जनेऊ (Janeu) का नाम सुनते ही सबसे पहले हम सब के जेहन में ख्याल आता है, वो है, ब्राह्मण और दूसरा धागा। हम सभी को लगता है कि सिर्फ ब्राह्मण ही जनेऊ धारण कर सकते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। सनातन धर्म में जन्मा हर शख्स, वो चाहे किसी भी वर्ग का ही क्यों न हो, वो जनेऊ धारण कर सकता है, बशर्ते वह नियमों का पालन करे। सनातन धर्म में जनेऊ पहनना, प्रत्येक हिन्दू का कर्तव्य माना जाता है। हिंदू धर्म में जनेऊ संस्कार को 24 संस्कारों में से एक माना गया है और इसे पहनने से बल, ऊर्जा, और तेज की प्राप्ति होती है।
क्या होता है जनेऊ (Janeu) ?
जनेऊ (Janeu) तीन धागों वाला एक सूत्र होता है। इसे बाएं कंधे के ऊपर से दाईं भुजा के नीचे तक पहना जाता है। बड़ी बात यह कि इसे देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण का प्रतीक माना जाता है। यही नहीं, इसे सत्व, रज और तम का भी प्रतीक माना गया है। यज्ञोपवीत के एक-एक लड़ी में तीन-तीन धागे होते हैं। इस तरह जनेऊ नौ धागों से निर्मित होता है। ये नौ धागे शरीर के नौ द्वार एक मुख, दो नासिका, दो आंख, दो कान, मल और मूत्र माने गए हैं। इसमें लगाई जाने वाली पांच गांठें ब्रह्म, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रतीक मानी गई हैं। यही कारण है कि जनेऊ को हिन्दू धर्म में बहुत पवित्र माना गया है।
जनेऊ के धागों के प्रकार:- जनेऊ (Janeu) के धागे मूंज, सूत, कपास, और रेशम से बने होते हैं। भारतीय समाज में ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य अलग-अलग तरह के जनेऊ पहनते हैं। ब्राह्मण सूती धागे से बने जनेऊ पहनते हैं। क्षत्रिय भांग से बने जनेऊ पहनते हैं और वैश्य ऊन से बने जनेऊ धारण करते हैं।
जनेऊ का माप:- ब्राह्मणों का जनेऊ 96 अंगुल का होता है। इसे अंगुलियों में 96 बार लपेटकर बनाया जाता है।
जनेऊ में धागों की संख्या:- जनेऊ में तीन या छह धागे होते हैं। ब्रह्मचारी तीन धागों की जनेऊ पहनते हैं। विवाहित पुरुष छह धागों का जनेऊ पहनते हैं। इन छह धागों में से तीन धागे पति के लिए और तीन पत्नी के लिए होते हैं।
जनेऊ के धागों का महत्व:- जनेऊ के तीन धागे ब्रह्मा, विष्णु, और महेश के प्रतीक होते हैं। जनेऊ के छह धागों में से तीन धागे पति के लिए और तीन पत्नी के लिए होते हैं।
जनेऊ पहनने का नियम
जनेऊ (Janeu) को हमेशा बाएं कंधे से दायीं कमर की तरफ ‘ॐ यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं, प्रजापतेयर्त्सहजं पुरस्तात्. आयुष्यमग्र्यं प्रतिमुञ्च शुभ्रं, यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः’ मंत्र को बोलते हुए पहना जाता है।
कैसे बदलें जनेऊ
जनेऊ अपवित्र हो जाने पर व्यक्ति को उसे ‘एतावद्दिन पर्यन्तं ब्रह्म त्वं धारितं मया. जीर्णत्वात्वत्परित्यागो गच्छ सूत्र यथा सुखम्’ मंत्र को बोलते हुए तुरंत उतारना चाहिए। फिर इसके बाद विधि-विधान से दूसरा जनेऊ धारण करना चाहिए।
किन हालातों में बदलें जनेऊ (Janeu)
हिंदू मान्यता के अनुसार जब कभी किसी के घर में किसी की मृत्यु हो जाए, तो शूतक खत्म होने के बाद उसे अपना जनेऊ बदलना चाहिए। इसी प्रकार यदि आपका जनेऊ आपके कंधे से सरककर बायें हाथ के नीचे आ जाय, या फिर किसी कारणवश टूट जाए, या फिर शौच के समय आपके द्वारा कान पर न रखने के कारण अपवित्र हो जाए तो जनेऊ तुरंत बदल देना चाहिए। इसी प्रकार श्राद्ध कर्म करने के बाद, चंद्रग्रहण और सूर्यग्रहण के बाद भी जनेऊ विधि-विधान से बदल देना चाहिए। जनेऊ को शरीर से उतारा नहीं जाता। साफ करने के लिए उसे कण्ठ में पहने रहकर ही घुमाकर धो लेना चाहिए।
10 साल से कम उम्र के बच्चों का किया जाता है जनेऊ संस्कार
जनेऊ (Janeu) संस्कार 10 साल से कम उम्र के बच्चों का किया जाता है। किसी भी धार्मिक कार्य, पूजा-पाठ, यज्ञ आदि को करने से पहले जनेऊ धारण करना जरूरी होता है। बड़ी बात यह की हिन्दू धर्म में विवाह तब तक पूर्ण नहीं होता, जब तक कि दूल्हे को जनेऊ न धारण किया जाए। इसी से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि सनातन धर्म में जनेऊ का कितना महत्व है।
क्या महिलाएं भी धारण कर सकती हैं जनेऊ?
वैसे हिंदू धर्म में नारी को देवी का दर्जा दिया गया है। जाहिए है जिसे देवी माना गया है उसके साथ, किसी भी मामले में भेदभाव किया ही नहीं जा सकता। रही बात महिलाओं के जनेऊ धारण करने की तो, हां, धारण कर सकती हैं। शास्त्रों के अनुसार जिस लड़की को आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करना हो, वह जनेऊ धारण कर सकती है।
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