Mahakumbh 2024 : क्या आप जानते हैं, महाकुंभ का संबंध समुद्र मंथन से भी है?

Mahakumbh 2024

महापर्व महाकुंभ (Mahakumbh 2024) के आयोजन की वजह से वैसे भी साल 2025 बेहद खास होने वाला है। हर 12 साल बाद आता है महाकुंभ आता है इसलिए भी इसका महत्व कई गुना बढ़ जाता है। बता दें कि प्रयागराज में होने वाले महाकुंभ के दौरान लोग न सिर्फ गंगा स्नान बल्कि कल्पवास और जप-तप भी करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इससे व्यक्ति के जन्मों-जन्मांतर के किये पाप धुल जाते हैं। कहा तो जाता है कि महाकुंभ में स्नान करने से पाप तो धुलते ही हैं साथ ही आगे का जीवन भी सुखमय हो जाता है। गौरतलब हो कि महाकुंभ मेला 13 जनवरी 2025 को शुरू होगा और इसकी समाप्ति महाशिवरात्रि पर 26 फरवरी 2025 को होगी। खैर, क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर महाकुंभ मनाने का तात्पर्य क्या है, ये क्यों और कब से मनाया जाता है? तो आज हम इन्हीं प्रश्नों का उत्तर जानेंगे। 

पवित्र नदियों में स्नान करने से मनुष्य के पापों का होता है नाश – Mahakumbh 2024

दरअसल, महाकुंभ का आयोजन एक प्राचीन परंपरा है। यह परंपरा वैदिक काल से चली आ रही है। बता दें कि इसके पीछे का मुख्य उद्देश्य पवित्र नदियों में स्नान करना है। मान्यता के अनुसार पवित्र नदियों में स्नान करने से मनुष्य के पापों का नाश होता है। यही यहां किया गया स्नान मोक्ष की प्राप्ति में भी सहायक होता है। बात करें कुंभ मेले की शुरुआत की कहानी की, तो इसकी कथा पौराणिक कथाओं में समुद्र मंथन की कथा से जुड़ी हुई है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु ने देव को समुद्र मंथन करने के लिए कहा था। जब देवताओं और असुरों ने अमृत प्राप्त करने हेतु समुद्र मंथन किया, तो उस मंथन से अमृत का एक कलश निकला। 

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 देवताओं और असुरों के बीच 12 दिनों तक हुआ था युद्ध 

बता दें कि कुंभ का अर्थ भी कलश ही होता है। अब अमृत को पाने हेतु देवताओं और असुरों में युद्ध छिड़ गया। जिसके चलते, भगवान विष्णु ने अपने वाहन गरुड़ को अमृत के कलश की सुरक्षा का काम सौंपा। भगवान विष्णु के आदेशानुसार गरुड़ जब अमृत को लेकर उड़ रहे थे, तभी अमृत की कुछ बूंदें चार स्थानों, मुख्यता हरिद्वार, उज्जैन, प्रयागराज, नासिक में गिर गईं। तभी से प्रत्येक 12 वर्षों बाद इन स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन होता है। इस दौरान गंगा में डूबकी लगाकर लोग अपने पापों का प्रायश्चित करते हैं। ऐसा माना जाता है कि देवताओं और असुरों के बीच 12 दिनों तक युद्ध हुआ था। जो मानव वर्षों में 12 वर्षों के बराबर माना गया है। इसलिए, प्रत्येक 12 वर्ष में कुंभ का आयोजन होता है। 

विशेष नोट:- इस लेख में हमारा मकसद अंधविश्वास को बढ़ावा देना नहीं है। यहां दी गई जानकारी मान्यताओं के आधार पर आधारित है। इसपर अमल करना न करना आपका अपना निजी मामला हो सकता है।

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