Customize Consent Preferences

We use cookies to help you navigate efficiently and perform certain functions. You will find detailed information about all cookies under each consent category below.

The cookies that are categorized as "Necessary" are stored on your browser as they are essential for enabling the basic functionalities of the site. ... 

Always Active

Necessary cookies are required to enable the basic features of this site, such as providing secure log-in or adjusting your consent preferences. These cookies do not store any personally identifiable data.

No cookies to display.

Functional cookies help perform certain functionalities like sharing the content of the website on social media platforms, collecting feedback, and other third-party features.

No cookies to display.

Analytical cookies are used to understand how visitors interact with the website. These cookies help provide information on metrics such as the number of visitors, bounce rate, traffic source, etc.

No cookies to display.

Performance cookies are used to understand and analyze the key performance indexes of the website which helps in delivering a better user experience for the visitors.

No cookies to display.

Advertisement cookies are used to provide visitors with customized advertisements based on the pages you visited previously and to analyze the effectiveness of the ad campaigns.

No cookies to display.

प्रमुख खबरें

Part 1: जानिए Vishwa Moolnivasi Divas 09 अगस्त का पूरा इतिहास

Vishwa Moolnivasi Divas

देश में हर वर्ष 9 अगस्त को विश्व मूल निवासी दिवस (Vishwa Moolnivasi Divas) के नाम पर विभिन्न स्थानों पर छोटे-बड़े कार्यक्रम होते हैं, जिनमें जनजाति समाज के साथ-साथ अन्य लोग भी उत्साह से भाग लेते हैं। ऐसे अधिकांश कार्यक्रमों का आयोजन चर्च या उससे प्रेरित संस्थाएं या फिर व्यक्ति करते हैं जिनका अपना निहित (धर्मांतरण का) उद्देश्य होता है। इस विषय पर  पूरी जानकारी नहीं होने के कारण इस विषय को गंभीरता से समझना बेहद आवश्यक है।     

मूल निवासी और भारत 

संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) के मूल निवासी की अवधारणा भारत के सन्दर्भ में लागू होती है या नहीं, इस बात को समझने की ज़रूरत है- 

● संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार दुनिया के लगभग 40 देशों में 43 करोड़ मूल निवासी हैं। जिनमें से लगभग 25 प्रतिशत सिर्फ भारत में है। पहले यह विषय अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) में था। ILO के प्रस्ताव (Convention) संख्या 169 (1989) से यह विषय प्रारम्भ हुआ। 

● संयुक्त राष्ट्र संघ ने विश्व मूल निवासियों की स्थिति को सुधारने, उनके सर्वागीण विकास, उनके हितों की रक्षा के लिए मूल निवासियों के स्थायी मंच की स्थापना 28 जुलाई 2000 को की। 

● मूल निवासियों के इतिहास के अध्ययन से यह पता चलता है कि यूरोपीय देशों ने अमेरिका, आस्ट्रेलिया एवं अफ्रीकी आदि देशों में अपनी बस्तियां बसाकर अपने साम्राज्य स्थापित किए। इस प्रक्रिया में उन्होंने वहां बसे हुए लोगों अर्थात् मूल निवासियों को गुलाम बनाते हुए उन्हें वहां से विस्थापित किया। जिससे उनकी संस्कृति, जीवन-दर्शन, रीति-रिवाज, मान्यताएं और धर्म नष्ट हुआ। भूमि सहित उनके प्राकृतिक संसाधनों पर जबरन कब्जा किया। 

● ऑस्ट्रेलिया में तो वहां के तत्कालीन प्रधान मंत्री केविन रूड को 13 फरवरी 2008 को अपनी संसद में वहां के मूल निवासियों से क्षमा मांगनी पड़ी थी। ऐसा उन्हें मूल निवासियों की चुराई गयी पीढ़ियों के साथ हुए अन्याय के लिए करना पड़ा था – वहां के मूल निवासियों के छोटे बच्चों को छीन कर चर्च या दूसरे को पालन-पोषण के लिए दे दिया गया था । यह सब उनको मुख्य समाज में घुल मिल जाने और उनकी स्वतंत्र पहचान को नष्ट करने हेतु किया गया था।

