते हैं और उन्हें सशक्त बनाते हैं। उनके प्रभाव के कुछ प्रमुख पहलू इस प्रकार हैं: 1. आत्म-विश्वास और आत्म-सम्मान: स्वामी विवेकानंद जी ने युवाओं को सिखाया कि वे अद्भुत क्षमताओं के धनी हैं। उन्होंने उनमें आत्म-विश्वास जगाया और उन्हें प्रेरित किया कि वे अपने सपनों को पूरा कर सकते हैं। उन्होंने कहा, “उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक तुम्हें अपना लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।” 2. सेवा और त्याग: स्वामी विवेकानंद जी ने युवाओं को दूसरों की सेवा करने और जरूरतमंदों की मदद करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा, “सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है।” उन्होंने युवाओं को त्याग और बलिदान की भावना सिखाई। 3. राष्ट्रभक्ति: स्वामी विवेकानंद जी एक महान देशभक्त थे। उन्होंने युवाओं को अपने देश से प्रेम करने और उसके विकास में योगदान करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा, “एक बार जब भारत जाग उठेगा, तो वह पूरे विश्व को जगा देगा।” 4. शिक्षा और ज्ञान: स्वामी विवेकानंद जी शिक्षा और ज्ञान के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने युवाओं को शिक्षा प्राप्त करने और ज्ञान अर्जित करने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने कहा, “शिक्षा ही वह माध्यम है जिसके द्वारा हम मानव जीवन को पूर्ण बना सकते हैं।” 5. आध्यात्मिकता: स्वामी विवेकानंद जी ने युवाओं को आध्यात्मिकता के महत्व को समझाया। उन्होंने कहा, “आध्यात्मिकता ही जीवन का सच्चा लक्ष्य है।” उन्होंने युवाओं को ध्यान, योग और वेदांत दर्शन का अभ्यास करने के लिए प्रोत्साहित किया। निष्कर्ष: स्वामी विवेकानंद जी ने युवाओं को प्रेरित करने और उन्हें सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके विचार और दर्शन आज भी प्रासंगिक हैं और युवाओं को जीवन में सफलता प्राप्त करने और एक बेहतर समाज बनाने में मदद करते हैं। यह भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि स्वामी विवेकानंद जी के विचारों की व्याख्या अक्सर गलत तरीके से की जाती है। कुछ लोग उन्हें केवल एक हिंदू राष्ट्रवादी या कट्टरपंथी के रूप में चित्रित करते हैं, जबकि अन्य उनके सामाजिक सुधारों और आधुनिकतावादी विचारों को अनदेखा करते हैं। स्वामी विवेकानंद जी को सही मायने में समझने के लिए, उनके विचारों का व्यापक और संतुलित दृष्टिकोण से अध्ययन करना महत्वपूर्ण है।

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जब जब पौराणिक हिन्दू ग्रंथ रामायण, या फिर राम मंदिर की बात सामने आई है, तब तब, liberal and intellectual ने उसकी आलोचना की है। इनकी “peaceful वोट बैंक” को खुश करने के चक्कर मैं कई बार वामपंथियों ने रामायण ग्रंथ के ऊपर अस्तित्व पर प्रश्न उठाए है। 

पर क्या ये जानते है की रामायण सिर्फ भारत मैं ही प्रचलित नहीं है।  वामपंथी राम मंदिर पर सवाल उठाने से अच्छा, अगर थोड़ा पढ़ लेते तो ये जान पते, की दुनिया भर मैं 300 से आधीक अलग अलग रामकथाएं प्रचलित है।  भारत के अलावा 9 और देश हैं जहां किसी ना किसी रुप में रामकथा सुनी और गाई जाती है। थाईलैंड में रामायण को रामकियन कहा जाता है जो थाईलैंड की राष्ट्रीय पुस्तक भी है। इसके अलावा Myanmar में रामायण को ‘यमयान’ कहा जाता है जो अनौपचारिक रूप से बर्मा का राष्ट्रीय महाकाव्य है।  दुनिया का सबसे बड़ा इस्लामिक देश पर यहाँ भी लोग प्रबु राम से अछूते नहीं है। यह पर चार प्रकार की रामायण प्रचलित है- Kakawin Ramayana, Yogesvara Ramayana,Ramakavaca, Ramayana Swarnadwipa. Cambodia मे उसे रामकर, और फिलीपींस में रामायण को Maharadia Lawana कहा जाता है। फिलीपींस का Singkil का प्रसिद्ध नृत्य वहाँ के रामायण से प्रेरित है। जापान में रामायण के दो नाम हे, एक को ‘Hobutsushu’ कहा जाता है, और दूसरे को ‘Sambo-Ekotoba’ कहा जाता है।  यही नहीं, इटली के nationalist जो इंडिया मे आकार इधर के traditions पर ऊँगालिया उठा रहे है, उन्हे भी शायद ये पता न हो की उनके शहर में पुरातात्विक खुदाई में प्राचीन इटालियन घरों की दीवारों पर विभिन्न चित्रों की खोज की गई, जो रामायण के दृश्यों पर आधारित हैं। अंत मैं ये जानना जरूरी है की , दुनिया भर मैं लिखी गई सभी रामायण, महा ऋषि वाल्मीकि रचीत रामायण से ही प्रेरित हे। क्युकी सभी रामायण मैं न राम बदले, ना स्थान, और नाही कोई उदेश मैं परिवर्तन आया।

