हर साल जन्माष्टमी के अवसर पर देश के विभिन्न हिस्सों में दही हांडी (Dahi Handi) की धूम मचती है। इस पारंपरिक खेल में युवा मटकी तोड़ने के लिए मानव पिरामिड बनाते हैं। खासकर महाराष्ट्र में यह उत्सव बहुत लोकप्रिय है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि दही हांडी की यह परंपरा कब और कैसे शुरू हुई? आइए जानते हैं इस खेल की उत्पत्ति, उससे जुड़ी मान्यताओं और जन्माष्टमी के मौके पर इसके महत्व के बारे में।
कब है दही हांडी (Dahi Handi) का पर्व?
दही हांडी (Dahi Handi) का उत्सव भगवान कृष्ण की लीलाओं का प्रतीक मानकर बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। पहले यह पर्व मुख्य रूप से महाराष्ट्र और गुजरात में मनाया जाता था, लेकिन अब इसे कई अन्य स्थानों पर भी धूमधाम से मनाया जाने लगा है। इस वर्ष कृष्ण जन्माष्टमी 6 सितंबर को मनाई जाएगी, और दही हांडी का पर्व जन्माष्टमी के अगले दिन, 7 सितंबर को मनाया जाएगा।
इस तरह हुई दही हांडी की परंपरा की शुरुआत
दही हांडी (Dahi Handi) का खेल भगवान श्रीकृष्ण के जीवन से जुड़ा हुआ है। इस परंपरा का संबंध उनके बाल रूप ‘माखनचोर’ से है। मान्यता है कि नंदगांव और वृंदावन में श्रीकृष्ण अपने दोस्तों के साथ घर-घर जाकर मटकी में रखा माखन और दही चुराते थे। इस खेल का मूल उत्सव वृंदावन और गोकुल से शुरू हुआ, जहाँ भगवान कृष्ण का बाल्यकाल बीता था। बाद में यह परंपरा महाराष्ट्र और अन्य राज्यों में भी प्रचलित हुई।
कहा जाता है कि कृष्ण और उनके सखा ऊंचाई पर लटकी मटकी से माखन चुराने के लिए एक-दूसरे के कंधों पर चढ़ते थे। इसी घटना को स्मरण करते हुए दही हांडी की परंपरा शुरू हुई, जहाँ ऊंची जगह पर मटकी को बांधा जाता है और युवा मानव पिरामिड बनाकर उसे तोड़ने की कोशिश करते हैं। दरअसल, दही हांडी का त्योहार भगवान श्रीकृष्ण के बाल्यकाल की माखनचोरी की घटनाओं से प्रेरित है। इस पारंपरिक खेल में जीवन की चुनौतियों का सामना करने और एकता का संदेश निहित है, जिसे जन्माष्टमी के अगले दिन धूमधाम से मनाया जाता है।
दही हांडी (Dahi Handi) से जुड़ी मान्यता
दही हांडी (Dahi Handi) की परंपरा के पीछे कई धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताएँ जुड़ी हुई हैं। मुख्य रूप से यह माना जाता है कि दही और माखन से भरी मटकी को तोड़ना जीवन की चुनौतियों का सामना करने का प्रतीक है। जैसे श्रीकृष्ण ने विभिन्न मुश्किलों का सामना कर मटकी को तोड़ा, वैसे ही यह खेल हमें जीवन की कठिनाइयों का सामना करते हुए अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने की प्रेरणा देता है। साथ ही, मटकी तोड़ने की परंपरा भगवान कृष्ण के साहस, बुद्धिमानी और संकल्प की प्रतीक मानी जाती है। इस खेल में भाग लेने वाले युवा श्रीकृष्ण के बाल रूप की तरह निडर होकर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते हैं।
जन्माष्टमी पर दही हांडी का महत्व
जन्माष्टमी, भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाई जाती है। इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य भगवान कृष्ण की लीलाओं को स्मरण करना है। जन्माष्टमी के अवसर पर दही हांडी का आयोजन एक महत्वपूर्ण परंपरा है। यह खेल श्रीकृष्ण के बाल्यकाल की उस कथा का प्रतीक है जिसमें उन्होंने माखनचोरी की थी।
महाराष्ट्र में है इस उत्सव का विशेष महत्व
महाराष्ट्र में इस उत्सव का विशेष महत्व है। यहां पर दही हांडी के बड़े-बड़े आयोजन होते हैं। इसमें गोविंदाओं की टोलियां मटकी को तोड़ने के लिए एकत्रित होती हैं। ये आयोजन बेहद रोमांचक होते हैं, जिसमें हजारों लोग शामिल होते हैं। इसके साथ ही, इसमें धार्मिक आस्था और श्रद्धा का भाव भी जुड़ा होता है।
दही हांडी के दौरान युवा गोविंदाओं द्वारा किया जाने वाला साहस, न केवल उनके शारीरिक कौशल को दर्शाता है, बल्कि यह एकजुटता और टीम वर्क की भावना का भी प्रतीक है।
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