श्री एकनाथजी रानाडेजी का जन्म 19 नवंबर 1914 को महाराष्ट्र के अमरावती जिले में हुआ था। बचपन से ही उनमें राष्ट्रीयता की भावना प्रबल थी, जिसे उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़कर और अधिक बेहतर किया। एकनाथजी का संघ से जुड़ाव साल 1926 में हुआ, जब वे मात्र 12 वर्ष के थे। इस आयु में उन्होंने संघ के विचारों को समझा और संघ कार्य में खुद को पूरी तरह से समर्पित कर दिया। उनकी अद्वितीय संगठनात्मक क्षमताओं और नेतृत्व कौशल ने उन्हें संघ के भीतर एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया।
संगठनात्मक क्षमता और विचारों का प्रसार
एकनाथजी रानाडे का जीवन संघ के प्रति समर्पण और सेवा का प्रतीक था। उन्होंने संघ के विचारों को न केवल महाराष्ट्र में, बल्कि पूरे देश में फैलाने का महत्वपूर्ण कार्य किया। साल 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बाद, संघ पर प्रतिबंध लगने के समय एकनाथजी ने अद्वितीय साहस और धैर्य का परिचय दिया। उन्होंने संघ के सदस्यों को संगठित रखा और संघ को इस कठिन समय से बाहर निकाला।
1950 के दशक में एकनाथजी को संघ के अखिल भारतीय प्रचारक के रूप में नियुक्त किया गया। इस पद पर रहते हुए उन्होंने संघ की विचारधारा को और अधिक प्रखरता से फैलाने का कार्य किया। उन्होंने देशभर में संघ की शाखाओं की संख्या बढ़ाने और संघ के प्रति लोगों में विश्वास बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
विवेकानंद शिला स्मारक: एक अनूठी प्रेरणा
श्री एकनाथजी रानाडे का नाम स्वामी विवेकानंद शिला स्मारक से भी जुड़ा हुआ है। साल 1962 में जब कश्मीर में भारत-चीन युद्ध चल रहा था, तब एकनाथजी ने विवेकानंद शिला स्मारक के निर्माण का बीड़ा उठाया। उन्होंने देश के कोने-कोने से लोगों को इस कार्य में योगदान देने के लिए प्रेरित किया। उनके अथक प्रयासों से यह स्मारक बनकर तैयार हुआ, जो आज देशवासियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
राष्ट्रीय सेवा योजना (NSS) की स्थापना
श्री एकनाथजी रानाडे की एक और महत्वपूर्ण उपलब्धि राष्ट्रीय सेवा योजना (NSS) की स्थापना है। उन्होंने युवाओं में देशसेवा की भावना जागृत करने के लिए इस योजना की शुरुआत की। NSS के माध्यम से उन्होंने युवाओं को समाजसेवा और राष्ट्रनिर्माण के कार्यों में सक्रिय भागीदारी के लिए प्रेरित किया। आज NSS देशभर में लाखों युवाओं को समाज के प्रति उनकी जिम्मेदारियों का एहसास कराता है।
श्री एकनाथजी का विचारशील नेतृत्व
श्री एकनाथजी रानाडे का जीवन एक प्रेरणा स्रोत है। उन्होंने संघ के प्रति जो निष्ठा दिखाई, वह अद्वितीय है। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि जब हम किसी उद्देश्य के प्रति पूर्ण समर्पित होते हैं, तो हमें सफलता अवश्य मिलती है। उनका संगठनात्मक कौशल और नेतृत्व की क्षमता आज भी संघ के कार्यकर्ताओं के लिए मार्गदर्शक है।
19 अगस्त 1982 को श्री एकनाथजी रानाडे का निधन हो गया, लेकिन उनके विचार और कार्य आज भी जीवंत हैं। उनकी पुण्यतिथि हमें उनके महान कार्यों को स्मरण करने और उनसे प्रेरणा लेने का अवसर प्रदान करती है। उनका जीवन और उनकी यात्रा एक उदाहरण है कि कैसे एक व्यक्ति अपने समर्पण और निष्ठा से राष्ट्र निर्माण में योगदान दे सकता है। श्री एकनाथ रानाडेजी को हमारी सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हम उनके विचारों और उनके कार्यों को अपने जीवन में अपनाएं और राष्ट्र निर्माण के प्रति अपना योगदान दें। जय राष्ट्र न्यूज़ की पूरी टीम की ओर से श्री एकनाथजी रानाडे जी को नमन।
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