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राम मंदिर: आस्था, संघर्ष और विजय का गाथा (1000-2023)

अयोध्या के चमचमाते संगमरमर से लेकर त्रेता युग के धुंधलके में खोए किस्सों तक, राम मंदिर की कहानी सदियों को पार करती एक मार्मिक संगीत है। ये इतिहास, विश्वास और अटूट धैर्य के धागों से बुनी एक कलाकृति है जो पीढ़ियों से गुंजार करती है। ये कहानी ईंट-गिट्टी से भी बड़ी है, ये एक राष्ट्र की पहचान, न्याय और अंततः सद्भाव की तलाश का मार्मिक प्रतीक है।1000-1528: त्रेता युग के सपने और मुगल परछाईसदियों पुराने किस्से अयोध्या में एक भव्य राम मंदिर की बात करते हैं, जिसके प्रांगण में राम, सीता और लक्ष्मण के पगचिह्न अंकित थे। परन्तु, 1428 में, इतिहास ने एक करवट ली। मुगल बादशाह बाबर ने अयोध्या पर कब्जा कर लिया और मंदिर के ध्वंस के साथ ही विवादित जमीन पर बाबरी मस्जिद का निर्माण हुआ। अयोध्यावासियों के लिए ये सदियों का दर्द बन गया। मुगल शासन के दौरान तनाव धीरे-धीरे सुलगता रहा, हालाँकि सीधी टकराव कम ही होती थी।1528-1857: गुप्त आग और हिंदू संघर्ष के बीजमुगल साम्राज्य के कमजोर होते ही जमीनी स्तर पर धार्मिक असंतोष बढ़ने लगा। अयोध्या में मंदिर के स्थान पर बनी मस्जिद एक प्रमुख मुद्दा बन गया। 1853 में हुए सेपोय विद्रोह में भी अयोध्या का विवाद एक कारण था। विद्रोह का दमन होने के बाद अंग्रेज सरकार ने विवाद को टालने की रणनीति अपनाई, जिससे असंतोष तो कम नहीं हुआ लेकिन खुले टकराव से बचा जा सका।1857-1947: स्वतंत्रता, परन्तु विवाद खामोश नहीं1947 में भारत के स्वतंत्र होने के बाद भी अयोध्या का विवाद सुलझ नहीं सका। 1885 में पहला मुकदमा दायर किया गया, जिसके बाद सालों तक कानूनी लड़ाई चली। अयोध्या तीर्थ स्थान ट्रस्ट ने मंदिर निर्माण की इजाजत मांगी, वहीं मुस्लिम पक्ष ने मस्जिद के अधिकारों का दावा किया। इस दौरान सरकार ने विवाद में हस्तक्षेप न करने का रास्ता अपनाया, जिससे तनाव बढ़ता ही गया।1947-1962: धीमी आंच पर सुलगता तनावस्वतंत्रता के बाद के शुरुआती सालों में धार्मिक सद्भाव बनाए रखने पर जोर दिया गया। हालांकि, अयोध्या का मुद्दा समय-समय पर सुर्खियों में आता रहा। 1962 में अयोध्या में पूजा करने के हिंदू अधिकार को लेकर विवाद हुआ, जिसने तनावों का स्तर बढ़ा दिया। इस समय भारतीय जनसंघ जैसे हिंदू राष्ट्रवादी संगठनों का प्रभाव भी धीरे-धीरे बढ़ने लगा।1962-1984: आग भड़कने की तैयारी1970 के दशक में राजनीतिक उथल-पुथल के बीच अयोध्या का विवाद और संवेदनशील हो गया। हिंदू राष्ट्रवादी संगठनों ने इस मुद्दे का इस्तेमाल हिंदू समाज को लामबंद करने के लिए करना शुरू किया। 1980 के दशक में राम जन्मभूमि आंदोलन ने तेजी पकड़ी, जिसके नेतृत्व में विश्व हिंदू परिषद और भारतीय जनता पार्टी थी। अयोध्या में जमीन पर दावा जताने के लिए शाही सभा ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।1984-1992: आग की ज्वाला1984 में राम जन्मभूमि आंदोलन को और अधिक बल मिला जब विश्व हिंदू परिषद ने राम जन्मभूमि रथ यात्रा निकाली। इस यात्रा ने पूरे देश में हिंदू समर्थन को जगाने में मदद की। 