Ram Mandir : राम मंदिर को लेकर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने जनता से किया यह आग्रह

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पुणे में हिंदू आध्यात्मिक सेवा संस्था द्वारा आयोजित हिंदू सेवा महोत्सव के उद्घाटन के मौके पर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि “भक्ति के सवाल पर आते हैं। वहां राम मंदिर (Ram Mandir) होना चाहिए और वास्तव में ऐसा हुआ है। वह हिंदुओं की भक्ति का स्थल है।” इस दौरान आरएसएस प्रमुख ने विभाजन पैदा करने के खिलाफ चेतावनी दी। उन्होंने कहा कि लेकिन तिरस्कार और दुश्मनी के लिए हर दिन नए मुद्दे उठाना नहीं चाहिए। यहां समाधान क्या है? हमें दुनिया को दिखाना चाहिए कि हम सद्भाव में रह सकते हैं, इसलिए हमें अपने देश में थोड़ा प्रयोग करना चाहिए।” 

 देश में एकता और सद्भाव का लाने का किया आग्रह – Ram Mandir

हिंदू सेवा महोत्सव का उद्घाटन करने के बाद मोहन भागवत ने भारत की विविधतापूर्ण संस्कृति पर विस्तारपूर्वक प्रकाश डालते हुए कहा कि “हमारे देश में विभिन्न संप्रदायों और समुदायों की विचारधाराएं हैं।” मोहन भागवत ने हिंदू धर्म को एक शाश्वत धर्म बताते हुए कहा कि “इस शाश्वत और सनातन धर्म के आचार्य ‘सेवा धर्म’ या मानवता के धर्म का पालन करते हैं।” कुल मिलाकर आरएसएस प्रमुख ने देश में दुश्मनी पैदा करने के लिए विभाजनकारी मुद्दे नहीं उठाए जाने और देश में एकता और सद्भाव का लाने का आग्रह किया है। यही नहीं, उन्होंने हिंदू भक्ति के प्रतीक के रूप में अयोध्या में राम मंदिर के महत्व पर भी प्रकाश डाला। 

सेवा को सनातन धर्म का बताया सार 

शिक्षण प्रसारक मंडली के कॉलेज ग्राउंड में आयोजित यह हिंदू सेवा महोत्सव, 22 दिसंबर तक चलेगा। बता दें कि इस महोत्सव में हिंदू संस्कृति और अनुष्ठानों के बारे में जानकारी के साथ-साथ महाराष्ट्र भर के मंदिरों, धार्मिक संगठनों और मठों द्वारा किए जाने वाले विभिन्न सामाजिक सेवा कार्यों को प्रदर्शित किया जाता है। इस दौरान श्रोताओं को संबोधित करते हुए मोहन भागवत ने सेवा को सनातन धर्म का सार बताया, जो धार्मिक और सामाजिक सीमाओं से परे है। उन्होंने लोगों से सेवा को पहचान के लिए नहीं बल्कि समाज को कुछ देने की शुद्ध इच्छा के लिए अपनाने का आग्रह किया। 

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सेवा को बिना किसी प्रचार की इच्छा के विनम्रतापूर्वक किया जाना चाहिए

इस बीच आरएसएस प्रमुख ने इस बात पर भी जोर दिया कि “सेवा को बिना किसी प्रचार की इच्छा के विनम्रतापूर्वक किया जाना चाहिए।” उन्होंने संतुलित दृष्टिकोण की वकालत करते हुए देश और समय की जरूरतों के अनुसार सेवा को अपनाने की जरूरत पर जोर दिया। जीवन के महत्व को स्वीकार करते हुए उन्होंने लोगों को सेवा के कार्यों के माध्यम से हमेशा समाज को कुछ देने की याद दिलाई।

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