● पश्चिमी देश मानते हैं कि भारत-एशिया में भी ऐसा ही हुआ होगा जोकि सर्वथा निराधार और गलत तर्क है। वैश्विक स्तर पर अभी तक इसकी परिभाषा तक निश्चित नहीं हो पाई है।

● भारत में जनजातियों सहित कोई बाहर से नहीं आया, पौराणिक काल से ही यहां सभी जातीय-जनजातीय समुदाय सौहार्द पूर्वक रहते आए हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत सरकार के प्रतिनिधि  ने भी 2007 के घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षर करते समय यही कहा था कि भारत में रहने वाले सभी लोग यहां के मूल निवासी हैं, हमारे यहां कोई भी बाहर से नहीं आया।

मूल निवासियों पर UNO में भारत का वक्तव्य :

भारत ने कहा कि भारत ने मूलनिवासी लोगों के अधिकारों का लगातार समर्थन किया है और मूलनिवासी लोगों के अधिकारों की घोषणा के लिए काम किया है। परिषद के समक्ष प्रस्तुत यह पाठ 11 वर्ष के कड़े परिश्रम का परिणाम था। पाठ में ” मूलनिवासी” की परिभाषा नहीं थी। आत्मनिर्णय के अधिकार के संबंध में भारत की पूरी आबादी को मूलनिवासी माना गया था , यह केवल उन लोगों पर लागू होने के लिए समझा गया था, जो विदेशी पराधीनता के अधीन थे, न कि मूलनिवासी व्यक्तियों के राष्ट्र के लिए, जिन्हे इसकी समझ हो। भारत प्रस्ताव का समर्थन करने और प्रारूप घोषणा को अपनाने के लिए तैयार था और हम इसके पक्ष में मतदान करने वाला थे। 

संयुक्त राष्ट्र मूल निवासियों का अधिकार-पत्र 13 सितम्बर 2007

● 13 सितंबर 2007 को संयुक्त राष्ट्र द्वारा मूल निवासियों के अधिकारों की घोषणा हुई, जिसका भारत ने भी यह कहते हुए समर्थन किया कि हमारे देश में सभी मूल निवासी हैं, यहाँ कोई बाहर से नहीं आया है। 

● इस प्रस्ताव का 143 देशों ने समर्थन किया। कनाडा, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड व अमेरिका इन 4 देशों ने इसके विरोध में मतदान किया और 13 देशों ने मतदान में भाग ही नहीं लिया। 

● इस घोषणा पत्र में मूल निवासियों के कई अधिकारों को स्वीकार किया गया। किन्तु इसमें सबसे आपत्तिजनक बात आत्मनिर्णय के अधिकार को लेकर है। यह अधिकार किसी भी देश को कई टुकड़ों में विभाजित कर सकता है जो कोई भी सार्वभौम राष्ट्र या राष्ट्रीय समाज स्वीकार नहीं कर सकता।

● 46 बिन्दुओं के इस अधिकार घोषणा पत्र की व्याख्या और विश्लेषण करने पर यह  ज्ञात होता है कि इनमें से अधिकतर अधिकार भारत की जनजातियों को भारतीय संविधान ने 1952 में ही दे दिए थे और इसके विस्तार की प्रक्रिया अब भी जारी है।

