महाराष्ट्र के बदलापुर में नर्सरी में पढ़ने वाली महज 3 साल की दो बच्चियों के यौन शोषण से जुड़ी खबर ने सभी अभिभावकों को झकझोर कर रख दिया है। ऐसे में यह चिंता सभी को सताए जा रही है कि इस सो कॉल्ड सभ्य समाज में भला रहा भी जाये तो कैसे? जाहिर सी बात यह चिंता सबके मन में होनी ही है। क्योंकि पग-पग पर दरिंदे जो बैठे हैं। न जाने कब, कौन, कहाँ अपनी दरिंदगी दिखा दे, कहा नहीं जा सकता। कमाल यह कि इन दरिंदों के लिए बच्चियों की उम्र कोई मायने नहीं रखती। ऐसा नहीं है कि महाराष्ट्र के बदलापुर में घटी यह घटना, कोई आखिरी घटना है। इससे पहले भी कई छोटी बच्चियां दरिंदगी का शिकार हो चुकी हैं। आपको ताज्जुब होगा कि छह महीने से लेकर डेढ़ साल तक बच्चियां दरिंदगी का शिकार हो चुकीं हैं। अपनी हवस शिकार बनाने वाले ये दरिंदें अमूमन परिचित ही होते हैं। परिचित होने के नाते दरिदें आसानी से बच्चियों को अपनी हवस का शिकार बना लेते हैं।
छोटी बच्चियां आसानी से बनती हैं शिकार
बच्चियों को शिकार बनाने की वजह यह कि बच्चियां प्रतिरोध नहीं करती। वैसे भी एक डेढ़ साल की मासूम को देखकर कैसे किसी की वासना जागती है? यह घोर चिंताजनक बात है। आये दिन इस तरह की शर्मनाक घटनाएं भारत के किसी न किसी भाग में होती ही रहती हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि छोटी बच्चियों के साथ यौन शोषण होना एक गंभीर और संवेदनशील मुद्दा है। इसके रोकथाम के लिए अभिभावकों का जागरूक होना बहुत जरूरी। उन्हें स्वयं उनकी सुरक्षा का जिम्मा लेना होगा। इसके लिए तो, सबसे पहले उन्हें एक बात गांठ बांधकर रखनी होगी कि जब तक बच्ची समझदार न हो जाये तब तक उसे अकेले किसी के पास न छोड़े। किसी के पास भी नहीं, मतलब किसी के पास भी नहीं, वो चाहे उनके कितने भी परिचित अथवा विश्वासपात्र ही क्यों न हों। या कह लें कि वो उनका सगा रिश्तेदार ही क्यों न हो। संभव हो सके तो अपनी नजर के सामने रखें। बढ़ती उम्र के साथ बच्चियों गुड टच, बैड टच की जानकारी दें। उसे अच्छे और बुरे इंसान की पहचान करना सिखाएं। उसे यह सिखाएं कि नाजुक अंगो को हाथ लगाने पर किस तरह चीखना और चिल्लाना है। ताकि कम उम्र की बच्चियां यौन शोषण का शिकार होने से बच सकें। लेकिन उनका क्या जो तो न बोल सकती हैं और न ही भाग सकती हैं, सिवाय दर्द के मारे चीखने के?जाहिर है, आप मेरा इशारा समझ गए होंगे कि यहां किसकी बात हो रही है? निश्चित ही उन छोटी बच्चियों की, जो ढंग से बोलना भी नहीं जानती।
बनाने होंगे सख्त कानून