1986 में, अयोध्या के जिला न्यायाधीश ने हिंदुओं को बाबरी मस्जिद परिसर में पूजा करने की अनुमति दे दी। इस फैसले ने तनाव को और बढ़ा राम मंदिर: आस्था, संघर्ष और विजय का गाथा (1992-2023)1992: एक दिन जिसने भारत को हिला दिया6 दिसंबर, 1992 एक ऐसा दिन है जिसे इतिहास कभी भुला नहीं सकता। विहिप और बजरंग दल के हजारों स्वयंसेवकों की भीड़ ने बाबरी मस्जिद पर धावा बोला और उसे ध्वस्त कर दिया। इस घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया और सांप्रदायिक दंगों की आग भड़का दी। दंगों ने हिंसा और विभाजन का तांडव मचाया, जिसने सैकड़ों की जानें लीं और हजारों लोगों को बेघर किया। राम मंदिर का मुद्दा अब सिर्फ एक विवाद नहीं था, बल्कि राष्ट्रीय शर्म और चिंता का विषय बन गया था।1992-2019: कानूनी दलदल और खोज का प्रकाशबाबरी मस्जिद का विध्वंस एक लंबा कानूनी घमासान लेकर आया। लिबरहान आयोग ने दंगों की जांच के लिए गठन किया गया, जबकि विवादित जमीन के स्वामित्व को लेकर कोर्ट में सुनावाई चलती रही। 1996 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक विभाजित फैसले में जमीन को तीन हिस्सों में बांटने का आदेश दिया, जिसमें से दो-तिहाई हिस्सा हिंदुओं को और एक-तिहाई मुसलमानों को दिया गया। हालांकि, दोनों पक्षों ने इस फैसले को अपीलित किया।2010 में एक महत्वपूर्ण मोड़ आया। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने बाबरी मस्जिद के नीचे मंदिर के अवशेषों का पता लगाया। इस खोज ने हिंदू पक्ष को मजबूत किया और 2019 में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले का मार्ग प्रशस्त किया। न्यायालय ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा और दो-तिहाई जमीन पर राम मंदिर के निर्माण का आदेश दिया, जबकि मुसलमानों को मस्जिद के निर्माण के लिए एक वैकल्पिक स्थान दिए जाने का वादा किया।2020-2023: भव्य स्वप्न का साकार होनासुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद पूरे देश में उमंग की लहर दौड़ गई। 5 अगस्त, 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राम मंदिर निर्माण का शिलान्यास किया। तब से मंदिर के निर्माण का काम तेजी से चल रहा है। पहला चरण पूरा हो चुका है और मंदिर का गर्भगृह 2024 में श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया जाएगा।राम मंदिर: न्याय, विश्वास और भविष्य की उम्मीदराम मंदिर का निर्माण सिर्फ ईंट-गिट्टी का बनने वाला कोई साधारण मंदिर नहीं है। यह सदियों पुराने विश्वास, संघर्ष और धैर्य की विजय का प्रतीक है। धार्मिक सहिष्णुता और सांप्रदायिक सद्भाव के मार्ग में आने वाली अड़चनों को हटाकर इतिहास का एक अध्याय बंद हुआ है।हालांकि, राम मंदिर का निर्माण अतीत के भूतों को पूरी तरह से मिटा नहीं सकता। यह राष्ट्र को उन जख्मों को भरने और आपसी समझ के साथ भविष्य की ओर बढ़ने का नया अवसर प्रदान करता है। राम मंदिर सिर्फ एक मंदिर नहीं, बल्कि एकता, न्याय और सद्भाव की प्रतीक है, जो एक ऐसे भारत का मार्ग प्रशस्त करती है जहां हर धर्म का सम्मान किया जाता है और हर समुदाय शांति से सहअस्तित्व में रहता है।

