Jinnah की बीमारी वाली वो बात, जो कभी न बनने देती पाकिस्तान

Jinnah

जैसा कि सभी जानते हैं कि जिन्ना (Jinnah) और नेहरू के प्रधानमंत्री बनाने की आपसी होड़ के चलते 15 अगस्त 1947 के दिन हिंदुस्तान के दो टुकड़े हुए। दोनों में से कोई भी झुकने को तैयार ही नहीं था। ना नेहरू और ना ही जिन्ना। जिन्ना थे कि उन्हें किसी भी हाल में आज़ाद हिंदुस्तान का पहला प्रधानमंत्री बनाना था। और नेहरू थे कि जिन्ना को अपने दफ्तर का चपरासी भी नहीं बनाना चाहते थे। नेहरू की नजर में जिन्ना किसी लायक नहीं थे और जिन्ना की नजर में नेहरू। कुल मिलाकर बात यह कि दोनों को हर हाल में प्रधानमंत्री बनना था बस। उन्हें न देश की पड़ी थी और न ही देश के लोगों की। उन्हें इस बात से भी कोई मतलब नहीं था कि देश रहेगा या नहीं। सच तो शायद यही है? दोनों में से कोई एक मान जाता तो शायद बंटवारे की नौबत आती ही नहीं। लेकिन दोनों मानने को तैयार ही नहीं थे। उनके न मानने की वजह थी वायसराय की पत्नी एडविना माउंटबेटन। कहा तो यह भी जाता है कि एडविना से जिन्ना और नेहरू की बढ़ती नजदीकियों की वजह से दोनों झुकने के लिए तैयार नहीं थे। दरअसल, लार्ड माउंटबेटन की मूक सहमति थी कि एडविना दोनों को किसी भी हाल में झकने न दें। बड़ा कारण यह कि एडविना की नजरों में नेहरू और जिन्ना दोनों खुद को प्रधानमंत्री दिखाना चाहते थे। 

प्रधानमंत्री बनने की लालसा ने किये देश के दो टुकड़े 

हिंदुस्तान के दो टुकड़े इसलिए नहीं हुए कि मुसलमानों को एक अलग देश चाहिए था। या वो हिन्दुओं के साथ रहना नहीं चाहते थे। आज आजादी के 78 वर्ष होने के बाद भी दोनों साथ रह ही रहे हैं। पाकिस्तान से ज्यादा मुसलमान आज हिंदुस्तान में चैनों अमन से रह रहे हैं। खैर, तो हम बात कर रहे थे जिन्ना और नेहरू की। कहा तो यह भी जाता है कि जिन्ना (Jinnah), नेहरू और एडविना के बीच दो माली और एक फूल वाली बात थी। कई मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो नेहरू और एडविना का एक दूसरे के प्रति आकर्षण था। यह एडविना के आकर्षण का ही कमाल था जो नेहरू, जिन्ना को प्रधानमंत्री नहीं बनाना चाहते थे। वैसे महत्वपूर्ण बात यह कि अंत में चली एडविना की ही। जिन्ना और नेहरू दोनों प्रधानमंत्री बने। लेकिन इनके प्रधानमंत्री बनने के चढ़े भूत ने माँ भारती के दो टुकड़े कर दिए। देश के टुकड़े हुए तो हुए। इस बंटवारे की वजह से लाखों निष्पाप लोगों की जाने गई। अनगिनत माँ-बहनों की अस्मत लूटी गई। लाखों लोगों को बेघर होना पड़ा। इतना कुछ हुआ लेकिन सारा का सारा क्रेडिट नोटों पर छपे महात्मा गाँधी को दिया गया। लेकिन क्या आप जानते हैं, देश का बंटवारा टल सकता था। जी हाँ, सच में देश के दो टुकड़े होने से बच सकते थे। 

जिन्ना को थी लाइलाज बीमारी 

निश्चित ही आप सोच रहे होंगे, भला वो कैसे? कैसे टल सकता था बंटवारा? जब दोनों प्रधानमंत्री की कुर्सी छोड़ने को तैयार ही नहीं थे। जब दोनों को एडविना के सामने प्रधानमंत्री बनकर जाना था तो कैसे यह संभव था? सम्भव था। दरअसल, 50 सालों से लगातार सिगरेट और सिगार पीने के चलते जिन्ना  (Jinnah) की खांसी बढ़ गई थी। 12 साल से वो एक ऐसी जानलेवा बीमारी से पीड़ित थे जिसके चपेट में आने के बाद बचना नामुमकिन था। मौत ही उसका अंतिम इलाज थी। कई रिपोर्ट और दावों में तो यह भी कहा गया है कि जिन्ना यौन संचारित संक्रमण से पीड़ित थे। अब यह बीमारी उन्हें कैसे हुई ये वो ही जानें। लेकिन डॉक्टरों ने इस बीमारी को टीबी बताकर बात को रफादफा कर दिया। खैर, जिन्ना अपनी गिरती सेहत से परेशान रहा करता था। कारण यही जो वो जल्द से जल्द अंग्रेजों से एक अलग देश की मांग कर रहा था। हालांकि लोग उसके समर्थन में अधिक नहीं थे। उसे कहीं न कहीं डर था कि यदि जीते जी पाकिस्तान नहीं बना, तो मरने के बाद तो सरदार पटेल जैसे लोग मुसलामानों को जमीन का एक इंच भी नहीं देंगे। इसके चलते लंबे वर्षों तक उसने अपनी बीमारी की भनक किसी को लगने ही नहीं दी। इसीके चलते वो डॉक्टरों से इलाज करवाने से भी परहेज किया करता था। उसे कहीं न कहीं इस बात का डर था कि जीते जी अलग देश नहीं मिला, तो मरने के बाद तो कतई मिलेगा ही नहीं। 

