हर साल 9 अगस्त को भारत में विश्व मूल निवासी दिवस (Vishwa Mulnivasi Divas) मनाया जाता है। इस दिन देशभर के विभिन्न स्थानों पर छोटे-बड़े कार्यक्रम होते हैं, जिनमें आदिवासी समाज के लोग और अन्य लोग भी उत्साह के साथ हिस्सा लेते हैं, जिसे आर्टिकल के पार्ट में विस्तार से साझा किया गया है। अब आगे यह जानेंगे-
जनजातियों को भ्रमित करने का प्रयास
● अब यह प्रयास हो रहा है कि भारत की जनजातियों को मूल निवासी बताकर उनके साथ अन्य दलितों- अनुसूचित जातियों (Scheduled Castes) को भी जोड़ा जाए।
● भारत विश्व के मूल निवासियों और वंचितों के अधिकारों का समर्थन करता है परन्तु समर्थन की इस दौड़ में अन्धा होकर अपना विवेक नहीं खोना चाहिए।
● यह भी नहीं भूलना चाहिए कि जनजातियों को बरगलाने वाले ही आज हमारी धर्म-संस्कृति को, हमारी पहचान को नष्ट करने में भी सबसे आगे हैं। बहुरूपिए के वेश में, परदे के पीछे कौन क्या कर रहा है, इसे बात को गंभीरता से समझने और समझाने की आवश्यकता है।
● आज भारत के आदिवासी समूह सबकी देखा-देखी भेड़ चाल का हिस्सा बनकर 9 अगस्त को ‘विश्व मूलनिवासी दिवस’ (Vishwa Mulnivasi Divas) के रूप में मनाते हैं। जबकि अमेरिका में रहने वाले मूलनिवासी इस दिन को अमेरिकी नरसंहार का दिन मानते हैं। हर 9 अगस्त को कई हज़ार लोग संयुक्त राष्ट्र के बाहर इस दिन के खिलाफ़ विरोध प्रदर्शन करते हैं। पिछले कई सालों से 9 अगस्त को चर्च के नेतृत्व में ‘विश्व मूलनिवासी दिवस‘ (Vishwa Mulnivasi Divas) मनाया जाता रहा है। इसमें बड़ी संख्या में भारत विरोधी विचारों का प्रचार किया गया है। पत्थलगड़ी जैसी घटनाएं इन्हीं अलगाववादी वैश्विक मूलनिवासी षड्यंत्रों का नतीजा है।
● अंतरराष्ट्रीय ताकतें भारत से आदिवासी समाज को तोड़ने का काम कर रही हैं। इन ताकतों का उद्देश्य मूलनिवासी दिवस मनाने को बढ़ावा देना भी है। इस साजिश को समझना होगा कि हमारा इस दिन से कोई संबंध नहीं है। अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसे देशों में वहां के मूलनिवासियों के साथ जो हुआ, वैसी स्थिति भारत में कभी नहीं रही। दुर्भाग्य से कुछ विदेशी ताकतें आदिवासी समाज को गुमराह करने और उन्हें दूसरे समुदायों से लड़ाने का काम कर रही हैं। इसके लिए उन्होंने 9 अगस्त के दिन को हथियार के रूप में इस्तेमाल किया है।
● हाल के वर्षों में सूचना क्रांति और सोशल मीडिया ने इन भौगोलिक और भाषाई बाधाओं को लगभग समाप्त कर दिया है, इनके प्रयोग से विघटनकारी शक्तियां मजबूत हो रही हैं। इसके परिणाम भारत की अखंडता के लिए घातक हो सकते हैं। धर्म के नाम पर युद्ध और व्यापारिक समृद्धि 11वीं शताब्दी से एक दूसरे के पूरक रहे हैं। इसका आधार “न्यू क्रिश्चियन इकोनॉमिक थ्योरी” (New Christian Economic Theory) है, जो अश्वेत या गैर-यूरोपीय लोगों को ईसाई बनाने का प्रयास करती है। इसके लिए दुनिया की बड़ी यूरोपीय शक्तियां विकासशील देशों में काम कर रही हैं, जो बड़ी संख्या में मानवीय कार्यों के बहाने धर्मांतरण और फिर नए राष्ट्र के सिद्धांत पर काम करती हैं। संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूएनपीओ मानवाधिकार, पहचान से लेकर अलग देश की मांग करने वाले समूहों को सहायता प्रदान करती है। भारत से अलग देश की मांग करने वाला नागालैंड का संगठन (नागालिम) यूएनपीओ का सदस्य है। नॉर्वे और कई यूरोपीय देश जातीय और धार्मिक आधार पर नागाओं के लिए अलग देश की वकालत कर रहे हैं। पूर्वी तिमोर इसका प्रमुख उदाहरण है।