● संविधान की 5वीं और 6 वीं अनुसूची, केन्द्र एवं राज्य सरकारों में जनजातीय आदिवासी कल्याण मंत्रालय, राष्ट्रीय-राज्यों के जनजाति आयोग, केन्द्र एवं राज्य की शासकीय सेवाओं में जनजातियों की जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण, उनके शैक्षिक-स्वास्थ्य आवास-पेय जल आदि हेतु विशेष प्रयास, संसद एवं विधानसभाओं प्रतिनिधित्व में आरक्षण, कृषि भूमि की सुरक्षा हेतु संरक्षणात्मक कानून, इनकी परम्पराओं और रीति रिवाजों – प्रथागत कानूनों को मान्यता, अत्याचार निवारण कानून, विशेष पंचायत कानून, वन अधिकार कानून 2006 ये कुछ इसके उदाहरण हैं। 

● जनजातियों का इतना संरक्षण और उत्थान का इतना प्रयास संभवतः किसी भी देश द्वारा नहीं किया गया। पश्चिमी देशों की तरह भारत में किसी भी राज्य सत्ता या समाज ने यहाँ की जनजातियों को किसी तरह से प्रताडित नहीं किया। दुनिया के कई देशों में तो वहां के मूल निवासियों की पूरी की पूरी नस्ल जनसंख्या और  उसकी संस्कृति को नष्ट कर दिया गया। अमेरिका में ‘रेड इडियन्स’ या आस्ट्रेलिया में वहां के प्राचीन मूल निवासियों के साथ साम्राज्यवादी ताकतों के अत्याचार-तथाकथित सभ्य लोगों के ऐसे दुष्कृत्यों के साफ उदाहरण हैं।

● संयुक्त राष्ट्र घोषणा पत्र का अनुच्छेद 12 मूल निवासियों के धार्मिक-आध्यात्मिक विश्वासों-पूजा पद्धति की रक्षा का भी अधिकार देता है- स्वदेशी लोगों को अपनी आध्यात्मिक और धार्मिक परंपराओं, रीति-रिवाजों और समारोहों को प्रकट करने, अभ्यास करने, विकसित करने और सिखाने का अधिकार है, अपने धार्मिक और सांस्कृतिक स्थलों को बनाए रखने, संरक्षित करने और गोपनीयता में पहुंच का अधिकार है । उन्हें  उनके समारोह की वस्तुओं के उपयोग और नियंत्रण और अंतिम संस्कार हेतु अपने संबंधियों के मानव अवशेषों के प्रत्यावर्तन का अधिकार है। 

● यहां इस बात पर गौर किया जाना चाहिए कि भारतीय संविधान अपनी अनुसूचित जातियों और जन जातियों को ये अधिकार वैश्विक स्तर पर इस विषय पर विचार विमर्श आरंभ होने के कई दशकों पूर्व ही प्रदान कर चुका है।

● भारतीय संविधान में कहीं भी ‘नेटिव’, ‘मूल निवासी’ अथवा ‘आदिवासी’ शब्दों का प्रयोग नहीं किया गया है जबकि ऑस्ट्रेलिया, कनाडा या अमेरिका में वहां के इस प्रकार के नागरिकों के लिए इन शब्दों का प्रयोग किया गया है। अपने देश में जनजाति/अनुसूचित जनजाति शब्दों का प्रयोग हुआ है। इससे भी समझ सकते हैं कि मूल निवासी की अवधारणा हमारे यहां लागू नहीं होती। 

● ठीक उसी प्रकार एक और तथ्य भी हमें ध्यान रखना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र के मूल निवासियों के स्थायी मंच में वर्तमान में 14 सदस्य हैं जिनमें एक भी भारतीय नहीं है। इस मंच के इतिहास में कभी किसी भारतीय को स्थान नहीं दिया गया। यह तथ्य भी स्पष्ट करता है कि यह वैश्विक संस्थान भारतीय जनजातियों को उस अर्थ में मूल निवासी नहीं मानता, जिस अर्थ में उसे अन्य देशों के मूल निवासियों के हितों की रक्षा के लिए कार्य करने की आवश्यकता है।

जानकारों की मानें तो जनजातियों को भ्रमित करने का प्रयास भी किया गया है, जिसे आर्टिकल के अगले हिस्से यानी पार्ट 2 में जानेंगे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Translate »