डॉक्टरों ने छुपाई बीमारी वाली बात 

बीमारी की खबर लीक होने के डर के चलते उसने डॉक्टरों से दूरी बनाये रखी थी। वो किसी हिन्दू डॉक्टर से इलाज नहीं कराना चाहता था। लेकिन विश्वसनीय लोगों की सलाह पर उसने मुंबई के एक पारसी डॉक्टर से इलाज करवाने हेतु हामी भरी। इलाज अथवा जांच करवाने के पहले डॉक्टर के सामने उसने एक शर्त रखी कि  जांच में उसे जो भी बीमारी निकले, उसे गुप्त ही रखे। किसी भी हाल में किसी को इसकी कानोकान खबर न हो। पारसी डॉक्टर जाल रतनजी पटेल ने उसे पूरा भरोसा दिलाया कि यह बात सिर्फ उसके तक ही सीमित रहेगी। खैर, जांच रिपोर्ट देखने के बाद डॉक्टर ने जिन्ना से यह साफ कह दिया था कि आप बमुश्किल सिर्फ साल दो साल के ही मेहमान हैं। इतनी बड़ी बात एक हिंदुस्तानी डॉक्टर ने छुपाई रखी। यही नहीं, रिपोर्ट तैयार करने वाले पारसी डॉक्टर जाल देऊबु ने भी किसी से सांस नहीं ली। 

शायद नहीं हुए होते देश के टुकड़े 

सोचो यह कि जिन्ना  (Jinnah) की बीमारी वाली बात यदि सरदार पटेल को पता चल जाती तो? बेशक आजादी साल भर मिलती। निश्चित ही आज़ादी की बात को घुमा फिराकर टाल दिया जाता। 1947 के बजाय 1948 आज़ाद होते। इससे ज्यादा और क्या होता? इतने साल गुलाम थे ही, साल भर और रह जाते गुलाम। कम से कम देश के दो टुकड़े तो नहीं ही हुए होते। सोचिये कैसे मुंबई के एक डॉक्टर की गद्दारी के चलते देश का बंटवारा हुआ और लाखों लोगों को अपना बसा बसाया घर छोड़ विस्थापित होना पड़ा। इतना कुछ होने के बाद भी दोनों डॉक्टरों ने मौन साधे रखा। ये क्या कम था कि साल 1962 में तत्कालीन नेहरू सरकार द्वारा उस गद्दार (डॉ. पटेल) को पद्मभूषण अवार्ड से नवाजा गया। यह बात कबूल करने लायक है कि डॉक्टर के पेशे में उसने कइयों की जान बचाई होगी। कइयों असाध्य रोगियों को ठीक किया होगा। लेकिन क्या देश के साथ इतनी बड़ी गद्दारी करने वाले को पद्मभूषण दिया जाना चाहिए था? आप निश्चित ही नहीं कहेंगे। लेकिन पंडित नेहरू की सरकार ने यह कृपा की। अब ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या नेहरू को जिन्ना की बीमारी पता थी? इसका उत्तर है, शायद हां?  

क्या एडविना का था इसमें हाथ?

निश्चित ही एडविना ने नेहरू से जिन्ना वाली बताई होगी। क्योंकि जिन्ना को बीमार करने वाली एडविना ही थी संभवतः? अब ऐसे में यक्ष प्रश्न यह कि मोहनदास गांधी को जिन्ना की बीमारी की भनक थी? शायद हो? क्योंकि वो खुद ब्रह्मचर्य टेस्ट करने के मामले में क्या कुछ करते थे, सत्य के प्रयोग में बाकायदा उन्होंने वर्णन किया है। खैर, शायद जिन्ना (Jinnah) की बीमारी ने ही कही गांधी को कॉन्ट्रैक्ट कीलिंग के जरिये तो नहीं निपटवाया? ये ऐसे प्रश्न हैं जिसके उत्तर अमूमन अधिकार लोग जानते हैं। न सिर्फ जानते हैं बल्कि दबी जुबान में चर्चा भी करते थें। खैर, कुल मिलाकर बात यह कि जिन्ना की बीमारी की बात अगर लीक हो गई होती तो आज देश के टुकड़े नहीं ही हुए होते। ताज्जुब देखिये पाकिस्तान बनने के बमुश्किल साल भर बाद 11 सितंबर 1948 को मोहम्मद अली जिन्ना की मृत्यु हो गई। 

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