● 1947 में अंग्रेजों ने भारत को धार्मिक आधार पर दो भागों में विभाजित कर दिया था। क्या यही कारण है कि भारत के लगभग 705 आदिवासी समुदायों की एक बड़ी संख्या को हिंदू धर्म से अलग किया जा रहा है? आदिवासी समाज के लिए देश-विदेश में कई संगठन अलग धर्म कोड या 2021 की जनगणना में हिंदू धर्म से अलग धर्म की मांग के लिए संघर्ष कर रहे हैं, ताकि विश्व पटल पर हिंदुओं की संख्या कम हो सके।
● फिर ईसाईकरण मिशन संगठनों द्वारा इन नए धर्मों को ईसाई धर्म के साथ मिलाया जा सके, जिससे धार्मिक अलगाववाद को बढ़ावा मिल सके। हमारे देश की विभिन्न देश विरोधी ताकतें इस दिशा में काम करती नजर आ रही हैं। हमारे देश के विभिन्न राज्यों विशेषकर छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा और महाराष्ट्र में चल रहे विभिन्न आंदोलन और नक्सल आंदोलन इस अंतरराष्ट्रीय साजिश का हिस्सा बन रहे हैं।
● अभी हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रामजन्मभूमि मंदिर भूमिपूजन कार्यक्रम में जिस सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के पुनरुत्थान की बात की थी, वह इन सभी साजिशों का जवाब है।
● आदिवासी समाज का राम और रामायण से संबंध किसी से छिपा नहीं है। भगवान राम की माता कौशल्या “कश्यप” गोत्र की थीं, जो कंवर जनजाति का गोत्र है और आज भी “कंवर” समुदाय के लोग “कौशल्या” को बेटी के रूप में पूजते हैं। भगवान राम को आदिवासी समाज का “भाणेज” (भतीजा) माना जाता है। कौशल को तब छत्तीसगढ़ कहा जाता था और माता कौशल्या कौशल प्रांत के राजा की पुत्री थीं। राम का रंग सांवला था जबकि उनके पिता राजा दशरथ गोरे थे, ऐसा इसलिए था क्योंकि राम की मां भी सांवली थीं। इसी तरह असम के तेजपुर के आदिवासी राजा बाण की पुत्री उषा और श्रीकृष्ण के पोते अनिरुद्ध का विवाह एक-दूसरे से हुआ था। राम और कृष्ण का आदिवासी समाज से न केवल सामाजिक बल्कि रक्त संबंध भी गहरा है, जिसे वैश्विक साजिश के तहत खत्म करने की पुरजोर कोशिश की जा रही है।
सुझाव एवं समाधान
● केन्द्र एवं राज्य सरकारों को चाहिए कि वे जनजातिओं के लिए बने संरक्षण एवं विकास कानूनों और योजनाओं को दृढ इच्छाशक्ति से क्रियान्वित करें।
● शासन में बैठे वरिष्ठ-जिम्मेदार लोगों को भी तात्कालिक राजनीतिक-आर्थिक लाभों के लोभ से बचते हुए शासन-सरकार की नीतियों-कार्यक्रमों को निष्ठापूर्वक लागू करना चाहिए तभी संवेदनशील जनजाति क्षेत्रों में शान्ति एवं खुशहाली आ सकती हैं।
● इसके साथ ही परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण और पुनर्वास का कार्य अधिक संवेदनशील होकर-जिम्मेदारी से करने की आवश्यकता है।
● भूमि अधिग्रहण कानून 2013 और खान एवं खनिज (संशोधन) अधिनियम 2015 भी इसी दिशा में उठाया गया एक सराहनीय कदम है जिसके अन्तर्गत विस्थापित एवं प्रभावित लोगों की लाभों में हिस्सेदारी सुनिश्चित की गई है।
● जनजातियों को भी अपने अधिकारों की लड़ाई मुखर एवं संगठित होकर इसी देश के अंगभूत सजग नागरिक होकर लड़ना पड़ेगा, बाहरी शक्तियों की साजिश-षडयंत्रों से बचते हुए, इन बातों पर विचार करके ही हम अपना, अपने समाज का और देश का विकास कर सकते हैं।
विश्व मूल निवासी दिवस (Vishwa Mulnivasi Divas) से जुड़ी ये जानकारी आपको कैसी लगी और विश्व मूल निवासी दिवस पर आपकी क्या राय है ये ज़रूर बताएं।
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