Shukla Pradosh Vrat: 17 अगस्त को व्रत रखने का महत्व और पूजा विधि

Shukla Pradosh Vrat

धार्मिक विश्वास है कि शनि त्रयोदशी का व्रत करने से जीवन के सभी दुख और संकट दूर हो जाते हैं, साथ ही करियर में भी मनचाही सफलता प्राप्त होती है। ज्योतिषियों के अनुसार, इस बार शनि प्रदोष पर कई शुभ संयोग बन रहे हैं। इन योगों में भगवान शिव की पूजा करने से साधकों को अक्षय फल की प्राप्ति होगी।

शुक्ल प्रदोष व्रत (Shukla Pradosh Vrat), हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह व्रत भगवान शिव की आराधना के लिए किया जाता है और हर माह की त्रयोदशी तिथि को आता है। इस बार अगस्त महीने का दूसरा शुक्ला प्रदोष व्रत (Shukla Pradosh Vrat) 17 अगस्त 2024 को मनाया जाएगा। इस व्रत को करने से भक्तों को भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख-समृद्धि का वास होता है।

शुभ मुहूर्त

ज्योतिषियों के अनुसार, सावन माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 17 अगस्त को सुबह 08:05 बजे शुरू होकर अगले दिन 18 अगस्त को सुबह 05:51 बजे समाप्त होगी। इसलिए, शनि प्रदोष व्रत 17 अगस्त को मनाया जाएगा। इस दिन प्रदोष काल, जो पूजा का शुभ समय है, संध्याकाल 06:58 बजे से रात 09:11 बजे तक रहेगा। इस समय के दौरान भक्त भगवान शिव की पूजा-उपासना कर सकते हैं।

 व्रत का महत्व

शुक्ल प्रदोष व्रत (Shukla Pradosh Vrat) का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व अत्यंत उच्च माना जाता है। यह व्रत विशेष रूप से उन लोगों के लिए लाभकारी होता है जो शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहना चाहते हैं। शनिवार प्रदोष व्रत को शनि प्रदोष व्रत के नाम से जाना जाता है। इसे संतान प्राप्ति के लिए अत्यधिक प्रभावी माना जाता है। इसके अलावा, इस व्रत के आयोजन से नौकरी में सफलता और पदोन्नति के अवसर भी खुल सकते हैं। प्रदोष व्रत से व्यक्ति को जीवन में शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है।

 व्रत की पूजा विधि

शुक्ल प्रदोष व्रत (Shukla Pradosh Vrat) की पूजा विधि सरल और प्रभावी होती है। इस व्रत को रखने के लिए भक्तों को निम्नलिखित विधि का पालन करना चाहिए:

1. स्नान और शुद्धिकरण: व्रत रखने वाले को प्रातःकाल स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करना चाहिए। इसके पश्चात भगवान शिव की प्रतिमा या चित्र के सामने दीप जलाकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए।

2. निर्जला व्रत: इस दिन भक्तों को दिनभर निर्जला व्रत रखना चाहिए। यदि स्वास्थ्य कारणों से यह संभव न हो तो फलाहार  भी कर सकते हैं।

3. संध्या पूजा: संध्या के समय भगवान शिव की पूजा विशेष रूप से की जाती है। इस समय भक्तों को भगवान शिव को बेलपत्र, धतूरा, अक्षत, चंदन, फल, फूल और धूप-दीप अर्पित करने चाहिए।

4. शिवलिंग अभिषेक: शिवलिंग पर गंगाजल, दूध, दही, शहद, और घी से अभिषेक करें। इसके पश्चात शिवलिंग पर चंदन का लेप करें और बेलपत्र अर्पित करें।

5. आरती और मंत्र जप: पूजा के अंत में भगवान शिव की आरती उतारें और ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का जप करें। इस दिन महामृत्युंजय मंत्र का जप भी अत्यंत लाभकारी होता है।

6. व्रत कथा: व्रत कथा सुनना या पढ़ना भी आवश्यक होता है। इससे व्रत का महत्व और प्रभाव बढ़ता है।

व्रत का समापन

रात्री के समय व्रत का समापन किया जाता है। संध्या आरती के पश्चात भक्तों को ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए और स्वयं भी भोजन ग्रहण करना चाहिए। इस प्रकार शुक्ल प्रदोष व्रत (Shukla Pradosh Vrat) का संपूर्ण विधि-विधान के साथ पालन करने से भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का आगमन होता है।

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