भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। अनेकता में एकता ही इसकी पहचान रही है। भारतीय संविधान की नजर में सभी धर्म बराबर हैं। यही खूबी भारत को अन्य देशों से अलहदा बनाती है। वैसे भी देश की तरक्की के लिए शांति सुव्यवस्था बड़ी महत्वपूर्ण होती है। ऐसे में शांति-व्यवस्था कायम रखने के लिए जरूरी है कि सभी धर्मों के बीच सौहार्द बना रहे। अब इसके लिए जरूरी यह है कि देश के बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक समाज की जनसंख्या के बीच तालमेल बना रहे। जहां भी बहुसंख्यक हिंदुओं की संख्या घटी है वहां राजनीतिक अथवा आपसी द्वेष के चलते दंगे फसाद हुए हैं। कुल-मिलाकर महत्वपूर्ण बात यह कि जिस भी अल्पसंख्यक समुदाय की संख्या में वृद्धि हुई है, उसने वहां दमन करना शुरू कर दिया। आलम यह कि विशेष समुदाय की भीषण जनसंख्या वृद्धि के चलते हिंदू अपने ही देश में अल्संख्यक होने की कगार पर आ गया है। आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत में कई ऐसे राज्य हैं, जहां हिंदू समाज अल्पसंख्यक बन चुका है।
धर्मांतरण सबसे बड़ी वजह
आप कहेंगे, ये क्या मजाक है। एक बहुसंख्यक समाज भला अल्पसंख्यक कैसे हो सकता है? तो ध्यान देने वाली महत्वपूर्ण बात यह कि भारत में अभी भी कुछ ऐसे राज्य ऐसे हैं, जहां हिंदू अल्पसंख्यकों की श्रेणी में आते हैं। इसका सीधा सा अर्थ है कि वहां इनकी आबादी कम हो गई है। यह गहन चिंता का विषय है कि आखिर क्यों हिंदू अल्पसंख्यक होता जा रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण है, धर्मांतरण। कई ऐसी मशीनरी हैं जो गरीब और भोले-भले हिंदुओं को चंद पैसों का लालच देकर उनका धर्म परिवर्तन करवा रहे हैं। कुछ जबरन करवा रहे हैं तो कुछ लालच देकर। जिसके चलते कई राज्यों से हिंदू विलुप्त होते जा रहे हैं।
आबादी कम होने के बावजूद हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा नहीं मिला पाया है
खैर, मजे की बात यह कि आबादी कम होने के बावजूद हिंदुओं को वहां अल्पसंख्यकों का दर्जा नहीं मिला पाया है। और तो और यदि बात करें कानून की, तो कानून के मुताबिक हिन्दुओं को वहां कब का अल्पसंख्यक घोषित कर देना चाहिए था। ध्यान देने वाली यह कि साल 1978 में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने अल्पसंख्यकों के लिए आयोग बनाने की बात कही थी। उक्त प्रस्ताव में कहा गया था कि “संविधान में दिए गए अधिकारों और कानून के बावजूद भी देश में अल्पसंख्यकों की स्थिति सही नहीं है। इसी को देखते हुए साल 1992 में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग कानून बनाया गया और साल 1993 में इसकी घोषणा की गई।”
कैसे मिलता है अल्पसंख्यक का दर्जा?
जिस किसी भी देश में किसी भी धर्म विशेष के लोगों की तादाद कम होती है, उसे उस देश का अल्पसंख्यक घोषित कर दिया जाता है। यहां बात करें भारत कि तो वर्तमान में भारत में फिलहाल 6 धर्म ऐसे हैं जिन्हें अल्पसंख्यक का दर्जा प्राप्त है। इनमें सिख, इसाई, बौद्ध, पारसी, मुस्लिम और जैन धर्म शामिल है। दरअसल 23 अक्टूबर 1993 को एक अधिसूचना जारी करके राष्ट्रीय स्तर पर आबादी के आधार पर पांच समुदायों मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसी को अल्पसंख्यक घोषित किया गया था। हालांकि शुरू में सर्फ पांच ही धर्म थे, लेकिन साल 2014 में इस श्रेणी में जैन धर्म को भी शामिल कर लिया गया। यानि इन 6 धर्म के अनुयायियों को अल्पसंख्यक का दर्जा प्राप्त है। हैरत की बात यह कि इसके बाद से देश का भौगोलिक समीकरण बदल चुका है। मसलन, कई राज्यों में अल्पसंख्यक अब बहुसंख्यक हो चुके हैं और बहुसंख्यक अल्पसंख्यक में तब्दील हो चुके हैं।
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क्या कहता है कानून
आपको बता दें कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 29 और 30 में धार्मिक और भाषाई तौर पर अल्पसंख्यकों को विशेष अधिकार दिए गए हैं। यही नहीं, संविधान के अनुच्छेद 29(1) के मुताबिक किसी भी समुदाय के लोग जो भारत के जिस किसी भी राज्य में रहते हैं, कोई क्षेत्र जिसकी अपनी क्षेत्रीय भाषा, लिपि अथवा संस्कृति हो, उन्हें उस क्षेत्र को संरक्षित करने का पूरा अधिकार होगा। यह तो रही बात कानून की, लेकिन आपको जानकर यह हैरानी होगी कि भारत में कुल 9 राज्य ऐसे हैं जहां हिंदू आबादी 50 प्रतिशत से भी कम है। यानि एक तरह से उन राज्यों में हिन्दू अल्पसंख्यक रह गया है। वो राज्य हैं जम्मू कश्मीर, पंजाब, लक्षद्वीप, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, नागालैंड, मेघालय, लद्दाख और मणिपुर जहां हिंदू अल्पसंख्यक बन चुका है। कानूनन भारत के इन 9 राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा मिलना चाहिए।
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