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 भारत की परिवर्तन यात्रा: स्वतंत्रता से उभरती शक्ति तक

भारत की कहानी पिछले कुछ दशकों में उल्लेखनीय परिवर्तन की कहानी है। 1947 में ब्रिटिश उपनिवेशवाद के चंगुल से निकलकर, राष्ट्र को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा – गरीबी, अशिक्षा और एक टूटा हुआ सामाजिक ताना-बाना। फिर भी, लचीलेपन की भावना और एक मजबूत, स्वतंत्र भारत के दृष्टिकोण से प्रेरित होकर, देश ने एक ऐसी यात्रा शुरू की जिसने इसे वैश्विक मंच के अग्रभाग में ला खड़ा किया है। नींव का निर्माण (1947-1991) स्वतंत्रता के बाद के पहले कुछ दशक राष्ट्र निर्माण पर ध्यान देने वाले थे। प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में, भारत ने राज्य-नियंत्रित उद्योगों और सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों पर जोर देने के साथ एक समाजवादी आर्थिक मॉडल अपनाया। हालांकि इस दृष्टिकोण ने आवश्यक बुनियादी ढांचा और भारी उद्योगों की स्थापना में कुछ सफलता हासिल की, लेकिन इससे नौकरशाही अक्षमता और धीमी आर्थिक वृद्धि भी हुई। हरित क्रांति और श्वेत क्रांति (1960 – 1980 ) 1960 के दशक में हरित क्रांति के साथ एक महत्वपूर्ण मोड़ आया – कृषि सुधारों की एक श्रृंखला जिसने खाद्य उत्पादन में क्रांति ला दी। नई उच्च उपज देने वाली फसल किस्मों, सिंचाई परियोजनाओं और उर्वरकों के साथ, कृषि उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई और भारत को खाद्यान्न में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने में मदद मिली। इसी तरह, 1970 के दशक में श्वेत क्रांति ने डेयरी विकास पर ध्यान केंद्रित किया, जिससे दूध उत्पादन में वृद्धि हुई और समग्र पोषण में सुधार हुआ।  उदारीकरण और वैश्वीकरण(1991) 1990 के दशक में अधिक उदारीकृत अर्थव्यवस्था की ओर एक आदर्श बदलाव देखा गया। एक गंभीर आर्थिक संकट के बाद, प्रधान मंत्री पी.वी. नरसिंह राव ने सरकारी नियंत्रण कम करने, विदेशी निवेश को बढ़ावा देने और व्यापार खोलने के उद्देश्य से कई सुधारों की शुरुआत की। इस अवधि में सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) क्षेत्र के उदय और एक जीवंत सेवा उद्योग के उदय से प्रेरित आर्थिक विकास में तेजी आई। आईटी क्षेत्र और ज्ञान अर्थव्यवस्था का उदय भारत का आईटी क्षेत्र एक वैश्विक ताकत के रूप में उभरा। कुशल जनशक्ति, मजबूत कार्य नीति और अंग्रेजी में दक्षता के साथ, भारत आउटसोर्सिंग के लिए एक पसंदीदा गंतव्य बन गया। इंफोसिस और विप्रो जैसी कंपनियां अग्रणी बन गईं, निवेश आकर्षित किया और ज्ञान अर्थव्यवस्था में भारत की क्षमता का प्रदर्शन किया। सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य: प्रगति और चुनौतियां जबकि भारत का आर्थिक परिवर्तन प्रभावशाली रहा है, यह यात्रा अपनी चुनौतियों के बिना नहीं रही है। गरीबी, खासकर ग्रामीण इलाकों में, एक चिंता का विषय बनी हुई है। सामाजिक असमानता, लैंगिक असमानता और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच जैसे मुद्दे बने हुए हैं। हालांकि, सरकार ने इन क्षेत्रों को लक्षित करने वाली विभिन्न सामाजिक कल्याण योजनाओं और शैक्षिक पहलों को लागू किया है। विश्व मंच पर भारत: अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के उदय किसी का ध्यान नहीं गया। देश जी20 और ब्रिक्स जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों में एक प्रमुख खिलाड़ी है। भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम ने महत्वपूर्ण सफलताएँ हासिल की हैं, जिसमें 2014 में मंगलयान मिशन भी शामिल है। देश अपनी सैन्य क्षमताओं और विदेश नीति के पदचिह्न को भी विकसित कर रहा है, रणनीतिक साझेदारी बना रहा है और एक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की वकालत कर रहा है।  विकास और समावेश को संतुलित करना जैसे ही भारत अपनी परिवर्तन यात्रा जारी रखता है, उसे महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। बढ़ती आबादी के लिए पर्याप्त रोजगार पैदा करना, ग्रामीण-शहरी विभाजन को पाटना और सतत विकास सुनिश्चित करना सर्वोपरि है। सरकार को इन मुद्दों का समाधान करते हुए आर्थिक विकास और तकनीकी प्रगति को और बढ़ावा देने की जरूरत है। निष्कर्ष: भारत की कहानी आशा और लचीलेपन की कहानी है। उपनिवेशवाद के बाद की चुनौतियों से जूझते हुए एक राष्ट्र से लेकर एक जीवंत लोकतंत्र और एक उभरती आर्थिक महाशक्ति तक, भारत की यात्रा उल्लेखनीय रही है। आगे का रास्ता अवसरों और चुनौतियों दोनों को प्रस्तुत करता है। हालाँकि, अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, प्रतिभाशाली कार्यबल और लोकतांत्रिक आदर्शों के प्रति प्रतिबद्धता के साथ, भारत 21वीं सदी में अपना परिवर्तन जारी रखने और एक प्रमुख भूमिका निभाने के लिए अच्छी तरह से तैनात है।

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