मीराबाई जी की जयंती (Sant Mirabai Ji Jayanti) का आयोजन मीरा बाई के जन्मदिन के अवसर पर किया जाता है। यह दिन विशेष रूप से शुभ माना जाता है, क्योंकि मीराबाई जी भगवान श्री कृष्ण (Shri Krishna) की भक्त थीं। इस दिन को पूर्णिमा तिथि पर मनाया जाता है। इस साल मीराबाई जी की जयंती (Sant Mirabai Ji Jayanti) 17 अक्टूबर, 2024 को है।
मीराबाई जी की जयंती 2024: क्या है इस दिन का महत्व
मीराबाई जी भगवान श्री कृष्ण की भक्त थीं और 16वीं सदी की कवियित्री भी। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार उनका जन्म 1498 में राजस्थान के जोधपुर में राजा रतन सिंह के घर हुआ था। मीरा अपने माता-पिता की इकलौती संतान थीं, लेकिन जब उनकी उम्र केवल दो वर्ष थी, उनकी मां का निधन हो गया। मीरा का पालन-पोषण उनके दादाजी ने किया, जो भगवान श्रीहरि विष्णु (ShriHari Vishnu) के भक्त थें। उनके दादा के कारण ही मीराजी को प्रमुख संतों और ऋषियों से मिलने का अवसर मिलता रहा, जिससे उनकी भक्ति और ज्ञान में वृद्धि हुई।
मीराबाई जी की जयंती 2024: क्या है पौराणिक कहानी
वर्ष 1516 में मीराबाई का विवाह मेवाड़ के राणा सांगा के पुत्र राजकुमार भोज राज से हुआ। 1518 में दिल्ली सल्तनत से युद्ध के दौरान उनके पति घायल हो गए और उनकी लंबी बीमारी के कारण 1521 की शुरुआत में उनका निधन हो गया। पति की मृत्यु के बाद मीराबाई की भगवान श्री कृष्ण के प्रति भक्ति और गहरी हो गई। वह नियमित रूप से मंदिर जाने लगीं और अध्यात्म की ओर बढ़ती गईं। वे भजन और कीर्तन में लीन होने लगीं, जहां वह कृष्ण भक्तों के साथ गायन के साथ-साथ नृत्य भी करती थीं।
हालांकि, उनके ससुराल वालों को उनका जीवन जीने का तरीका पसंद नहीं आया, जिससे उन्होंने कई बार उन्हें नुकसान पहुंचाने की कोशिश की। लेकिन हर बार भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें बचाया। मीराबाई जी समाज में विद्रोही थीं, क्योंकि उनकी धार्मिक गतिविधियां, विधवा होने के कारण स्वीकार नहीं थीं। समाज चाहता था कि वह पारंपरिक नियमों का पालन करें, लेकिन उन्होंने मंदिरों में अधिक समय बिताना और ऋषियों एवं संतों से मिलना शुरू कर दिया ताकि श्री कृष्ण की कहानियां सुन सकें।
इस दौरान, उन्होंने भगवान श्री कृष्ण को समर्पित कई भक्ति गीतों की रचना की। मीराबाई जी बचपन से ही कृष्ण की पूजा करती थीं और उनकी मूर्तियों से बात करती थीं। कहा जाता है कि वह भगवान श्री कृष्ण की उपस्थिति को अनुभव कर सकती थीं और उनमें पूर्ण विश्वास रखती थीं। उनकी भक्ति ने उन्हें एक विद्रोही बना दिया, जो हर बंधन को तोड़कर अपने आराध्य की पूजा करती रहीं।
उन्हें उत्तर भारत की सबसे प्रसिद्ध कवियों में से एक माना जाता है, जिन्होंने भगवान श्री कृष्ण के लिए अनेक भक्ति गीत और कविताएं लिखीं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मीराबाई ने लंबे समय तक वृंदावन में बिताया और फिर 1547 में द्वारका चली गईं। वहां एक दिन नृत्य करते समय उनका शरीर भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति में समा गया और फिर उन्हें कोई नहीं खोज सका।
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संत मीराबाई जी का संदेश
संत मीरा बाई जी (Sant Mirabai Ji) ने अपने जीवन में जो संदेश दिया, वह सदैव बना रहेगा। उन्होंने यह सिखाया कि प्रेम और भक्ति का कोई भेदभाव नहीं होता। उनका जीवन हमें सिखाता है कि सच्ची भक्ति और प्रेम के लिए किसी भी प्रकार के बंधनों का त्याग करना आवश्यक है। उन्होंने समाज में व्याप्त कुरीतियों और भेदभाव के खिलाफ भी आवाज उठाई।
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