ऐसे में अभिभावकों और बच्चियों को जागरूक होने के साथ-साथ सरकार को भी नींद से जागने की जरूरत है। और जरूरत है ऐसे सख्त क़ानून बनाने कि जिसमें बलात्कारियों कड़ी से कड़ी सजा का प्रावधान हो, ताकि कोई भी दरिंदा आसानी से कानूनी कमजोरियों का नाजायज लाभ लेकर बरी ना हो सके। बेशक अब वक़्त आ गया है, जब देश में ऐसे कड़े बने, जिससे बलात्कारियों की रूह कांप उठे। ऐसा इसलिए कि निर्भया काण्ड के बाद लगा था कि सरकार शायद कड़े प्रावधान लाएगी, जिससे अपराधियों का जीना हराम हो जायेगा। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। कानून से कैसे खेला जा सकता है, ये निर्भया ट्रायल में सभी ने बखूबी देखा है। जाहिर है, इसे देखने के बाद नराधमों के हौसले पस्त होने के बजाय और बुलंद हो गए। और हुए भी हैं। आप कहेंगे भला कानून बना कर भी क्या होगा? कुछेक मामलों को छोड़ दें तो पुलिस अपराधियों से साठ-गांठ कर उन्हें ही सरक्षण देने लग जाती है। जब तक दबाव न पड़े पुलिस एफआईआर तक नहीं दर्ज करती। है तो, जीरो एफआईआर का प्रावधान। थाने में पुलिस वाले ही चार ऊटपटांग सवाल पूछकर चलता कर देते हैं। ऐसे में कड़ा कानून क्या ही कर लेगा।
बलात्कारियों की 7 दिन से ज्यादा की न हो जिंदगी
आपका यह सोचना जायज है। लेकिन सरकार को कुछ इस तरह के कानून बनाने चाहिए जिसे सुनकर बलात्कारियों की चीखें निकल जाये। न सिर्फ बलत्कारियों की बल्कि उन बेईमान पुलिस वालों की भी जो केस रजिस्टर करने में आनाकानी करते हैं। कानून कुछ ऐसा हो जिसमें,
किसी भी बलात्कारी को मिलने वाले ट्रायल के संवैधानिक अधिकार को छीन लेना चाहिए। काहे, दरिंदों को देश के टैक्स पेयरों के पैसे से पालना।
मेडिकल परिक्षण में रेप की पुस्टि होने के बाद बलात्कारी को 7 दिन से अधिक जीने का अधिकार न हो।
डीएनए परिक्षण के बाद 7 दिन के अंदर या तो फांसी पर लटका दिए जाए या फिर एनकाउंटर कर दिया जाए, जैसा (हैदराबाद केस में हुआ था)
जब तक इन दरिदों के मन में अपनी मौत और कानून का खौफ नहीं होगा तब तक ये इसी तरह महीने भर की दूधमुंही बच्ची से लेकर बालिग होने की उम्र तक की बच्चियों को अपनी हवस का शिकार बनाते रहेंगे। रही बात मानवाधिकार की तो मानवाधिकार वालों को वैसे भी पीड़िता का दर्द का ही दिखता है।
बेटियों की सुरक्षा का दायित्व उठाना होगा
ऐसे में सरकार को चाहिए कि इस तरह के सख्त कानून बनाये ताकि भारत के किसी भी कोने में कोई मां भारती की लाड़ली को अपनी हवस का शिकार न बना सके। हालांकि यह कहना जितना आसान है, उतना आसान है नहीं। यदि आसान नहीं है, तो असंभव भी नहीं है। माना लोकतांत्रिक देश होने के चलते कई मुश्किलें हैं, लेकिन सरकार और देश की सभी राजनीतिक पार्टियां अगर ठान लें तो असंभव कुछ नहीं है। महत्वपूर्ण बात यह कि सरकार को बच्चियों के भविष्य को बचाने के लिए कठोर कदम उठाने होंगे। महज योजनाएं ला देने से कुछ नहीं होगा। उनकी सामाजिक सुरक्षा भी सुनिश्चित करनी होगी। तब कहीं जाकर देश की लाडली सुरक्षित रह सकेंगी। नहीं, कल फिर एक निर्भया होगा, कोलकाता होगा, मुंबई होगा। क्योंकि दरिंदें हर जगह हैं। नाबालिग बच्चियों के बलात्कार के मामलें में बलात्कारियों की एक ही सजा है, वो है सजाये मौत। इससे कम की सजा बच्चियों को सुकून से बेख़ौफ़ होकर जीने नहीं देगी।
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