भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को कजरी तीज का व्रत किया जाता है, जिसमें महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं। इस व्रत के दौरान अन्न और जल का सेवन नहीं करने की मान्यता है। जो अच्छे वर की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। आइए, जानते हैं कजरी तीज की तिथि, शुभ मुहूर्त (Kajari Teej 2024, Puja Time) और पूजा विधि के बारे में।
कजरी तीज, जिसे कजली तीज के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय परंपराओं और संस्कृति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। यह उत्सव विशेष रूप से महिलाओं द्वारा बड़े धूमधाम से मनाया जाता है और उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में अत्यधिक लोकप्रिय है। कजरी तीज का आयोजन श्रावण मास की कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को होता है, और यह महिलाओं के लिए सौभाग्य, समृद्धि और सुख-शांति की कामना का पर्व है।
कजरी तीज पूजा तिथि
पंचांग के अनुसार 21 अगस्त को शाम 05 बजकर 06 मिनट पर भाद्रपद माह की कृष्ण तृतीया तिथि शुरू होगी। वहीं, तिथि 22 अगस्त को दोपहर 1 बजकर 46 मिनट पर समाप्त होगी। ऐसे में 22 अगस्त को कजरी तीज का व्रत रखा जाएगा।
कजरी तीज का महत्व
कजरी तीज का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व अत्यधिक है। इस दिन महिलाएं भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा करती हैं। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से विवाहित महिलाओं का वैवाहिक जीवन सुखमय और समृद्ध होता है। वहीं कुंवारी कन्याएं भी अच्छे वर की प्राप्ति के लिए इस व्रत को करती हैं।
पूजा विधि
कजरी तीज के दिन महिलाएं प्रातः स्नान करके नए वस्त्र धारण कर सोलह श्रृंगार करती हैं। पूजा स्थल को स्वच्छ करके वहाँ मिट्टी की वेदी बनाई जाती है। इस वेदी पर देवी पार्वती और भगवान शिव की मूर्ति या चित्र स्थापित किया जाता है। पूजन सामग्री में चावल, कुमकुम, हल्दी, फूल, और मिठाई का प्रयोग किया जाता है। महिलाएं भक्ति भाव से कथा सुनती हैं और अपने पति के दीर्घायु एवं सुखमय जीवन की कामना करती हैं।
व्रत और कथा
कजरी तीज का व्रत अत्यंत कठिन होता है। इस दिन महिलाएं निर्जल रहकर व्रत करती हैं और रात भर जागरण करती हैं। व्रत की कथा में देवी पार्वती की कठोर तपस्या और भगवान शिव द्वारा उन्हें वरदान देने की कथा का वाचन किया जाता है। यह कथा सुनने से महिलाओं को अदम्य साहस और धैर्य की प्रेरणा मिलती है।
सामाजिक और सांस्कृतिक पहलू
कजरी तीज का उत्सव सामाजिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह पर्व महिलाओं को एक साथ आने और मिलजुल कर उत्सव मनाने का अवसर प्रदान करता है। महिलाएं इस दिन झूला झूलती हैं, लोक गीत गाती हैं और नृत्य करती हैं। कजरी गीत इस पर्व का मुख्य आकर्षण होते हैं, जो पारंपरिक धुनों पर आधारित होते हैं और जिनमें कजरी की सुंदरता और महत्ता का वर्णन होता है।